भारत के दिग्गज फुटबॉलर पीके बनर्जी के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

शिवानी राजवारिया

नई दिल्ली

भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम दौर के साक्षी रहे मशहूर फुटबॉलर पीके बनर्जी का लंबी बीमारी के बाद कोलकाता में निधन हो गया. 83 सालों के सफर में पीके बनर्जी ने 51 साल तक फुटबॉल की सेवा की और अपने खेल से फुटबॉल जगत में एक नई क्रांति को उजागर किया। पीके बनर्जी भारत के फुटबॉल कोच भी रहे थे। उन्होंने भारत के लिए 84 मैचों में 65 गोल किये. उनके परिवार में उनकी बेटी पाउला और पूर्णा हैं, उनके छोटे भाई प्रसून बनर्जी तृणमूल कांग्रेस से मौजूदा सांसद हैं। 23 जून 1936 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के बाहरी इलाके मोयनागुरी में जन्मे बनर्जी का परिवार विभाजन से पहले उनके चाचा के यहां जमशेदपुर आ गया था।

1962 के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता तेज तर्रार स्ट्राइकर पीके (प्रदीप कुमार) बनर्जी निमोनिया के कारण सांस की बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें पार्किंसन, डिमेंशिया और हार्ट प्रॉब्लम भी थी। पीके बनर्जी सबसे पहले अर्जुन अवार्ड से सम्मानित होने वाले फुटबॉलर थे। एशियाई खेल 1962 के स्वर्ण पदक विजेता 2 मार्च से लाइफ सपोर्ट पर थे। रात के 12:40 पर उन्होंने अपनी देह से अपनी आत्मा को मुक्त कर दिया।

पीके बनर्जी ने राष्ट्रीय टीम के लिए 84 मैचों में 65 अंतरराष्ट्रीय गोल दागे थे। 1992 में जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के अलावा, बनर्जी ने 1960 के रोम ओलंपिक में भारत का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने फ्रेंच टीम के खिलाफ बराबरी का गोल दाग मैच को 1-1 से ड्रॉ करवाया था। इससे पहले बनर्जी ने 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया पर 4-2 से जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

भारतीय फुटबॉल में बनर्जी के योगदान को फीफा ने भी सराहा था। फीफा ने उन्हें 2004 में अपने सौ साल पूरे होने पर ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया था। 1997 में इन्हीं की कोचिंग में फेडरेशन कप सेमीफाइनल में रिकॉर्ड 1 लाख 31 हजार लोग साल्ट लेक स्टेडियम में ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच मैच देखने आए। फुटबॉल इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब इतने सारे लोग एक मैच को देखने के लिए आए हों। इस मैच में ईस्ट बंगाल ने मोहन बागान को 4-1 से हराया था।

बिहार के लिये संतोष ट्राफी में 1952 में पदार्पण करने वाले बनर्जी 51 साल बाद मोहम्मडन स्पोर्टिंग के कोच रहे । वह भारतीय फुटबॉल की उस धुरंधर तिकड़ी के सदस्य थे जिसमें चुन्नी गोस्वामी और तुलसीदास बलराम शामिल थे. बनर्जी ने 1967 में फुटबॉल को अलविदा कह दिया लेकिन बतौर कोच भी 54 ट्राफी जीती ।बनर्जी ने कभी अपने कैरियर में मोहन बागान या ईस्ट बंगाल के लिये नहीं खेला। वह पूरी उम्र पूर्वी रेलवे टीम के सदस्य रहे । कोलकाता में उन्होंने आर्यन एफसी के साथ क्लब कैरियर की शुरूआत की। मोहन बागान ने उनके कोच रहते आईएफए शील्ड, रोवर्स कप और डूरंड कप जीता ।ईस्ट बंगाल ने उनके कोच रहते फेडरेशन कप 1997 के सेमीफाइनल में चिर प्रतिद्वंद्वी को हराया।

 

 

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