पद्मश्री के साथ चला गया भारत रत्न का हकदार!
राजेंद्र सजवान
आज़ाद भारत के श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी, तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता, ओलंपिक फाइनल में सर्वाधिक गोलों का कीर्तिमान स्थापित करने वाले ‘पद्मश्री’बलबीर सीनियर का निधन भारतीय हॉकी और देश के लिए बड़ी क्षति कहना इसलिए ठीक सा नहीं लगता क्योंकि अपना सबकुछ देश पर समर्पित करने वाले महान खिलाड़ी को आख़िर इस देश ने दिया ही क्या है? एक अदना पद्मश्री सम्मान, जिसे हर ऐरा ग़ैरा लिए फिरता है|
जी हाँ, 1948, 1952 और फिर1956 में जब उन्होने देश के लिए ओलंपिक स्वर्ण पदकों की तिकड़ी जमाई तो सरकार ने 1957 में उन्हें पदम पुरस्कार के काबिल समझा| जिस खेल को आज तक राष्ट्रीय खेल का अघोषित दर्ज़ा दिया जाता रहा है, उसके चैम्पियन खिलाड़ी के प्रति सरकार का नज़रिया हमेश से निंदनीय रहा है| पहले दद्दा ध्यानचन्द और फिर बलबीर जी की हमेशा अनदेखी की गई|
हैरानी वाली बात यह है हॉकी जादूगर ध्यान चन्द को भारत रत्न देने की माँग वर्षों तक की जाती रही| हॉकी फ़ेडेरेशन, खिलाड़ियों और हॉकी प्रेमियों ने जब तब आवाज़ बुलंद की लेकिन नक्कारखाने में तूती बजी और अपने आप शांत होती रही| रह रह कर बलबीर सीनियर को भारत रत्न देने की भी बात चली लेकिन किसी ने नहीं सुनी| ख़ासकर, क्रिकेट की खाने वाली सरकारें गूंगी बहरी हो गईं| भारत रत्न तो दूर की बात है, बलबीर को तो पद्म श्री से आगे भी नहीं बढ़ने दिया गया, जबकि कई महारथी जिन्होने कद्दू पर भी तीर नहीं चलाया, पद्म भूषण और विभूषण ले उड़े| इस बारे में जब ज़िम्मेदार लोगों से पूछा गया तो उन्होने बेहद हास्यास्पद जवाब दिया और कहा कि बलबीर ने कभी आवेदन ही नहीं किया|
इस बीच वह कनाडा में भी रहने लगे थे| उन्हें कौन समझाए कि खेले तो भारत के लिए थे| अर्थात एक महान खिलाड़ी को भीख माँगने के लिए कहा गया| नेताओं की चमचागिरी करने वाले और सरकारी भ्रष्टाचार में पले बढ़े कई खिलाड़ी, जिन्होने सिर्फ़ एशियाड में पदक जीता और पद्म पुरस्कार के हकदार बन गये| एक ओलंपिक कांस्य जीतने वाले भी पद्म विभूषण बने बैठे हैं|
भारतीय हाकी के पतन का कारण अब कुछ कुछ समझ आता है और पता चलता है कि अपने चैम्पियनों का हमने कभी आदर सम्मान नहीं किया| खेल प्रेमी पूछते हैं कि जब सचिन तेंदुलकर भारत रत्न हो सकते हैं तो हिटलर और तमाम दुनियाँ को अपनी हॉकी से नचाने वाले दद्दा और सरदार जी ने कौनसा गुनाह किया था? क्यों उन्हें मौत के मुहाने तक रुसवाई झेलनी पड़ी? यह ना भूलें कि इस देश में मृत लोगों के कच्चे चिट्ठे खंगालने की परंपरा रही है और उन्हें कब्र से निकालकर, उनकी राख पर लांछन लगाए जाते हैं| तो फिर बलबीर सीनियर को सम्मान देने के बारे में क्यों नहीं सोचा जा सकता? हमारे कई नेता तो जीते जी गाली खाते रहे पर मरने के बाद भारत रत्न बन गए| एक पते की बात यह भी है कि बलबीर सीनियर के ओलंपिक पदक भारतीय खेल प्राधिकरण(साई) से कहीं गुम हो गये थे, जिस कारण से वह हमेशा दुखी रहे| फिर भला ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है!
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं।)