डीयू के शिक्षकों ने ओपन-बुक परीक्षा को बताया छात्रों के साथ एक मजाक, डेटशीट वापस लेने की मांग हुई तेज़   

न्यूज़ डेस्क

नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए ऑनलाइन ओपन-बुक परीक्षा से सम्बंधित डेटशीट जारी होने के बाद से इसका विरोध शुरू हो गया है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने ओपन-बुक परीक्षा को एक मजाक बताया है। शिक्षक संगठन द्वारा आयोजित सर्वे में 85 फीसदी छात्रों ने भी ओपन बुक परीक्षा को नकार दिया था।

हालांकि डीयू प्रसाशन ने ओपन-बुक परीक्षा से सम्बंधित अधिसूचना जारी कर दी है, जिसके अनुसार सेमेस्टर और वार्षिक परीक्षाएं 1 जुलाई से 11 जुलाई के बीच आयोजित होंगी। यह डेटशीट केवल रेगुलर, एसओएल, एनसी वेब अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए जारी की गई है। डीयू के एकेडेमिक कौंसिल और एग्जीक्यूटिव कौंसिल के शिक्षक प्रतिनिधियों ने डीयू के कुलपति को पत्र लिखकर तुरंत संभावित परीक्षा की तिथियों को वापस लेने की मांग की है। डीयू के ओपन बुक परीक्षा को अधिकतर शिक्षक-छात्र विरोध कर रहे हैं।

डीयू में एकेडेमिक कौंसिल के सदस्य राजेश झा का कहना है कि डीयू को वास्तविक जानकारी हासिल करना चाहिए। दूर दराज के गावों में जहाँ न तो बिजली मिलती है और न ही कंप्यूटर की व्यवस्था है, वहां छात्रों को परीक्षा के लिए वाध्य करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि सीएससी के माध्यम से परीक्षा का प्रावधान करने से पहले उसकी वस्तुस्थिति का पता लगाना चाहिए। छात्रों के लगातार मैसेज आ रहे हैं कि नेटवर्क की दिक्कत के कारण उनके खेतों में, छत पर जाना पड़ रहा है, ऐसे में परीक्षा का आयोजन छात्रों के साथ एक धोखा है।

“भारत मे सामान्यतः छोटे से घरों में ज्यादा लोग रहते है और साथ ही डिजिटल विभाजन बहुत ज्यादा है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा छात्र कॉलेज में आकर इंटरनेट और कंप्यूटर की सुविधा लेना चाहेंगे। पर, कॉलेजो में दिक्कत ये है कि अगर 1000 छात्र परीक्षा देने वाले है तो 40-50 ही कंप्यूटर उपलब्ध है। इसके अनुसार छात्र जन सुविधा केंद का भी उपयोग कर सकते है। परंतु, भारत मे 12000 गाँव ऐसे है जहाँ अभी तक सीएससी नही है।

लदाख में 192 ग्राम पंचायतों में करीब 90 ग्राम पंचायतों में सीएससी नही है। नागालैंड में 50 फीसदी से ज्यादा गाँव मे ये केंद्र नही है। ऐसे में दूर दराज के इलाको में फंसे छत्रो का भविष्य संकटमय हो सकता है। कई राज्यो में ग्रामीण इलाकों में तो डेढ़ दो घटे तक बिजली आता है। छात्रों का ध्यान रखते हुए इसे वापस कर ऐसी (AC) और इसी (EC) में सामूहिक रूप से परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय डीयू प्रसाशन निर्णय ले।”

प्रोफेसर झा ने कहा कि एक ही समूह के छात्र को ऑनलाइन और ऑफलाइन परीक्षा का अलग अलग अवसर देना निष्पक्ष परीक्षा के सिद्धांत के खिलाफ है। साथ ही, एक तरफ तो ये कहता हैं कि सिर्फ अपलोडिंग और डाउनलोडिंग के लिए ही इंटरनेट और कंप्यूटर की जरूरत होगी तो दूसरी तरफ बीच मे एक अंडरटेकिंग को भी अपलोड करने की बात की गई है।

दरअसल डीयू के अधिकतर शिक्षकों और छात्रों के द्वारा ऑनलाइन ओपन-बुक परीक्षा का विरोध इसीलिए किया जा रहा है कि इस तरह की परीक्षा में छात्रों को सवालों के जवाब देते समय अपने नोट्स, पाठ्य पुस्तकों और अन्य स्वीकृत सामग्री की मदद लेने की अनुमति होती है। छात्र अपने घरों में बैठकर वेब पोर्टल से अपने-अपने पाठ्यक्रम के प्रश्न पत्र डाउनलोड करेंगे और दो घंटे के भीतर उत्तर-पुस्तिका जमा करनी होगी। ये परीक्षा के बेसिक सिद्धांत के खिलाफ है और लगता है कि भारत के गावों की जो असली तस्वीर है उस से डीयू प्रसाशन अभी भी अनभिग्य है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *