23 मार्च क्यों हो गया बिहार के लिए काला दिन

निशिकांत ठाकुर

विश्व को पहला लोकतंत्र और गणराज्य की अवधारणा देने वाला और उसे सुचारू रूप से संचालित करने वाले बिहार में आजकल क्या हो रहा है ? कार्यपालिका की छोडिए, विधायिका इतना बेबस क्यों दिख रही है ? विधान सभा , लोकसभा और राज्यसभा में अपनी बात मनमाने के लिए जोरदार बहस तो नियमित रूप से होती रहती है, लेकिन घसीट घसीट कर पीटने की घटना कई बार कई विधानसभाओं में भी हुई है, जिन्हें अपवाद भी कहा जा सकता है ।

बिहार विधानसभा के इतिहास में 23 मार्च,2021 का दिन काले दिन के रूप में अंकित किया जाएगा। कारण, इस दिन जो कुछ बिहार विधानसभा में हुआ वह केवल दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, अनैतिकपूर्ण भी है। बिहार विधानसभा में विशेष शसस्त्र पुलिस बल विधेयक के विरोध स्वरूप विपक्ष धरने पर बैठे थे, लेकिन कहा यह जा रहा है कि विपक्ष ने अध्यक्ष को लगभग बंधक बना लिया और हंगामा खड़ा कर दिया था। फिर उसके बाद जो कुछ हुआ वह बिहार के लिए ही नहीं देश के लिए शर्मनाक है, वह इसलिए क्योंकि आनन फानन में मार्शल, पुलिस बल और यहां तक की जिलाधिकारी भी आकर विपक्षी दलों पर टूट पड़े और घसीट घसीटकर चाहे महिला हो या पुरुष सबको पीट पीट कर स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल भेजने लगे।

जो मिलते गए सबकी पिटाई होती रही। यहां तक कि विधानसभा कवर कर रहे पत्रकारों के टेबल को पलटकर उन्हे भी पीटा गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण पिटाई का कार्यक्रम चलता रहा और सत्तापक्ष के नेतागण मुस्कुराते हुए सब खेल देखते रहे। अपनी पीठ थपथपाते रहे। अब देखना यह है कि इसे सरकार और विपक्ष किस रूप में लेकर भविष्य का खाका तैयार करते हैं । जो भी हुआ, उसकी आलोचना तो देश भर में तो होगी ही होगी, विदेशों में भी लोग इसका उपहास तो उड़ाएंगे ही। मीडिया की तीखी प्रतिक्रिया तो आनी शुरू हो गई है।

फिलहाल बिहार विधान सभा का जो दुर्भाग्यपूर्ण नजारा सामने आया है, उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है । मार्शल और सशस्त्र पुलिस बलों ने महिला विधायकों के साथ जिस बर्बरता का कार्य किया है ऐसा तो भारतीय लोकतत्र के इतिहास में शायद पहली बार हुआ है। हां, 1 जनवरी 1988 का दिन भी तमिलनाडु विधान सभा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण दिन था, जब जानकी रामचंद्रन ने विश्वासमत के लिए विशेष सत्र बुलाया था। अपने पति एमजीआर के निधन की बाद वह मुख्यमंत्री बनी थी , पर अधिकांश विधायक जयललिता के साथ थे । इसी सियासी गठजोड़ के बीच माइक और जूते चले थे । सदन में लाठी चार्ज भी हुआ था । लगभग पंद्रह महीने बाद 25 मार्च 1989 को फिर तमिलनाडू विधानसभा में ही जमकर हंगामा हुआ । डी एम के और ऐ डी एम के के बीच ऐसे हालात पैदा हो गए कि जयललिता की साड़ी फाड़ने की कोशिश की गई।

मुझे याद आता है साल 1997 की एक घटना। 22 अक्टूबर 1997 उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी । एक दिन के हिंसक सत्र के दौरान जूते और माइक जमकर चले थे । कई विधायक घायल हो गए थे। खून से विधान सभा का रंग लाल हो गया । 10 नवंबर 2009 को महाराष्ट्र विधान सभा में शपथ ग्रहण के लिए बैठक बुलाई गई थी । उसी दिन सपा के विधायक अबू आजमी ने हिंदी में शपथ ली, तो एम एन एस के चार विधायकों ने हिंसक रूप धारण कर लिया। इन चारों विधायकों को चार वर्षों के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। 13 मार्च 2015 को केरल विधान सभा के तत्कालीन वित्तमंत्री के एम मणि ने मार्शलों के बीच में बजट पढ़ना शुरू किया । उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे। बजट के दौरान विपक्षी दलों ने हंगामा शुरू करते हुए हाथापाई करने लगे जिसमे दो विधायक घायल हो गए ।

यह तो कुछ उदाहरण मात्र है । कुछ न कुछ छोटी मोटी घटना तो अमूमन किसी न किसी विधान सभा में आप देखते सुनते ही रहते होंगे। समझ में नहीं आता की ऐसे नेतागण जिन्हें जनता बड़े प्रेम से चुनकर अपने अधिकार की मांग के लिए राज्य की सबसे बड़ी पंचायत में उम्मीदों से भेजती है वे इतने उग्र होकर अपना आपा क्यों खो देते हैं । जिन महिला विधायक को पुलिस बल और मार्शलों ने घसीटा पीटा क्या यह उचित था। ऐसी कार्यवाही करने के लिए मार्शल और पुलिस को सरकार ने अथवा अध्यक्ष ने बाहर से इसलिए बुलाया होगा, क्योंकि निश्चित रूप से उनकी मंशा यह रही होगी की हंगामे को शांत किया जाय । उनका उद्देश्य यह कतई नहीं रहा होगा मार्शल या पुलिस बल उन विधायको को पीटे घसीटे और अस्पताल में भर्ती कराए । यदि ऐसा आदेश दिया गया होगा तो यह ठीक नहीं हुआ, क्योंकि इससे लोकतत्र तार तार हुआ है और इसकी जांच निष्पक्ष संस्था द्वारा की जानी चाहिए जो दूध का दूध और पानी का पानी साफ कर जनता के समक्ष पेश कर सके ।

बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021 पर सरकार का कहना है कि यह बल केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की तर्ज पर बिहार की औद्योगिक इकाइयों और प्रतिष्ठानों की सुरक्षा करेगी। इसके तहत सीआईएसएफ की तरह विशेष सशस्त्र पुलिस बल को गिरफ्तारी और तलाशी का अधिकार होगा। लेकिन विपक्ष इसी विधेयक को काला कानून बता रहा है। जबकि इस विधेयक में सामान्य पुलिस के बारे में चर्चा ही नहीं की गई है। इसके तहत किसी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट या मजिस्ट्रेट की इजाजत की जरूरत नहीं होगी। विशेष सशस्त्र पुलिस बिना वारंट के किसी की तलाशी कर सकेगी कोई इसका विरोध नहीं कर सकता। इसके अलावा किसी अधिकारी पर किसी अपराध का आरोप लगता है, तो कोर्ट खुद से संज्ञान नहीं ले सकता ।बिहार का नया बिहार पुलिस सशस्त्र बल विधेयक विधानसभा में पेश किया गया और पास भी करा दिया गया। इस मौके पर सदन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार सशस्त्र पुलिस बल को लेकर भ्रामक खबरें फैलाई जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बीएमपी की तरह ही है लेकिन अन्य राज्यों में वहीं के पुलिस बल को दूसरा नाम दिया गया है इसलिए बिहार में भी इसका नाम बिहार सशस्त्र पुलिस बल किया गया है।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वह 1985 से विधान सभा के सदस्य रहे हैं हालांकि बीच में वह लोकसभा में भी गए थे लेकिन आज तक उन्होंने विधानसभा में ऐसी स्थिति नहीं देखी। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि आज जो कुछ भी विधान विधान सभा में हुआ उससे ना सिर्फ बिहार विधान मंडल की गरिमा को ठेस पहुंचा है बल्कि बिहार की भी बड़ी बदनामी हुई है । हंगामे के बीच बिहार विधानसभा की कार्यवाही खत्म होने के बाद नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने कहा की बिहार सशस्त्र पुलिस बल एक काला कानून है यह सरकार को वापस लेना ही होगा। तेजस्वी यादव ने कहा कि आज का दिन यानी 23 मार्च, 2021 बिहार विधानसभा के लिए काला दिन के रूप में याद रखा जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)।

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