पश्चिम बंगाल का चुनाव रक्तरंजित ही क्यों ?

निशिकांत ठाकुर

यह साल बीतने को है और अगले साल पश्चिम बंगाल में चुनावी रणभेडी बजने वाली है। इसकी झलक अभी से ही मिलनी शुरू हो गई कि वहां की राजनीति कितना और कैसी रक्तरंजित होने वाली है ? भाजपा के कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं। ठीक उसी तरह, जैसे करीब एक दशक पहले टीएमसी के कार्यकर्ता मारे जा रहे थे। उस समय सत्ता में वाम सरकार थी और इस बार टीएमसी यानी तृणमूल है। चंद रोज पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ, तो अनायास मुझे वह दिन याद आ गया, जब वाम सरकार के दौरान ममता बनर्ती का माथा फोड दिया गया था।

दरअसल, 2021 में बंगाल विधान सभा का चुनाव होने जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस की सरकार वहां पिछले लगभग साढ़े नौ वर्षों से ममता बनर्जी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ है। भाजपा ने अपना चुनावी बिगुल फूंक दिया है और उसके कई वरिष्ठ नेताओं का दौरा वहां हो चुका है। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुछ सफलता मिली थी, इसलिए उसके नेतागण उत्साहित हैं और अगले वर्ष होने जा रहे विधान सभा चुनाव में दो सौ सीट जीतने का दावा कर रहे है। चुनाव में आरोप प्रत्यारोप का होना तो चलिए एक हद तक तो चलता है, लेकिन मारपीट,घनघोर गुंडागर्दी यदि देखना हो तो आप फिलहाल बंगाल जाकर देख सकते हैं।

भाजपा का अपना अलग राग है तो वहीं ममता सरकार दूसरा ही राग अलाप रही है । भाजपा का कहना है कि वर्तमान ममता सरकार ने बंगाल का विकास रोक दिया है और त्तृणमूल कांग्रेस सरकार का रवैया बिल्कुल तानाशाही का है । इसलिए जनता को बदलाव चाहिए और वहां भाजपा की सरकार बननी चाहिए जिससे राज्य का विकास हो सके और केंद्र से तालमेल ठीक से बन सके ।

उधर ममता सरकार का कहना है कि भाजपा सरकार का यह केवल एक आरोप है , लेकिन उसका लक्ष्य बंगाल की चलती सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाना है । अब यह निर्णय तो वहां की जनता को करना है कि वह जिसे अपना मतदान करेगी जिसके प्रति उसका रूझान होगा सरकार तो उसी की बनेगी । यह फैसला अगले वर्ष चुनाव मे ही होगा । 295 विधानसभा सीटों वाले बंगाल में 294 सीटों पर चुनाव लडा जाता है एक सीट एंगलो इंडियन के लिए सुरक्षित रखा जाता है। बता दें कि आज बंगाल विधान सभा में 210 सीटों के साथ ममता बनर्जी सत्तारूढ़ है ।

भाजपा अभी काफी उत्साह में है। इसके पर्याप्त कारण भी है। नए किसान कानून पर देश के किसान उबल रहे हैं, लेकिन इस कानून के बावजूद भाजपा बिहार की सत्ता में पूरे हनक से आ गई है। इसलिए बिहार में एन डी ए की सफलता और बंगाल में लोकसभा की सफलता के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का पिछले सप्ताह दौरा था। श्री नड्डा 24 परगना जिले के डायमंड हार्बर में अपनी सभा करने अपने काफिले के साथ जा रहे थे कि उनके काफिले पर पत्थरों और लाठी डंडों से हमला कर दिया गया जिसमे 8 भाजपा के अधिकारी और कार्यकर्ता घायल हुए । सच में छिटपुट घटनाएं चुनाव में तो होती रहती है, लेकिन इस तरह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी अध्यक्ष के काफिले पर हमला करना निश्चित रूप से एक बड़ी घटना है।

यह ठीक है कि केंद्रीय गृह मंत्री तथा रक्षा मंत्री ने इस घटना पर कड़ा रुख अपनाते हुए कड़ी कार्यवाही करने कहा है , लेकिन जानलेवा दुखदाई इस घटना की उचित जांच हो भी पाती है या नहीं । ऐसा इसलिए कह सकते हैं किं यह दो पार्टियों के अस्तित्व की लड़ाई है । इसलिए इसे कौन स्वीकार करेगा कि उनकी सरकार ने हमला किया अथवा कराया । क्योंकि ममता और उनके सहयोगी का यह कहना है कि यह प्रायोजित हमला था जिसे स्वयं भाजपा द्वारा अपने ऊपर कराया गया है । लेकिन, यह बात गले के नीचे नहीं उतरती की कोई भी बड़ा नेता सिर्फ जनता की सहानुभूति पाने के लिए अपने ऊपर हमला कराए । तृणमूल सरकार यह भी कहती है कि नड्डा एक पार्टी के अध्यक्ष हैं इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए जगह जगह पुलिस बल तैनात नहीं किया जा सकता।

वैसे, राज्यपाल जगदीप धनकड़ ने राज्य के डीजीपी व मुख्य सचिव को तलब करके राज्य में कानून और व्यवस्था के बारे जायजा लिया है । निश्चित रूप से उन्होंने कड़ाई से इस मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा होगा क्योंकि जब तक घटना की पूरी जानकारी नहीं होगी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर पर किया गया हमला चिंतनीय भी है और निंदनीय भी । वैसे राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली भी तालाब कर लिया गया है, इसका भी विरोध ममता बनर्जी ने किया है। इसी बीच बंगाल पुलिस ने काफिले पर हमला करने वाले सात हमलावरों को गिरफ्तार भी किया है।

अब आइए बंगाल के स्थानीय लोगों से इस विषय में बात करते हैं। स्थानीय पढ़े लिखे लोगों से बंगाल की वास्तविक स्थिति को समझने का प्रयास किया तो पता चला कि वस्तु स्थिति कुछ और ही है। भाजपा ने येन केन प्रकारेण जिस तरह अन्य राज्यों में अपनी सरकार वैसाखी और धन बल के सहारे बनाया है उसी प्रकार वहां बंगाल में भी मतदाताओं की भावनाओं से खेलकर अपनी सरकार बनाना चाहती है । स्थानीय लोगों का कहना है कि ममता सरकार के गढ़ को तोड़ने के लिए इस तरह की घटनाएं बार बार कराई जाती है ताकि लोगो की सहानुभूति उनकी पार्टी के साथ जुड़ सके । उनका यह भी कहना है कि जिस प्रकार दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा की स्थिति है उसी प्रकार बंगाल में भाजपा की स्थिति है । इसलिए भाजपा बंगाल के अंदर घुसकर अपनी सत्ता हासिल करना चाहती है । वह उदाहरण देते हुए कहते हैं हैदराबाद में एक स्थानीय निकाय के चुनाव में जिस तरह का जोर भाजपा ने लगाया था , लेकिन वहां भी उनकी दाल नहीं गली और उन्हें मुंह की खानी पड़ी । संभवत हैदराबाद का निकाय चुनाव इतिहास का पहला चुनाव होगा जहां देश के एक से एक भाजपा के बड़े नेता वहां जाकर उस चुनाव को जितने का प्रयास ना किया हो । देश के सभी बड़े नेताओं ने अपनी रैलियां ना की हो और भाषण ना दिया । यहां तक यह लुभाने का प्रयास किया कि यदि उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्य नगर कर दिया जाएगा । लेकिन, इसके बावजूद भाजपा वहां चुनाव नहीं जीत सकी , यही हाल बंगाल में भी होने जा रहा है जिससे घबडाकर स्वयं आत्मघाती हमला कराकर जनता की सहानुभूति पाना चाहती है। दूसरे स्थानीय लोगों का कहना यह भी है कि जनता ममता की सख्ती से ऊब चुकी है और वह बदलाव चाहती है।

जो लोग भारतीय राजनीति में ममता बनर्जी के कांग्रेस से लेकर तृणमूल कांग्रेस के सफर को देख चुके हैं, उन्हें यह अच्छी तरह से पता है कि ममता का रुख हमेशा अड़ियल रहता है। इसलिए राज्य का विकास नहीं हो पाया। वामपंथी जब वहां सत्ता में थे, उस समय भी राज्य का विकास नहीं हुआ जबकि बंगाल को बुद्धिजीवियों का गढ़ माना जाता रहा है। जो भी हो अंत में निर्णय तो जनता को ही करना है । जनता का मन जो जीत लेगा वही राज्य करेगा भले ही उनका शाषण कुशासन ही क्यों ना हो । लेकिन, फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर जो हमला हुआ उसे किसी भी प्रकार से कम नहीं आंकना चाहिए और इसकी निष्पक्ष जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी जनता के सामने लाकर स्थिति साफ होनी चाहिए क्योंकि चुनाव में जीत हार तो एक जनतांत्रिक नियम है जिसके माध्यम से लोकतंत्र को कायम रखा जाता है ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतक विश्लेषक हैं )।

 

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