पश्चिम बंगाल में 23 साल बाद शुरू होगा मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में 23 वर्षों के अंतराल के बाद मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) शुरू होने जा रहा है। चुनाव आयोग (ECI) द्वारा इस कार्य के लिए सभी तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं और अधिकारियों के अनुसार यह प्रक्रिया जुलाई के अंतिम सप्ताह से या अगस्त के पहले सप्ताह से शुरू हो सकती है।
जनवरी 2002 में पिछली बार राज्य में SIR हुआ था, जब राज्य में वाम मोर्चा की सरकार थी। अब एक बार फिर यह प्रक्रिया शुरू की जा रही है, जो कि मई 2026 में संभावित विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
SIR के तहत घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन किया जाएगा और फर्जी मतदाता पहचान पत्र रखने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अधिकार आयोग के पास रहेगा।
हालाँकि इस प्रक्रिया को लेकर राज्य में राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कवायद को लेकर गंभीर आपत्ति जताई है और आरोप लगाया है कि इसका असली उद्देश्य पश्चिम बंगाल में NRC लागू करना है। उन्होंने कहा, “SIR की शुरुआत बिहार में हुई, लेकिन निशाना पश्चिम बंगाल को बनाया जा रहा है। यह एक सोची-समझी साजिश है। रोहिंग्या कहां से पश्चिम बंगाल में आ गए? यह फर्जी प्रचार किया जा रहा है ताकि असली मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए जाएं। अगर रोहिंग्या हैं तो उनके पते बताएं।”
दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस प्रक्रिया का जोरदार स्वागत किया है। विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया कि बड़ी संख्या में रोहिंग्या घुसपैठियों ने त्रिणमूल कांग्रेस और राज्य प्रशासन की मदद से खुद को मतदाता सूची में दर्ज करा लिया है।
उन्होंने कहा, “बिहार में SIR के दौरान लाखों रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान की गई। इसी तरह, कई रोहिंग्या पश्चिम बंगाल में भी नेपाल और बांग्लादेश की सीमा पार कर घुसे हैं। ऐसे मतदाताओं की पहचान के लिए तत्काल घर-घर जाकर पुनरीक्षण की आवश्यकता है।”
हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष के इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा, “यह सब भाजपा द्वारा फैलाया गया झूठा प्रचार है ताकि बंगाल के असली मतदाताओं को सूची से हटाया जा सके। हम ऐसा होने नहीं देंगे।”
जैसे-जैसे SIR की शुरुआत नजदीक आ रही है, बंगाल की राजनीति में इसका असर साफ़ तौर पर देखा जा रहा है। यह प्रक्रिया आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की पारदर्शिता को लेकर एक अहम कदम मानी जा रही है — लेकिन साथ ही यह राज्य की राजनीति में नया विवाद भी पैदा कर रही है।