क्यों महान थे गुरु हनुमान? कुश्ती को चाहिए एक और हनुमान

राजेंद्र सजवान

कुछ साल पहले की बात है एक साक्षात्कार के चलते जाने माने ओलंपियन स्वर्गीय सुदेश कुमार फूट फूट कर रो पड़े थे। जब उनसे पूछा गया कि वह गुरु हनुमान अखाड़े में कैसे आये और कौन उन्हें यहां छोड़ गया तो कुछ पल रुकने के बाद उनकी आंखों से आंसू बह निकले। थोड़ा संभलने के बाद बोले,’भूख मुझे गुरु हनुमान अखाडे में लाई। कई भाई बहन थे, परिवार का गुजारा नहीं चलता यह।

अखाड़ा घर के नजदीक था। पिताजी ने सोचा हनुमान अखाडे छोड़ आता हूँ। परिवार का एक सदस्य अखाड़े में पल जाएगा और कुश्ती भी सीख जाएगा। उनका फैसला एकदम सही था। मुझे पेट भरने और रहने खाने का ठिकाना मिल गया। लेकिन गुरु जी की संगत ने वह दिया जो मेरे मां बाप भी नहीं दे सकते थे।’

कुछ इसी तरह की कहानी ओलंपियन प्रेमनाथ की है। वह भी गरीबी के चलते गुरु हनुमान की शरण में आए और गुदड़ी के लाल निकले। सुदेश की तरह प्रेमनाथ भी कहते थे कि गुरु हनुमान नहीं मिलते तो शायद चोर डकैत बन जाता। लेकिन कमाल देखिए कि दोनों महान पहलवान पुलिस के बड़े अफसर बने। आज दोनों ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके बड़पन और गुरु हनुमान की महिमा का बखान हर कोई करता है। दोनों परिवार गुरु जी की महिमा का गुणगान करते हैं।

दिल्ली एशियाड के स्वर्ण पदक विजेता सतपाल, ओलंपियन और राष्ट्रीय कुश्ती टीम के कोच जगमिंदर, एशियायी खेलों में भारत के लिए दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतने वाले करतार पहलवान, सालों साल राष्ट्रीय कोच रहे द्रोणाचार्य राज सिंह और दर्जनों अन्य ओलंपियन गुरु हनुमान का नाम लेते वक्त भाव विभोर हो जाते हैं।

ऐसा क्यों? इसलिए क्योंकि गुरु हनुमान ने अपना सारा जीवन कुश्ती को दिया। जो पहलवान उन्हें भा गया, उनके मानदंडों पर खरा उतरा, समझ लीजिए उसका जीवन सफल हो गया।

गुरु हनुमान अखाड़े को लेकर अनेक किस्से कहानियां प्रचलित हैं। हनुमान नाम के युवक को स्वर्गीय घनश्याम दास बिड़ला ने अखाड़े की जमीन इसलिए दी क्योंकि हनुमान ने उनके सामने एक महिला की इज्जत बचाई थी।

इनाम के तौर पर हनुमान ने अखाडे के लिए जगह मांगी। यह युवक आगे चल कर गुरु हनुमान कहलाया, जिसने हजारों राष्ट्रीय चैंपियन और सैकड़ो ओलंपियन पहलवान पैदा किए। खुद आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। 99 साल जिया और ऐसा कर गया, जिसने भारतीय कुश्ती का रूप स्वरूप बदल डाला।

खुद गुरु हनुमान और उनके शिष्य कहते थे कि कई स्वतंत्रता सेनानी उनके अखाड़े में जोर करने आते थे। उनमें चंद्रशेखर आज़ाद भी शामिल थे। उनका अखाड़ा देश भक्ति की बड़ी मिसाल माना जाता है। आज के दौर में जबकि अखाड़े खून खराबे और गुंडागिर्दी के अड्डे बनते जा रहे हैं, बिड़ला व्यायामशाला जैसे अखाड़ों और हनुमान जैसे गुरुओं की जरूरत महसूस की जा रही है।

पिछली कुछ घटनाओं पर सरसरी नजर डालें तो भारतीय कुश्ती में सुधार के साथ साथ हिंसा की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। कारण, गुरु खलीफाओं और पहलवानों की महत्वाकांक्षा बढ़ी है। गुरु भ्र्ष्ट हो गए हैं। उनके लिए नाम सम्मान, बड़े बड़े अवार्ड और नेताओं की चाकरी ही सब कुछ है। नतीजा सामने है, अखाड़े असामाजिक तत्वों और माफिया के अड्डे बनते जा रहे हैं।

दिल्ली, हरियाणा, पंजाब महाराष्ट्र, एमपी, यूपी के अनेक अखाड़े इसलिए अपनी पहचान खो रहे हैं क्योंकि उनके गुरु और शिष्य गुरु हनुमान के आदर्शों से भटक गए हैं। अफसोस इस बात का है कि उनके अपने शिष्य भी पिता तुल्य गुरु को भूल रहे हैं।

भले ही आधुनिक कुश्ती गद्दों पर लड़ी जाती है पर गुरु की भूमिका पहले जैसी ही है। आज भी गुरु हनुमान के आदर्श प्रासंगिक हैं। गुरु के तमाम शिष्य भी गांठ बांध लें कि वे जो कुछ हैं गरीब , फकीर , नेकदिल और ब्रह्मचारी गुरु हनुमान की शिक्षा दीक्षा से हैं।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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