दूसरी आजादी का सपना दिखाने वाले आज हैं सर्वाधिक प्रासंगिक

डाॅक्टर धनंजय गिरि

मनुष्य का आकलन इस आधार पर किया जाता है कि वह अपने देशकाल में और उसके बाद के समय में कैसा याद किया रहा है ? उसके विचारों की प्रासंगिकता कितने वर्षों तक है। इस हिसाब से देखा जाए तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने समय से अधिक आज प्रासंगिक हैं। उनके संपूर्ण क्रांति और दूसरी आजादी का उदघोष 21वीं सदी में कई बार हुआ है। आज भी हो रहा है। 11 अक्टूबर को बिहार के सिताब दियारा में 1902 में जन्म हुआ जय प्रकाश नारायण का। वह शख्स जिसने देश भर के युवाओं को झकझोरा और दिया संपूर्ण क्रांति का नारा और दिखाया दूसरी आजादी का सपना। उसे लोक ने नाम दिया लोक नायक।
आज ही के दिन 1902 में जेपी ने सिताबदियारा में जन्म लेकर देश में इतिहास रच दिया। जयंती पर उन्हें कोई याद करने उनके गांव पहुंचे या न पहुंचे कोई फर्क नहीं पड़ता। गांव के बुजुर्ग, युवा सभी उनकी जयंती पर उनका गुणगान करते नहीं थकते। गांव के वे बुजुर्ग जिन्होंने जेपी को करीब से देखा है वे तो आज भी गर्व से कहते हैं मेरे गांव के लाल में तो वह ताकत थी कि संपूर्ण क्रांति आंदोलन के तहत केंद्र सरकार का तख्ता ही पलट दिया था। जयप्रकाश पूरे देश की आवाज थे।
वह जेपी ही थे जिनके आंदोलन से घबराईं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल घोषित कर दिया। इसे देश के लोकतंत्र का काला अध्याय माना जाता है। जेपी के आंदोलन का ही असर था, जिसने आयरन लेडी के नाम से मशहूर इंदिरा की सत्ता हिलाकर रख दी। जेपी की जनसभाओं में उमड़ते जनसैलाब को देख इंदिरा को सत्ता जाने का डर सताने लगा और उन्होंने देश में आपातकाल लगाकर जेपी समेत सैकड़ों नेताओं को जेल में डाल दिया। जेपी तब देश में भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे। इंदिरा सरकार की तरफ से तर्क यह दिया गया कि विदेशी फंड पर जेपी आंदोलन चलाकर देश में शांति भंग कर रहे हैं।

जेपी स्वतंत्रता संग्राम में तो शामिल थे ही, साल 1977 देश में देश की जनता के लिए संघर्ष करते रहे। उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूंज रहा है। जेपी के व्यक्तित्व से बहुत कुछ ऐसा सीखा जा सकता है, जिससे कोई भी देश ही नहीं खुद भी मजबूत हो सकता है, एक सार्थक जीवन बिता सकता है। समाज, जन कल्याण, देशहित जिनके लिए सबसे ऊपर था। जो जीवन भर समाज के अंतिम आदमी की लड़ाई लड़ते रहे। जिनकी एक आवाज पर लोग मर मिटने को तैयार हुए। अपने चहेते नेता को जनता ने ‘लोकनायक’ की उपाधि से नवाजा। जीवन भर जनता की आवाज उठाते रहे जयप्रकाश नारायण की शख्सियत ऐसी रही कि जो भी उनसे मिला उनका मुरीद हो गया। उनके आभामंडल के संपर्क में आते ही लोगों में देशप्रेम की लहर सी उठ जाती। उनके सानिध्य में लोग सरकार की दमनकारी नीतियों और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने लगते।।
जिस सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक क्रांति के लिए जेपी ने आह्वान किया था वह आज भी भारत में कहीं नजर नहीं आती है। सत्ताई तानाशाही और सार्वजनिक जीवन के कदाचरण के विरुद्ध जेपी ने समग्र क्रांति का बिगुल फूंका था। अपनी बेटी के समान प्रिय इंदिरा गांधी के साथ उनके मतभेद असल में व्यवस्थागत थे बुनियादी रूप से शासन में भ्रष्ट आचरण को लेकर जेपी यह मानते थे कि देश की जनता के साथ छलावा किया जा रहा है जिस उद्देश्य से गांधी और अन्य नेताओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी उसे इंदिरा औऱ कांग्रेस ने महज सत्ता तक सीमित करके रख दिया है।
देश में आजादी की लड़ाई से लेकर वर्ष 1977 तक तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले मेरे गांव के लाल जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का नाम देश के ऐसे शख्स के रूप में उभरता है जिन्होंने अपने विचारों दर्शन तथा व्यक्तित्व से देश की दिशा तय की थी। उनका नाम लेते ही एक साथ उनके बारे में लोगों के मन में कई छवि उभरती हैं। लोकनायक के शब्द को असलियत में चरितार्थ करने वाले जयप्रकाश नारायण अत्यंत समर्पित जननायक और मानवतावादी चिंतक तो थे ही इसके साथ-साथ उनकी छवि अत्यंत शालीन और मर्यादित सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की भी है। उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूंज रहा है।
जेपी की विरासत है तो बहुत लंबी पर आज निष्पक्ष होकर कहा जा सकता है कि जो वैचारिक हश्र गांधी का कांग्रेस की मौजूदा पीढ़ियों ने किया है, वही मजाक जेपी और समाजवादी आंदोलन के लोहिया, नरेंद्र देव, बिनोवा, अच्युत पटवर्द्धन, अशोक मेहता, मीनू मसानी, जनेश्वर मिश्र जैसे नेताओं के साथ उनके काफिले में चलने वाले समाजवादी नेताओं ने किया। आज लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, हुकुमदेव यादव, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, मुलायम सिंह, मोहन, विजय गोयल, आजम खान, स्वर्गीय रामविलास पासवान, रेवतीरमण सिह, केसी त्यागी, स्व अरुण जेटली, स्वर्गीय सुषमा स्वराज, बीजू पटनायक, चरण सिंह से लेकर उतर भारत और पश्चिमी भारत के सभी राज्यों में जेपी आंदोलन के नेताओं की 60 प्लस पीढ़ी सक्रिय हैं। इनमें से अधिकतर केंद्र और राज्यों की सरकारों में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।

11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर विशेष

सवाल यह उठाया ही जाना चाहिए कि जिस नवनिर्माण के लिए जेपी जैसी शख्सियत ने कांग्रेस में अपनी असरदार हैसियत को छोड़कर समाजवाद और गांधीवाद का रास्ता चुना उस जेपी के अनुयायियों ने देश के पुनर्निर्माण में क्या योगदान दिया है? लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है— राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है। सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जय प्रकाश नारायण जिनकी हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जे॰ पी॰ के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे।
आज जेपी के पुण्य स्मरण के साथ उनकी विरासत के पुनर्मूल्यांकन की भी आवश्यकता है। हकीकत यह है कि भारत से समाजवाद का अंत इसी के उपासकों ने कर लिया है। भारत में जेपी को आज एक महान विचारक और सत्ता से सिद्धांतो के लिए जूझने वाले योद्धा की तरह याद किया जाएगा। इस त्रासदी के साथ कि उनके अनुयायियों ने उनके विचारों के साथ व्यभिचार की सीमा तक अन्याय किया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा था-”

क्षमा करो बापू तुम हमको
वचनभंग के हम अपराधी
राजघाट को किया अपावन ,भूले मंजिल यात्रा आधी। जयप्रकाश जी रखो भरोसा
टूटे सपनों को जोड़ेंगे
चिता भस्म की चिंगारी से
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे”
टूटते विश्वास के इस तिमिर में आशा कीजिए अटल जी की बात सच साबित हो।

(लेकर सामाजिक-राजनीतिक विचारक हैं।)

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