शराब खरीद कर केजरीवाल की मदद कर रहे हैं: ग्राहक
शिवानी रजवारिया
नई दिल्ली: दिल्ली में लॉकडाउन 3 के तीसरे दिन भी शराब की दुकानों पर शराब खरीदने वालों की लंबी-लंबी कतारें पहले और दूसरे दिन की तरह दिखाई दी। जब भी देश में कोई ऐसी अप्रिय घटना घटती है तो आम से खास सभी अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं और उस पर अपनी अपनी राय रखते हैं। जब से शराब की दुकानें खुली हैं सभी लोगों की अपनी अपनी राय और विचार सामने आ रहे हैं।
लोगों के मत दो विचार धाराओं में बटते रहे है, कुछ लोगों का कहना है कि लॉकडाउन में शराब की दुकानें खुलनी ही नहीं चाहिए थी और अगर खोली गई थी तो सोशल डिस्टेंस का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए था, वहीं कुछ लोगों का मानना है शराब की दुकानें बंद ही नहीं होनी चाहिए थी जिस तरीके से रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की दुकानें खुल रही है वैसे ही शराब की दुकान में भी खुली रहनी चाहिए थी। सभी के अपने-अपने विचार शब्दों में बयां हो रहे हैं वहीं दिल्ली के कृष्णा नगर में शराब की दुकान के बाहर लगी लंबी लाइन में लगे लोगों से पूछा गया तो उन्होंने ऐसा जवाब दिया जिसे सुनकर हैरानी हुई। दिल्ली में शराब के ऊपर 70 फीसदी कर लगा दिया गया है।
कृष्णा नगर में शराब की दुकान के बाहर खड़े लोगों से जब पूछा गया कि आप इतनी महंगी शराब क्यों खरीद रहे हैं तो उनका जवाब था कि 70 फीसदी महंगी शराब खरीदने के पीछे उनका एक ही कारण है वह यह सब सीएम केजरीवाल की मदद करने के लिए कर रहे हैं। यहां सब लोग शराब खरीदने आए हैं ताकि केजरीवाल का घर भर पाए क्योंकि भारत में इतना पैसा होने के बाद भी 40 दिन के अंदर दिल्ली सरकार के हाथ खड़े हो गए हैं।
वे लोगों से पैसा मांग रहे हैं। सीएम ने गरीबों के बारे में कुछ नहीं सोचा साथ ही साथ ग्राहक ने कोरोना वायरस के आने वाले भयानक अंजाम पर भी अपनी चिंता व्यक्त कर डाली। कुछ युवा पीढ़ियों का तो यह भी कहना था इतने दिनों से बर्दाश्त कर रहे थे एक दिन मिला है तो जिंदगी जी लेते हैं। लोग इतनी लापरवाही से एक लाइन में यह कहकर निकल रहे थे अब पीनी है तो पीनी है क्या कर सकते हैं।
लोगों से पूछा गया कि इतने रुपए में तो आपके घर का राशन आ जाएगा जो पैसा आप शराब में वेस्ट कर रहे हैं उनका जवाब था राशन तो सरकार दे रही है शराब खरीदने के लिए रिक्शा चला कर पैसे जुटाए हैं। हालात जो के तो बने हुए हैं कापसहेड़ा बॉर्डर के पास शराब की दुकानें खुलने से पहले ही लोग घंटों से लाइन बनाकर वहां बैठे रहे। शराब की दुकान के बाहर एक सफेद पेपर के ऊपर यह नोट लिखा गया है कि कृपया लाइन में खड़े रहिए और टाइम लिखा है सुबह के 9:00 से शाम 6:30 तक उसके बावजूद लोग सुबह-सुबह ही सूरज की पहली किरण के साथ अपनी शाम नशीली करने का इंतज़ाम करने पहुंच गए।
देश में इस वक्त जो हालात चल रहे हैं वह किसी से छुपे हुए नहीं हैं मजदूरों पर पड़ी मार और बड़ी-बड़ी उद्योग कंपनियों पर लगे ताले दोनों ही आपस में जुड़ती हुई कड़ियां हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। कंपनियों में काम होगा तो मजदूरों को काम मिलेगा, मजदूर काम पर खड़े होंगे तो उनके घर का चूल्हा जलेगा, पर यहां पर इन 3 दिनों के दौरान एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है जो भारत देश शिक्षा, बेरोजगारी, मेडिकल सुविधाओं, टेक्निकल क्षेत्रों में संघर्ष कर रहा है उसमे आगे बढ़ने का सपना देख रहा है वहां युवा पीढ़ी से लेकर अनुभवी पीढ़ी का शराब की लत में इस तरह डूबना और बेसब्र होना क्या इस सपने को कभी पूरा होने दे पाएगा?
आज भले ही हम कोरोनावायरस से लड़ रहे हैं पर इस लॉकडाउन के दौरान और इस महामारी के चलते ऐसी बहुत सी चीजें हैं ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जिन्होंने बहुत से सवाल खड़े किए हैं और कहीं ना कहीं सोचने के लिए विवश किया है शराब की दुकानों पर लगी 1 km लंबी लाइनों ने एक गंभीर विषय दे दिया है क्या यही है आने वाली पीढ़ी।। भारत की शराब तले।