मुस्लिम दंपति ने किया कन्यादान, कराई पूरे रीति-रिवाज से पूजा की शादी
शिवानी रज़वारिया
नई दिल्ली: हिंदू मुस्लिम की जब जब बात होती है एक अलग की माहौल बनने लगता है। मौजूदा हालातों ने तो दो धर्मों को आमने सामने खड़ा कर दिया है। आज ऐसी खबरें बहुत महत्व रखती हैं जो समाज में फ़ैल रही नकारात्मक सोच को दरकिनार करने में मदद करती है। जो एक उम्मीद को जगाती है कि घने अंधेरे में अभी भी कहीं ना कहीं उम्मीद की किरण बाकी है। अभी भी कुछ बदला नहीं, बदली है तो सिर्फ सोच, देखने का नज़रिया। लेकिन दिलों का प्यार और आपसी प्रतिस्पर्धा अभी भी ज्यों की त्यों ही है। जिस भारत की तस्वीर हम अपने इतिहास में देखते हैं वह आज भी कहीं ना कहीं कायम हैं।
दरअसल, लुधियाना से एक ऐसी कहानी सामने आई है जो आपके हृदय के भाव को कहीं ना कहीं छू लेगी। लुधियाना के एक मुस्लिम परिवार ने हिंदू परिवार की एक बेटी की शादी ही नहीं करवाई बल्कि उसका कन्यादान कर उसे पूरे रिति रिवाज के साथ विदा किया। दुल्हन पूजा लुधियाना के भटियान की रहने वाली है। मूल रूप से उसका परिवार उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से है।
हुआ यूं कि पूजा का परिवार लॉकडाउन की वजह से पूजा के पिता वरिंदर कुमार, मां, भाई और तीन बहने गांव में फंस गए। परिवार वालों ने लुधियाना वापस आने की बहुत कोशिश की पर अनुमति न मिलने के कारण आ नहीं सकें।
पूजा की शादी साहनेवाल के रहने वाले सुदेश के साथ लॉकडाउन से पहले ही तय हो गई थी। शादी की तारीख 2 जून नजदीक आ रही थी। पूजा का परिवार बहुत परेशान था। पूजा के माता पिता उसकी शादी आगे बढ़ाने की सोच रहे थे लेकिन ऐसे में बिहार के कटिहार के रहने वाले अब्दुल साजिद ने अपने साथी वरिंदर की बेटी पूजा की शादी करने का फैसला कर लिया। अब्दुल, पूजा के पिता के साथ धागे की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। जब अब्दुल को इस बात का पता चला कि पूजा के परिवार को लुधियाना आने की अनुमति नहीं मिल रहीं है तो अब्दुल ने वरिंदर से बात कर उसे बताया तो अब्दुल के इस कदम से वरिंदर की सारी परेशानी दूर हो गई और वो बहुत भावुक हो गए।
अब्दुल ने बताया, जब उन्हें पता चला कि वरिंदर को लुधियाना आने की अनुमति नहीं मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ शादी का पूरा इंतेज़ाम किया। मैंने मच्छीवाड़ा से पंडित जी को बुलवाया और हिंदू रीति-रिवाज़ के साथ पूजा के फेरे करवाए। कन्यादान के वक्त मैंने अपनी पत्नी सोनी के साथ पूजा का कन्यादान भी किया। अब्दुल और उनकी पत्नी ने मिलकर दूल्हे के पक्ष वालों के लिए खाने का भी इंतजाम किया इतना ही नहीं उन्होंने पूजा को उपहार के तौर पर डबल बेड, अल्मीरा और बर्तन भी दिए। अब्दुल ने बताया कि पूजा उन लोगों को मामा-मामी कहती है। उन्होंने आगे कहा, ‘हम लोग वरिंदर के परिवार को पिछले पांच साल से जानते हैं। पूजा हम लोगों को मामा-मामी कहती है, इस लिहाज़ से हम लोग शादी में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। हम लोग जो कुछ कर सकते थे वो किया।’
अब्दुल की पत्नी सोनी का कहना था कि वह पूजा को अपनी बेटी मानती हैं, इसलिए वह शादी में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी।
शादी में इन चार लोगों के अलावा दूल्हे की दो बहनें और उनके पति समेत तीन बच्चे शामिल हुए थे। दूल्हे पक्ष ने किसी भी तरह की कोई मांग नहीं की थी, लेकिन वे लोग पूजा को खाली हाथ विदा करना नहीं चाहते थे। इसलिए ही उन्होंने पूजा को उपहार और कुछ रुपये दिए। यह महज एक स्टोरी नहीं है इसके पीछे बहुत बड़ा मैसेज छुपा है जो कहीं ना कहीं हमें यह एहसास कराता है कि जिस नफरत की पट्टी को हम दिन पर दिन अपनी आंखों पर चढ़ाते चले जा रहे हैं अगर उतार कर देखें तो आज भी भाईचारे की वही तस्वीर आपके सामने आपको नजर आएगी जिसकी मिसाल दी जाती है।