मोदी की बांग्लादेश यात्रा, बंगाल चुनाव और मतुआ समुदाय

ईश्वर नाथ झा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांग्लादेश की 50वें स्वतंत्रता दिवस को मनाने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर हैं। लगभग एक साल बाद प्रधानमंत्री मोदी किसी देश की यात्रा पर गए हैं। पिछले साल शुरू हुई कोरोना महामारी के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। वैसे तो प्रधानमंत्री बांग्लादेश की 50वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में ढाका पहुंचे हैं, लेकिन इसके कई मायने देखे जा रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में कल यानी 27 मार्च को चुनाव के पहले चरण का वोटिंग है। ये सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल के लोग भावनात्मक रूप से अभी भी बांग्लादेश से जुड़े हुए हैं, खासकर बांग्लादेश से आये मतुआ समुदाय के लोगों का अभी भी बांग्लादेश से लगाव किसी से छिपा नहीं है।

एक अनुमान के मुताबिक पश्चिम बंगाल में मतुआ समाज की आबादी दो करोड़ से भी ज़्यादा है। खासकर नादिया,  उत्तर और दक्षिण 24-परगना ज़िलों में इनकी आबादी बहुत ज्यादा है और 10 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर और 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनके वोट निर्णायक माने जाते हैं।

कहा जाता है कि जिस किसी भी पार्टी ने मतुआ समुदाय को अपने पक्ष में कर लिया उस पार्टी की रायटर्स बिल्डिंग पर एकछत्र राज होना निश्चित है। पहले मतुआ समुदाय का झुकाव कम्युनिस्ट पार्टी  की तरफ था, तो उन्होंने कई सालों तक राज किया। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने मतुआ समुदाय की अहमियत को समझा और उसे अपनी तरफ करने का प्रयास किया जिसके कारण ममता बनर्जी की पार्टी को बहुमत मिला।

लेकिन ममता का झुकाव जबसे मुस्लिमों की तरफ होने लगा और मतुआ समुदाय के लोगों को पार्टी किनारा करने लगी तब उसके नेताओं ने विकल्प के रूप में भारतीय जनता पार्टी की तरफ देखना शुरू किया। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 18 सीटें आने के पीछे ये भी एक कारण है कि मतुआ समुदाय ने बीजेपी को बड़ी संख्या में वोट दिया।

प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश की यात्रा कार्यक्रम में मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली का दौरा भी है और ओरकांडी के मंदिर और बरीसाल जिले के सुगंधा शक्तिपीठ भी जाने का कार्यक्रम है, जो हिंदू धर्म में वर्णित 51 शक्तिपीठ में से ये एक माना जाता है। बताया जा रहा है कि पीएम मोदी की कुसतिया में रविंद्र कुटी बाड़ी भी जाने का प्रोग्राम है। पीएम मोदी मतुआ समुदाय के लोगों से मुलाकात भी करेंगे।

अब ये संयोग है या प्रयोग ये तो कार्यक्रम निर्धारित करने वाले को पता होगा, लेकिन कयास यह लगाया जा रहा है कि पीएम मोदी का मतुआ समुदाय के संस्थापक की जन्मस्थली का दौरा करना, सुगंधा शक्ति पीठ जाना, पश्चिम बंगाल के चुनाव पर अपनी गहरी छाप छोड़ सकता है।अगर पश्चिम बंगाल के लिए बीजेपी का घोषणा पत्र को देखें तो मतुआ समाज के लिए अलग से इसमें चर्चा की गयी है जो इसकी अहमियत को दर्शाती है।

बीजेपी ने मतुआ समाज के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों की छात्रवृत्ति, मतुआ दलपतियों के लिए पेंशन योजना, श्री श्री गुरुचंद मंदिर को पर्यटन सर्किट में जोड़ना, ठाकुरनगर तीर्थ और तीर्थ स्थल को  तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिकता संवर्धन ड्राइव (PRASAD) योजना के तहत विकसित करना, सरकार बनने के पहले सप्ताह के भीतर ठाकुरनगर रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर श्रीधाम ठाकुरनगर रेलवे स्टेशन करना और मदन मोहन मंदिर, कामेश्वरी मंदिर और पंचानन बर्मा जन्मस्थान के साथ पर्यटक सर्किट में जोड़ना जैसे भावनात्मक मुद्दों को स्थान दिया गया है।

मतुआ समुदाय के लोगों को अब भाजपा का समर्थक माना जाने लगा है जिसका मूल और सबसे बड़ा कारण भाजपा सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को बताया जा रहा है। पहले मतुआ समाज में डर था कि उन्हें वापस बांग्लादेश भेजा जा सकता है लेकिन जबसे मोदी सरकार के द्वारा नागरिकता कानून में संशोधन किए जाने की बात होने लगी, मतुआ समाज को लगने लगा कि उन्हें यहां शरण और नागरिकता मिल सकती है। इसीलिए वे ममता की टीएमसी को छोड़ भाजपा के समर्थक बन गए। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी ये भलीभांति पता है, इसीलिए बीजेपी के सभी नेता अपने भाषण में मतुआ समाज का जिक्र करना नहीं भूलते।

भारतीय राजनीति में प्रतीकों का बहुत महत्त्व है और शायद प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश की यात्रा से कुछ प्रतीकों — जिसमें बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान को गाँधी शांति पुरस्कार देना और मतुआ समाज को भावनात्मक रूप से अपनी तरफ करना शामिल है– के सहारे ये सन्देश देना चाह रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी ही मतुआ समाज की एकमात्र शुभचिंतक है। अब ये तो चुनाव के बाद ही समझा जा सकेगा कि प्रधानमंत्री का सन्देश कितना कारगर हुआ है।

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