कल की विषकन्या, आज का हनीट्रैप

निशिकांत ठाकुर

सत्ता पर काबिज होने के लिए, धन लूटने के लिए आदिकाल से ही तरह तरह के कृत्य किए जाते रहे हैं। युद्ध में यदि पराजित कर सकते हो, तो कर लो। अन्यथा और भी कई तरीके होते थे। उद्देश्य केवल इतना होना चाहिए की दूसरे के धन को कैसे हड़पा जाए ! इसे सत्ता का चरित्र भी कह सकते है। यह सत्ता कुर्सी से ही उपजता है और कुर्सी के लिए ही तमाम प्रपंच रचता है। राजा महाराजा अपने यहां पहले विषकन्या को जन्मकाल से ही तैयार करते थे । ऐसा कोई एक ही राजा करता हो, ऐसा नहीं है। असल में, यह सेना का एक प्रकार से अंग होता था । अपूर्व सुंदरी बालिकाओं को जन्मकाल से ही धीरे धीरे विषपान कराया जाता था। फिर राजकीय शिक्षा, गुप्तचरों की दी जाने वाली शिक्षा प्रमुख थीं। एक सेना के रूप में उपयोग में लाई जाने वाली इन विषकन्याओं का बिलकुल अलग जीवन होता था। यह आम नहीं, बेहद खास मानी जाती थी। इसकी पहचान कुछ लोगों तक ही सीमित होती थी। हालांकि, इसकी पहुंच सीधे व्यवस्था के शीर्ष तक रहती थी।

इसकी प्रक्रिया में किसी रूपवती बालिका को बचपन से ही विष की अल्प मात्रा देकर पाला जाता था और विषैले वृक्ष तथा विषैले प्राणियों के सम्पर्क से उसको अभ्यस्त किया जाता था। इसके अतिरिक्त उसको संगीत और नृत्य की भी शिक्षा दी जाती थी एवं सब प्रकार की छल विधियाँ सिखाई जाती थीं। अवसर आने पर इस विषकन्या को युक्ति और छल के साथ शत्रु के पास भेज दिया जाता था। चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र (ग्रन्थ) में तथा कल्कि पुराण में विषकन्याओं की चर्चा है।

जब राज्य पर कोई विपदा आती थी, तो इनका उपयोग गुप्त रूप में विपक्ष पर होता था, जिसका सीधा प्रहार विपक्ष के उच्चाधिकारी अथवा स्वयं राजा होते थे । इन विषकन्याओं की अपूर्व सुंदरता पर किसी भी पुरुष का मोहित होना कोई अचरज की बात नहीं होती थी । इसलिए उसका सीधा प्रहार राजा अथवा उसके आसपास के विश्वस्त पर किया जाता था । इसका परिणाम यह होता था कि जिसने भी एक बार उस विषकन्या के संपर्क में आने का प्रयास किया , उस पर पोटैसियम सायनाइड से भी अधिक प्रभावी विष का असर होता था । फिर उस राज्य पर कब्जा करना कोई दुरूह नहीं था ।

ऐसा नहीं है कि मैं आज विषकन्या की बात यूं ही कर रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं सुशांत सिंह राजपूत की छलपूर्वक और रहस्यमय तरीके से रची गई हत्या-आत्महत्या के मामले की । एक बहुमुखी प्रतिभा का धनी , अपने आत्मबल से जो कामयाबी की सीढ़ियों पर चढ रहा था। अपने बूते एक के बाद एक नई लकीर खींच रहा था। संभव है उसके कई विरोधी बन गए हों। जो उसकी सफलता की गति से विचलित हों। उसकी जिस निर्दयतापूर्ण हत्या कर दी गई , चाहे वह किसी रूप में हो । उसको लेकर नित्य नवीन बातें सामने आ रही हैं। अब तक देश के सबसे अधिक भरोसेमंद संस्था ने जांच का जिम्मा अपने हाथों में लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी आश्वस्ति दी है।

जरा सोचिए, सुशांत केस में जिस प्रकार से रिया चक्रवर्ती का नाम आ रहा है, आपके मन में क्या चल रहा है ? पहले बिहार पुलिस ने, उसके बाद ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने उससे पूछताछ की। अब सीबीआई ने भी उसको लेकर आंख तरेरी है। क्या आपको भी राजा-महराजाओं के काल की किसी विषकन्या की याद ताजा हो जाती है! जिस विषकन्या का हम जिक्र कर रहे हैं, उसे आज के समय में हनीट्रेप कहते हैं। पुरातन व्यवस्था में विषकन्या और 21वीं सदी के अतिआधुनिक समाज में उसे हनीट्रेप ही तो कहा जाता है।

इस हनीट्रेप का प्रचलन विश्व के लगभग सभी देशों में है। भारत में तो आदि काल से विषकन्या के रूप में होता ही आया है । उसमें यही होता है धनवानों को अपने रूप-जाल में फंसाओ। फिर मौका मिलते ही उसे गहरी नींद सुलाकर सब कुछ लूटकर पतली गली से बाहर निकाल जाओ। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी लगभग ऐसा ही कुछ हुआ होगा।वैसे सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय सीबीआई द्वारा जांच किए जाने का आया है उसमें दूध का दूध पानी का पानी तो होगा ही। क्योंकि सीबीआई जांच पर लोगों का विश्वास आज भी कायम है और आगे भी रहेगा । वैसे आरोप से वह भी परे नहीं है , लेकिन मानव स्वभाव के इस उलझन को सुधारना कठिन है ।

समझ में नहीं आता कि सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत को इतने दिनों तक मुंबई पुलिस ने उलझाकर क्यों रखा ? उसके बाद महाराष्ट्र सरकार और पुलिस का यह दावा की वह इतने दिनों से जांच कर रही थी अबूझ है । यदि आपके पास कोई लिखित कानूनी दस्तावेज नहीं है, तो आप किस बात की जांच कर रहे हैं, वैसे भी प्रश्न महाराष्ट्र पुलिस से ढेरों है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तो यह साफ हो ही गया कि वहां कोई जांच की कार्यवाही नहीं की जा रही थी। बल्कि मामले को उलझकर इसलिए रखा जा रहा था कि कुछ दिनों में बात पुरानी हों जाएगी और लोग धीरे धीरे इस प्रकरण को भूलते जाएंगे ।

फिर जैसा की होता आया है कि यह कहकर इस फाइल को बन्द कर दिया जाएगा कि मामला आत्महत्या का ही है । फिर एक हत्या के विवाद को रद्दी की टोकरी में डालकर सदा के लिए खत्म कर दिया जाता । अब सीबीआई इस बात को भी देखेगी की मूल अपराधी से हटाकर क्यों इतने दिनों तक अन्य तथा कथित नमी गिरामी लोगो से पूछताछ कर समय जाया करती रही है । इतने अपराध देश में रोज होते हैं कौन किसका हिसाब रखता है , लोग ऐसे आते जाते रहते है कौन किस किस की फिक्र करे और सरकार के पास ढेरों विवाद रोज आते रहते हैं सरकार के किसी खास के साथ तो ऐसा कुछ हुआ नहीं फिर वह केवल एक अदना सा विवाद को लेकर इतना चिंतित क्यों हो ? भला हो सुप्रीकोर्ट का जिन्होंने मृतक पक्ष के परिवार के दुख को समझते हुए उसके पक्ष में सहानुभूतिपूर्वक फैसला दिया कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई इस मामले की जांच करेगी ।

यह लिखे जाने तक सीबीआई की जांच टीम मुंबई पहुंच गई है। ब्रांदा पुलिस से तमाम दस्तावेज अपने कब्जे में ले चुकी है। वहां डीआरडीओ गेस्ट हाउस में सीबीआई जिसे चाहेगी, बेधडक बुला सकती है। यह सीबीआई की जद में है। केंद्रीय सरकार ने उसे इसके लिए छूट दी गई है। हालांकि, कई आरोप प्रत्यारोप भी जांच एजेंसी पर लगेंगे , लेकिन सत्य को खोज निकालना वह जानती है और जांच के बाद कुछ न कुछ तो हल निकलेगा ही । एक बात जो केवल संदेह ही पैदा करता है कि मुंबई पुलिस ने ढेर सारे तथाकथित दो महीने तक जांच करती रही उसका फल क्या निकला और जिन जिन बड़े बाप के बेटे का नाम इस साजिश में भाग लेने में आ रहा है वे कौन हैं । यदि वे जांच एजेंसी की पकड़ में आ गए तो फिर उन पर कई और हत्या के लिए जांच की जाएगी । सच तो यह है कि यह शातिर माफिया गैंग के सदस्य रहे हैं तथा कई हत्या को अंजाम दे चुके है, लेकिन इनकी पहुंच इतनी ऊंचाई तक है कि हर कोई चाहते हुए भी इनका कोई बाल बांका नहीं कर पा रहा है । आज महाराष्ट्र ही नहीं देश का हर कोई जनता है इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने वाले कौन लोग है , लेकिन किसी की इतनी हिम्मत नहीं की उन सफेदपोशों के गिरेबान में हाथ डाल सके । वैसे सीबीआई की विश्वनीयता पर शक की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन कुछ मामलों की जांच में उनकी विश्वसनीयता घटी है , पर सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी ऐसा होगा अभी से इस जॉच एजेंसी की कार्यप्रणाली पर कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया देना उचित नहीं है । वैसे इस एजेंसी को दुरूह केसों की जांच करने का जिम्मा दिया जाता है, जिसमे कभी किसी एक में असफलता हाथ लग जाए तो सबके लिए ऐसा मान लेना पूर्वाग्रह से ग्रसित होना ही माना जाएगा । इंतजार कीजिए और आगे आगे देखिए क्या होता है। अब कई बड़े निदेशको को दिल का दौरा पड़ेगा अथवा वह पागल होकर नंग धड़ंग मुंबई की गलियों में घूमते नजर आएंगे, तुतलाते वाले तथाकथित महान कलाकार स्थाई रूप से तुतलाते फुटपाथ पर नजर आएंगे । कुछ गुंडे राजनीतिज्ञ पतली गली से हाथ में चप्पल उठाए भागते दिख जाएंगे। बस, थोड़ा इंतजार करिए ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)।

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