जून 2021 तक मौजूदा स्तर पर ही रहेगा महंगाई भत्त्ता: केंद्र सरकार

अंकित कुमार

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने अपने एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों और पेशेंनभोगियों को दिये जाने वाले महंगाई भत्ते और महंगाई राहत को 30 जून 2021 तक मौजूदा स्तर पर ही जारी रखने का निर्देश दिया है। राज्य सरकारें भी केन्द्र के इस निर्णय को अपना सकती हैं। केन्द्र और राज्य दोनों के इस फैसले  से कुल मिलाकर 1.20 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी और इससे उन्हें कोरोना वायरस महामारी का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।

वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है, कि, ” कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट को देखते हुये यह निर्णय लिया गया है कि केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को एक जनवरी 2020 से मिलने वाली महंगाई भत्ते (डीए) और पेंशन भोगियों का दी जाने वाली महंगाई राहत (डीआर) की किस्त का भुगतान नहीं किया जायेगा।”

इसके साथ ही एक जुलाई 2020 और एक जनवरी 2021 में दी जाने वाली डीए और डीआर की अतिरिक्त किस्तों का भी भुगतान नहीं होगा। इसमें स्पष्ट किया गया है कि केन्द्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को 30 जून 2021 तक मौजूदा 17 प्रतिशत की दर से डीए और डीआर का भुगतान होता रहेगा।

हालांकि, सरकार एक जुलाई 2021 के बाद जब भी डीए और डीआर की नई किस्त जारी करेगी तब पिछली अवधि के दौरान महंगाई में हुई वृद्धि को इसमें शामिल कर लिया जायेगा। केन्द्र सरकार ने पिछले महीने ही अपने कर्मचारियों के लिये महंगाई भत्ते में चार प्रतिशत वृद्धि की घोषणा की थी, यह वृद्धि एक जनवरी 2020 से लागू होनी थी। इस वृद्धि का चालू वित्त वर्ष 2020- 21 के दौरान सरकारी खजाने पर कुल 27,100 करोड़ रुपये का बोझ पड़ना था, लेकिन महंगाई भत्ते की इस बढ़ी किस्त का भुगतान अभी रोक दिया गया है।

सामान्य तौर पर हर साल जनवरी और जुलाई में दो बार केन्द्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिये महंगाई दर में हुई वृद्धि के अनुरूप महंगाई भत्ते का निर्धारण किया जाता है। सूत्रों के अनुसार, सरकारी कर्मचारियों तथा पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते में वृद्धि को रोकने के इस कदम से सरकार को चालू वित्त वर्ष 2020-21 और अगले वित्त वर्ष 2021-22 में कुल मिलाकर 37,530 करोड़ रुपये की बचत होगी।

आमतौर पर यदि इस मामले में राज्य सरकारें भी केंद्र सरकार का अनुसरण करती हैं, तो राज्य सरकारों को इस अवधि में महंगाई भत्ते की बढ़ी दर का भुगतान नहीं करने से 82,566 करोड़ रुपये तक की बचत होगी। कुल मिलाकर केंद्र और राज्यों के स्तर पर इससे 1.20 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी, इससे सरकारों को राजस्व के संग्रह में आ रही कमी के संकट से जूझने में मदद मिलेगी।

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