चीन और पाकिस्तान से लोहा लेने वाले फ़ौजी ने कैसे जीती द्रोणाचार्य अवॉर्ड की जंग!

राजेंद्र सजवान

उस समय जबकि भारतीय कुश्ती में गुरु हनुमान बिड़ला व्यायामशाला के पहलवान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में धूम मचा रहे थे, आजादपुर मंडी  स्थित कैप्टन चाँदरूप अखाड़ा चुपके चुपके पीछा कर रहा था और फिर एक दिन वह भी आया जब दोनों अखाड़ों में जैसे होड़ सी लग गई। गुरु हनुमान जैसे यशस्वी की टक्कर में एक फ़ौजी आ खड़ा हुआ था।

शुरुआती दिनों में उसे किसी ने ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया।  लेकिन जब उसके शिष्यों ने देश के तमाम अखाड़ों के पहलवानों को ललकारना शुरू कर दिया तो देश का सुपर अखाड़ा भी एक बार सन्न रह गया।

चीन के विरुद्ध 1962 और फिर 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जौहर दिखाने वाले फ़ौजी चाँदरूप ने जब अखाड़ा खोलने का फ़ैसला किया तो कुछ लोगों ने उनकी हँसी उड़ाई और कहा कि एक तो फ़ौजी और ऊपर से पहलवान, लगता है इस लौंडे  का दिमाग़ खराब हो गया है। लेकिन वह जान चुका था कि पूरा जीवन कुश्ती को देना है।

परिवारिक  दायत्वों के निर्वाह और देश सेवा की भावना ने उसे फ़ौजी बनाया तो 1979 मे सेना से सेवा निवृत होने के बाद वैदिक व्यायामशाला की शुरुआत की जिसे बाद में कैप्टन चाँदरूप अखाड़े के नाम से जाना गया।

उनके शिष्यों नेत्रपाल और विजय कुमार बाल्मिकी ने जब देश के धुरंधर पहलवानों को परास्त कर ‘भारत केसरी’ का खिताब जीता तो दिल्ली और देश के अखाड़ों में जैसे हड़कंप मच गया। हँसी उड़नेवालों की बोलती बंद हो गई। विजय कुमार ने तो एक साथ भारत कुमार और भारत केसरी के खिताब जीत कर तहलका मचाया। सफलता की यह कहानी यहीं नहीं रुकी।

उनके शिष्यों ने दिल्ली और देश के लिए रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन सुरू किया, जोकि आज तक जारी है। पाँच ओलंपियन, दर्जनों एशियाड और कामनवेल्थ पदक विजेता और सैकड़ों राष्ट्रीय चैम्पियन पैदा करने वाले गुरु को अंततः द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित किया गया|

लेकिन यह सम्मान पाने के लिए कैप्टन चाँद रूप और उनके शिष्यों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी, शायद चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध भी उन्हें इतना पसीना नही बहाना बनाना पड़ा था।  परिवारिक ज़िम्मेदारियों को निभाते निभाते और कुछ प्रियजनों को खोने के बाद वह बुरी तरह टूट चुके थे। उन्हें अधरंग हुआ और व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ा। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और पहलवानों को सिखाना पढ़ाना जारी रखा और साथ ही द्रोणाचार्य अवार्ड की लड़ाई भी लड़ी।

तारीफ की बात यह है कि वह ऐसे पहले गुरु थे जिनके हक की लड़ाई में मीडिया भी कूद पड़ा था और आख़िरकार, खेल अवार्डों के सौदागरों को उनकी उपलब्धियों का सम्मान करना पड़ा। अपने गुरु को सम्मान दिलाने में अशोक गर्ग, रोहताश दहिया,ओमवीर और साई कोच अशोक ढाका के प्रयास सराहनीय रहे।
नेत्रपाल, विजय कुमार और ओमवीर जैसे चैम्पियनों के अलावा रोहतश दहिया, अशोक गर्ग, धर्मवीर, रमेश भूरा जैसे नामी ओलम्पियनों के प्रदर्शन ने अपने महान गुरु की महिमा को चार चाँद लगा दिए|। चार ओलंपियन, पाँच अर्जुन अवार्दी, एशियाई खेलों में 15 पदक, राष्ट्रमंडल खेलों में 10 पदक, दक्षिण एशियाई खेलों में 20पदक और अनेकों राष्ट्रीय चैम्पियन चाँदरूप अखाड़े की शान रहे हैं। दादा के बाद पोते अमित ढाका ने अखाड़े की कमान संभाली है।

अमित ने अखाड़े को अत्याधुनिक बना कर पहलवानों की नयी फसल तैयार करने का बीड़ा उठाया है। वह एक पढ़ा लिखा युवक है और गुरु द्रोणाचार्य कैप्टन चाँदरूप के नक्शे कदम पर चलकर अखाड़े को फिर से उँचाइयों पर देखना चाहता है।

(लेखर वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

 

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