जनता को संवेदनशील बना रही है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: बच्ची के जन्म और उसके अधिकारों के प्रति समाज में व्यावहारिक बदलाव लाने के मकसद से 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में माननीय प्रधानमंत्री ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना की शुरुआत की। इससे जागरूकता बढ़ाने और लैंगिक भेदभाव को खत्म करने में समुदाय की भूमिका को लेकर जनता में संवेदनशीलता बढ़ी है। पिछले 6 वर्षों के दौरान जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) 2014-15 के 918 से 16 अंक बढ़कर 2019-20 में 934 हो गया है। माध्यमिक स्तर पर स्कूलों में लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात 77.45 से बढ़कर 81.32 हो गया है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ : अब तक की उपलब्धियां
शुरुआत से लेकर बीते 6 वर्षों के दौरान बीबीबीपी योजना बालिकाओं के अधिकारों को स्वीकार करने के लिए जनता की मानसिकता को बदलने की दिशा में काम करती रही है। इस योजना के परिणामस्वरूप लैंगिक भेदभाव की व्यापकता और इसे खत्म करने में समुदाय की भूमिका को लेकर आम लोगों में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ी है। इसने भारत में सीएसआर में गिरावट के मुद्दे पर चिंता जताई है। अभियान का समर्थन करने वाले लोगों की सामूहिक चेतना के परिणामस्वरूप, जनता में बीबीबीपी की चर्चा शुरू हुई है।
निगरानी योग्य लक्ष्यों के संदर्भ में प्रगति :
1- जन्म के समय लिंगानुपात
जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में राष्ट्रीय स्तर पर सुधार देखा गया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के एचएमआईएस आकड़ों के अनुसार एसआरबी में 918 (2014-15) के मुकाबले 16 अंकों का सुधार होकर 934 (2019-20) हो गया है।
बीबीबीपी के तहत कवर किए गए 640 जिलों में से 422 जिलों में 2014-15 से लेकर 2018-19 तक सुधार दिखा है।
2014-15 में कुछ जिलों में एसआरबी बहुत कम था, योजना के कार्यान्वयन के बाद वहां काफी सुधार दिखा है जैसे- मऊ (उत्तर प्रदेश) में 694 (2014-15) से 951 (2019-20), करनाल (हरियाणा) 758 (2014-15) से 898 (2019-20), महेंद्रगढ़ (हरियाणा) 791 (2014-15) से 919 (2019-20), रेवाड़ी (हरियाणा) 803 (2014-15) से 924 (2019-20) और पटियाला (पंजाब) 847 (2014-15) से 933 (2019-20)।
2- स्वास्थ्य:
पहली तिमाही के एएनसी पंजीकरण प्रतिशत में 2014-15 के 61 प्रतिशत से 2019-20 में 71 प्रतिशत का सुधार दिखा है। (एचएमआईएस, एमओएच एंड एफडब्ल्यू के अनुसार)
संस्थागत प्रसव के प्रतिशत में भी 2014-15 के 87 प्रतिशत से 2019-20 में 94 प्रतिशत तक का सुधार दिखा है। (एचएमआईएस, एमओएच एंड एफडब्ल्यू)
3- शिक्षा:
यूडीआईएसई डाटा के अनुसार स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के सकल नामांकन अनुपात में 77.45 (2014-15) से 81.32 (2018-19 अनंतिम आंकड़े) का सुधार हुआ है।
लड़कियों के लिए अलग बनाए गए शौचालय वाले स्कूलों का प्रतिशत 2014-15 के 92.1 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 95.1 प्रतिशत हो गया है। (यूडीआईएसई डाटा के अनुसार, 2018-19 अनंतिम आंकड़ा)
व्यवहार में परिवर्तन:
बीबीबीपी योजना कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों में शिक्षा की कमी और जीवन चक्र के अधिकारों से वंचित करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल रही है। यह योजना बालिकाओं से संबंधित पूर्वाग्रह को खत्म करने के लिए समुदाय के साथ जुड़ने और बच्ची के जन्म को उत्सव की तरह मनाने के लिए नई प्रथाओं की शुरुआत करने में सफल रही है।
बीबीबीपी के लोगो को काफी सराहा और लोगों द्वारा स्वीकार किया गया है। लोग अपनी प्रतिबद्धता जताने के लिए बीबीबीपी के लोगो का उपयोग स्कूली बसों, भवनों, स्टेशनरी, परिवहन वाहनों आदि पर अपनी इच्छा से कर रहे हैं। लोकप्रिय भारतीय त्योहारों जैसे लोहड़ी, कलश यात्रा, राखी, गणेश चतुर्दशी पंडाल, फूलों के त्योहार आदि में लोगो का इस्तेमाल हुआ है।
लड़कों के जन्म के समय होने वाले रीति-रिवाज की तरह लड़की के जन्म को भी मनाने जैसे- कुआं पूजन, थाली बजाना आदि के लिए अग्रिम पंक्ति के सरकारी कर्मचारी समुदाय के स्तर पर काम कर रहे हैं। बालिकाओं की महत्ता को समझाने के लिए अब समुदाय के स्तर पर और अस्पतालों में प्रशासन द्वारा माताओं और बच्चियों को सम्मानित किया जा रहा है। बेटी जन्मोत्सव हर जिले में मनाया जाने वाला प्रमुख कार्यक्रम है।