एएडी ने डीयू में सहायक प्रोफेसरों के पदों के लिए प्रवासी नागरिकों को आवेदन की अनुमति का आदेश को रद्द करने की मांग की
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसरों के पदों के लिए प्रवासी नागरिकों को आवेदन की अनुमति का आदेश दिया गया जिसका विरोध होना शुरू हो गया है। एकेडेमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (एएडी) ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि प्रवासी नागरिकों को आवेदन की अनुमति का आदेश को वापस लिया जाय।
प्रेस प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए प्रोफ़ेसर ऋचा राज, प्रोफ़ेसर एसबीएन तिवारी, प्रोफ़ेसर अशोक और प्रोफ़ेसर राजेश झा ने कहा कि, एएडी सहायक प्रोफेसरों के पदों के लिए आवेदन करने के लिए भारत के प्रवासी नागरिकों (ओसीआई) को अनुमति देने के प्रावधान को रद्द करने की जोरदार मांग करता है, जिसका प्रावधान दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) दिनांक 20 सितंबर 2021 के विज्ञापन में किया गया है।
उन्होंने कहा कि, यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति- एनईपी 2020 से उपजा है, जो ‘घरेलू’ और ‘मिट्टी की बेटियों’ प्रतिभाओं को, विशेष रूप से एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों के उच्च शिक्षा के शिक्षण के मार्ग को और दुरूह और कठिन बनाएगा।“
“हमें इस बात को भूलना नहीं चाहिए की इन प्रतिभाओं ने इस स्तर की योग्यताओं को हासिल करने के लिए दिन-रात एक कर दिया है और कठिन परिस्थियों में सघर्ष कर रहे हैं। यह एनईपी का हिस्सा है, जो कि उच्च वेतन और भत्तों के साथ विदेशियों को शिक्षण की नौकरी करने की ना सिर्फ अनुमति देता है, बल्कि प्रोत्साहित भी करता है।“
एएडी ने कहा कि, “ध्यान रखने की बात ये है कि पूर्ण रूप से नामांकित निकाय – बीओजी (बोर्ड ऑफ गवर्नर्स) के द्वारा अन्य घरेलू भारतीय शिक्षकों की तुलना में विदेशी शिक्षकों के लिए उच्चतर वेतन और भत्ते तय जा सकते हैं। यह डीयू में हजारों तदर्थ और अस्थायी शिक्षकों के समायोजन में एक बाधा है और उनके सिर पर लटकी हुई तलवार को और मारक बना देता है।“
डीयू का यह निर्णय ओसीआई नीति के अनुरूप नहीं है है, जो यह प्रावधान करता है कि “ओसीआई कार्ड धारक वोट देने का हकदार नहीं है। वह आम तौर पर सरकारी क्षेत्र में रोजगार नहीं कर सकते हैं।” यह भी कहता है कि ओसीआई कार्ड धारक भारत में किसी भी शोध कार्य को करने के हकदार नहीं हैं। दूसरे, इस तरह की एक बड़ी नीतिगत बदलाव, जो सेवा शर्तों से भी संबंधित है, पर ना तो वैधानिक निकायों द्वारा – एसी और ईसी में कोई चर्चा की गई और ना ही स्वीकृति ली गयी।“