भारतीय फुटबाल: गीदड़ पट्टेवाला सोया शेर जीरो से करे शुरुआत

राजेन्द्र सजवान

भारत फुटबाल का सोया शेर है। यह डायलॉग आपने अनेकों बार सुना होग। यह भी सुना होगा कि अफगानिस्तान और बांग्ला देश के सामने मिमियाने वाली भारतीय टीम को ब्ल्यू टाइगर कहा जाता है। फुटबाल प्रेमी जानते हैं कि लॉक डाउन के चलते देश में फुटबॉल गतिविधियां ठप्प पड़ी हैं। खेल मैदान और स्टेडियम सूने हैं लेकिन कोरोना काल में भारतीय फुटबाल के माई बाप पूरी फार्म में हैं। राज्य इकाइयों के मुखिया से लेकर फेडरेशन अध्यक्ष और सचिव खूब ज्ञान बघार रहे हैं। अपनी फुटबाल की हालत जानते हुए भी बड़े बड़े दावे कर रहे हैं। अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सचिव कुशाल दास भारतीय फुटबाल का कोई भला नहीं कर पाए लेकिन वेबनार नामक झूठतंत्र की मदद से भारतीय फुटबाल को स्तुतिगान करनेमें लगे हैं। फुटबाल फेडरेशन और उसकी सदस्य इकाइयों ने देश की फुटबाल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है लेकिन महामारी के चलते उन्हें पता नहीं कौनसा जादुई चिराग मिल गया है! जिसे देखो भारतीय फुटबाल में बड़े बदलाव का दावा कर रहा है।

क्यों मेहरबान है फीफा ?
फीफा, एएफसी और फेडरेशन भारत को फुटबाल का सोया शेर बता रहे हैं। जानते हैं क्यों? इसलिए क्योंकि फीफा को भारत में फुटबॉल को बेचने का बड़ा बाजार नज़र आता है। वरना भारत को अंडर 17 पुरुष एवम महिला फीफा कप क्यों मिले ? भला भारतीय फुटबाल ने कौनसे तीर चलाये हैं? जो देश सौ सालों में एक बार भी विश्व कप नहीं खेल पाया , जिसने 1962 में एशियाई खेलों का खिताब जीतने के बाद फिर कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कि और जिसने तरक्की के नाम पर सिर्फ खोखले दावे किए उसे फीफा क्यों भाव दे रहा है? इसलिए चूंकि भारत उसके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है।

भारतीय भावनाओं से खिलवाड़:
भारत को फुटबाल का सोया शेर कहना न सिर्फ फुटबाल का अपमान है अपितु 140 करोड़ देशवासियों की भावनाओं का मज़ाक उड़ाना भी है। ऐसे संबोधन झूठा दिलासा दिलाने वाले हैं ताकि फीफा एक फिसड्डी फुटबाल राष्ट्र में अपना प्रॉडक्ट आसानी से बेच सके। फेडरेशन के साथ मिली भगत कर फीफा अपने नकारा गोरे कोचों को भारत में रोजगार दिलाता आ रहा है। हर कोच सोए शेर को जगाने आता है, भारतीय फुटबाल को सब्जबाग दिखाता है और वह अपने कार्यकाल के चलते खिलाड़ियों को प्रतिभा का धनी बताता है। जब अनुबंध समाप्त होता है तो यह कहते हुए विदा होता है कि भारतीय फुटबाल कभी नहीं सुधर सकती।

टाइगर का गीदड़ पट्टा:
पिछले कुछ सालों में भारतीय राष्ट्रीय टीम को ब्ल्यू टाइगर्स बोल बोल कर पता नहीं क्या साबित किया जाता रहा। लेकिन जब लॉक डाउन से पहले खेले गए एशिया कप मुकाबलों में भारत को बांग्ला देश और अफगानिस्तान ने पाठ पढ़ाया तो नाराज फुटबाल प्रेमियों का गुस्सा फूट पड़ा। कुछ एक नए तो टीम को यहां तक कहा कि ऐसी टीम टाइगर कहलाने लायक नहीं है। फुटबाल प्रेमी चाहते हैं कि पहले भारतीय फुटबाल खुद को साबित करे और कमसे कम एशिया में पहली पांच टीमों में स्थान बनाए।

ठोस योजना का अभाव:
भारतीय फुटबाल के पूर्व खिलाड़ी, कोच और जानकार मानते हैं कि फेडरेशन के पास काबिल और समझदार लोगों की भारी कमी है। सिर्फ चाटुकार और जी हुजूर फुटबाल को चला रहे हैं। राज्य इकाइयों का हाल तो और भी बुरा है। फुटबाल खेलने और देखने वालों की कमी नहीँ। लेकिन किसी ठोस योजना के अभाव में फुटबाल ने दम तोड़ दिया है। खासकर, ग्रास रुट स्तर पर बुरा हाल है। छोटी उम्र के खिलाड़ी कली से फूल नहीं बन पा रहे क्योंकि खेल के हत्यारे उन्हें पनपने नहीं देते।

बीमार हैं आईएसएल और आईलीग:
कुछ बड़े क्लबों और खिलाड़ियों के अनुसार आईएसएल और आई लीग की शुरुआत जिस उद्देश्य के लिए हुई थी वह बहुत पीछे छूट गया है। फेडरेशन ने न सिर्फ क्लब फुटबाल को बर्बाद किया ,बल्कि कई स्थापित क्लब दम तोड़ने की कगार पर हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि क्लबों को प्रदर्शन और रिकार्ड की बजाय खरीद फरोख्त से प्रोमोट किया जा रहा है। नतीजन, खेल का माहौल पूरी तरह बिगड़ चुका है। फेडरेशन आखिर चाहती क्या है, किसी को समझ नहीं आ रहा।

ज़ीरो से शुरू करें:
देश के फुटबाल जानकारों को लगता है कि भारतीय फुटबाल को वर्ल्ड कप और ओलम्पिक खेलने का टारगेट फिलहाल पीछे छोड़ देना चाहिए। उनकी राय में शुरुआत शुरू से की जाए। पहले घरू ढांचे को सुधारा जाए, हर राज्य में खेल के लिए माहौल बनाया जाए और अपने कोचों पर भरोसा किया जाए तो सुधार संभव है। हमें आठ दस साल की बजाय अगले बीस साल का लक्ष्य निर्धारित करना होगा। बीस-तीस साल बाद विश्वकप तब ही खेल सकते हैं जब आज और अभी जीरो से शुरू करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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