मैथिली भाषा की दिशा में बढ़ता एक और कदम, एक साथ डॉ आभा झा की तीन पुस्तकों का हुआ विमोचन
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: किसी भी भाषा में कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं और पाठकों का उसे कैसी प्रतिक्रिया मिलती है, इससे तय होता है कि वह भाषा कितना विकास कर रही है। इस लिहाज से देखें तो मैथिली भाषा अपनी धुरी ही नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में भी लगातार अपना घनत्व बढा रही है। जिस प्रकार से ही एक दिन में एक ही आयोजन में डॉ आभा झा की तीन पुस्तकें विमोचित हुईं, वह केवल लेखिका के लिए ही नहीं, बल्कि मैथिल समाज के लिए भी गौरव की बात है।
ऐसे विचार व्यक्त किए गए प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में। यहां पर सुपरिचित शिक्षिका और लेखिका डॉ. आभा झा की तीन मैथिली पुस्तकों का विमोचन सह संवाद- कार्यक्रम आयोजित किया गया। पुस्तक लोकार्पण सह संवाद कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर देवशंकर नवीन उपस्थित रहे। अध्यक्ष की भूमिका सेवानिवृत्त चीफ कमिश्नर श्री देवेंद्र मिश्र ने निभाया।
प्रमुख वक्ताओं में लेखिका श्रीमती कुमकुम झा, प्रसिद्ध कवि श्री शंकर मधुपांश, युवा लेखिका श्रीमती रोमिशा और गद्यलेखक तथा समालोचक श्री मनोज कर्ण मुन्ना ने उनकी रचनाओं पर अपने विचार रखे। इन सबके साथ विभिन्न मैथिली संस्थाओं के अधिकारी गण और साहित्यानुरागियों ने इस परिचर्चा- सत्र का आनंद उठाया।
बता दें कि डॉ. आभा झा संस्कृत की शिक्षिका हैं और ये 25 वर्षों से दिल्ली सरकार के ग्रीन पार्क में अवस्थित सर्वोदय विद्यालय में बतौर संस्कृत प्रवक्ता अपनी सेवाएं दे रही हैं। इनकी रचना का क्षेत्र मुख्यतः संस्कृत रहा है। संस्कृत में अनेक श्लोक, लघु कथा, लघु नाटक शोध प्रबंध आदि कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं और ये विभिन्न राष्ट्रीय मंचों पर संस्कृत- भाषा- समुपासिका के रूप में सम्मानित होती रही हैं। लेखिका ने बताया कि इन्हें हिंदी लिखने का भी शौक है और ये हिंदी भाषा में कविता, कहानी आदि लिखती रहती हैं।
पिछले कुछ वर्षों से डॉ. झा ने अपनी मातृभाषा मैथिली में लिखना आरंभ किया और जब कोरोना की भयंकर त्रासदी के समय जनमानस नकारात्मकता और अवसाद के जाल में उलझता सा जा रहा था, तब इन्होंने समय का सदुपयोग करते हुए अपनी रचनाओं को संग्रहीत कर प्रकाशित करवाने का निश्चय किया। इस तरह इनका एक काव्य संग्रह ‘कने हमरो सुनू’, एक लघुकथा संग्रह ‘प्रतीक्षा’ और एक बीहनि कथा संग्रह (अत्यंत लघुकथा संग्रह) ‘सिनेहक दाम’ छप कर आया है।काव्य-संग्रह रुद्र प्रकाशन, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित हुआ है। लघुकथा संग्रह और बीहनि कथा संग्रह नवारम्भ प्रकाशन मधुबनी से प्रकाशित हुआ है।
संवाद कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि डॉ झा की रचनाओं में समसामयिक परिप्रेक्ष्य में स्त्री की बदलती भूमिका और उसके साथ सामंजस्य बिठाने की उसकी जद्दोजहद मुखर होकर आई है । उनके साहित्य की नायिका संघर्षशील है, पलायन उसकी प्रवृत्ति नहीं है ,वह विध्वंसक भी नहीं है, परिवार को जोड़े रखने की क्षमता से संपन्न है।
इनकी पुस्तकें जनसामान्य तक पहुंचे और उनकी खूबियों से लोग अवगत हो सकें इसलिए विमोचन के साथ ही एक परिचर्चा -सत्र का भी आयोजन किया गया।