अक्षय तृतीया का परशुराम जयंती से क्या संबंध है, जाने!

 

शिवानी रजवारिया

नई दिल्ली: सनातन धर्म में वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। अक्षय तृतीया को हर साल बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल लॉक डाउन के बीच अक्षय तृतीया 26 अप्रैल को मनाई जाएगी। हालांकि अक्षय तृतीया सुबह 10:28 से प्रारंभ होकर 26 अप्रैल को 11:12 तक रहेगी। वैसे तो अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती को एक ही दिन मनाया जाता है लेकिन इस बार पूरे देश में भगवान परशुराम की जयंती 25 अप्रैल को मनाई जा रही है। तृतीया तिथि प्रदोष में होने के कारण अक्षय तृतीया को 26 अप्रैल को मनाया जाएगा।

भगवान परशुराम जयंती

भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के पावन दिन हुआ था इसीलिए अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार थे। भगवान परशुराम की कथाएं सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग में मिलती हैं। पुराणों में भगवान परशुराम को चिरंजीवी बताया गया है।

भगवान परशुराम त्रेता युग के एक ब्राह्मण थे। इनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था।

पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिव जी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये।

भगवान परशुराम के क्रोध की कथाएं बहुत प्रचलित है। उनके क्रोध की अग्नि को महादेव के पुत्र श्री गणेश भी नहीं सहन कर पाए थे। क्रोध में आकर उन्होंने श्री गणेश का एक दांत तोड़ दिया था।

त्रेतायुग में भगवान राम ने जब शिव धनुष को तोड़ा तो परशुराम जी महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे। धनुष के टूटने की ध्वनि सुनते ही भगवान परशुराम विकराल क्रोध में आ गए। लेकिन जब उन्हें प्रभु श्रीराम के अस्तित्व की पहचान हुई तो उन्होंने श्रीराम को प्रणाम किया। बाद में श्रीराम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र भेट किया और कहा द्वापर युग में जब उनका अवतार होगा तब उन्हें इसकी जरूरत होगी। इसके बाद जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में अवतार लिया तब परशुरामजी ने धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र वापिस कर दिया।

इस दिन ही त्रेता युग का भी आरंभ हुआ। वहीं उत्तराखंड के अधिष्ठाता बद्रीनाथ का ग्रीष्मकालीन पट इसी दिन खुलता है। काशी में गंगा स्नान के साथ त्रिलोचन महादेव की यात्रा, पूजन-वंदन का भी विशेष महत्व है।

 

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