गोरखनाथ पीठ ही भेदेगी दक्षिण भारत की राजनीति का किला
रीना एन सिंह
गोरक्षपीठ हमेंशा से सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है एवं समाज में एकजुटता का सन्देश देता रहा है। सदियों से गोरक्षपीठ में नाथ योगियों एवं सूफी संतों की विचार धारा का भारत में एक साथ प्रचार – प्रसार हुआ, उस काल में ऐसा भी देखा गया की कुछ नाथ संतों ने सूफी धारा को अपना लिया तो कुछ सूफी संतों ने नाथ साधना पद्धति से प्रभावित होकर नाथ धारा को अपना लिया था।
कहने का तात्पर्य यह है की वह ऐसा समय था जब जाति या धर्म का भेद नहीं होता था, दो भिन्न मार्ग पर चल कर सिद्धि या मोक्ष प्राप्त करने वाली बात थी, लेकिन कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के कारण समाज में यह भेद स्पष्ट नज़र आने लगा। उन कट्टरपंथी लोगों ने अपने हितों के लिए समाज के भाईचारे एवं आपसी सौहार्द को दूषित कर दिया।
गोरक्षपीठ में कालांतर से ही हर जाति, धर्म और वर्ग का व्यक्ति गोरखपंथी से जुड़ा है। गोरक्षपीठ से लम्बे समय से मुस्लिम समुदाय भी जुड़ा रहा है जिसके बारे में आज के समय में बहुत ही कम लोग जानते हैं।
नाथ संप्रदाय से हर जाति, धर्म, समाज, प्रांत और वर्ग का व्यक्ति जुड़ा है और गोरक्षपीठ से जुड़कर वह सिेर्फ नाथ का ही हो जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा भारत के विभिन प्रदेशों जैसे बंगाल तथा दक्षिण भारत के प्रांतों में भी मुसलमान जोगियों के अनेकों गांव हैं। इन गांवों में ऐसे मुसलमान जोगी रहते हैं जो नाथ पंथियों की तरह गेरूआ रंग का वस्त्र पहनते हैं और हाथ में सारंगी लिए गांव-गांव गोपीचंद्र और राजा भर्तृहरि के गोरखनाथ के प्रभाव में संन्यासी हो जाने की लोककथा के गीत गाते फिरते हैं तथा गोरखनाथ की महिमा का वर्णन करने वाले गीत सुनाते हैं।
हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथ संप्रदाय पर लिखी अपनी पुस्तक में इनके बारे में जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है कि नाथमत को मानने वाली बहुत सी मुस्लिम जातियां अपना परिचय देने से डरती हैं, देश के हर हिस्से में ऐसी जातियों का अस्तित्व है।
जार्ज वेस्टन ब्रिग्स ने भी अपनी पुस्तक ‘गोरखनाथ एंड दि कनफटा योगीज’ में मुस्लिम योगियों का जिक्र किया है। योगी आदित्यनाथ जी के गुरु ब्रह्मलीन राष्ट्रीय संत महंत अवैद्यनाथ जी ने तमिल नाडु के मीनाक्षीपुरम से सामाजिक समरसता का सन्देश दिया, उन्होने धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाई तथा पिछड़ी जाति तथा अनुसूचित वर्ग के अधिकारों को सुरक्षित करते हुए ऐसे जिवंत उदहारण प्रस्तुत किये जिससे गोरक्षनाथ पीठ का सम्मान और पहचान न केवल उत्तर भारत अपितु दक्षिण भारत में भी है।
यहाँ यह बताना जरुरी है की महंत अवैद्यनाथ जी के तमिलनाडु पहुंचने के सदियों पहले से ही दक्षिण भारत में श्री गोरखनाथ मठ की जड़ें विद्यमान हैं। लोककथाओं में राजा भर्तृहरि बहुत प्रसिद्ध है, जो उज्जैन के राजा था एवं महान राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। राजा भर्तृहरि संस्कृत के महान् कवि थे, जो अपना राज्य अपने भाई को सौंप कर नाथ पंथी योगी बन गए।
भर्तृहरि को गोरख वंश के महान योगी में गिना जाता है। इनकी कहानियाँ बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान में लोकप्रिय है। छतीसगढ़ राज्य में रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवद्गीता की तरह ही भर्तृहरि चरित भी काफी प्रचलित है। यह कथा गांवों में बुजुर्गों के मुख से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित हो रही है।
राजा भर्तृहरि तमिल नाडु के महान नाथ योगी पट्टीनाथ जिन्हे तमिल भाषा में ‘पट्टिनाथर’ कहा जाता है (स्वेथरन्यार या पट्टीनाथु चेट्टियार, पूमपुहार, तमिलनाडु के इस संत का पूर्वाश्रम नाम है) के शिष्य बन गए और अंत में कालाहस्ती मंदिर में मुक्ति (मोक्ष) को प्राप्त किया।
दक्षिण भारतीय भाषाओं में गोरखनाथ पीठ को कोरक्का सिद्धार भी कहा जाता है (देवनागरी: गोरखखर) जो 18 सिद्धारों में से एक है और नवनाथर के बीच गोरखनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
श्री अगत्तियार उनके गुरु थे, जिनकी समाधि तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के वडुकुपोइगनल्लूर में है। एक वृत्तांत के अनुसार, उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पर्वत में बिताया। गोरखनाथ पीठ यानी कोराक्कर से संबंधित अन्य गर्भगृह पेरूर, तिरुचेंदूर और त्रिकोनमल्ली में हैं। कोराक्कर के कुछ सिद्ध मंदिर तथा गुफाएँ चतुरगिरि और कोल्ली पहाड़ियों में पाई जाती हैं। अगर हम राजनीति की बात करे तो यहां यह बताना जरूरी है कि आने वाले समय में भाजपा तमिलनाडु में राजनीतिक रूप से तभी सफल हो सकती है, जब वे योगी आदित्यनाथ को सामने रखेंगे तथा गोरखनाथ एवं दक्षिण भारत खासकर तमिल नाडु के ऐतिहासिक संबंधों को वर्तमान पीढ़ी के सामने रखेंगें।
तमिलनाडु एवं गोरखनाथ पीठ का सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिकता जुड़ाव को सामने लाने की जरुरत है। भाजपा को तमिल नाडु में मजबूत करने के लिए गोरखनाथ मठ सबसे बड़ी ताकत है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ को तमिलनाडु में ओबीसी, एससी-एसटी उत्थान विचारधारा को पुनर्जीवित करना चाहिए, जिसे उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ जी ने शुरू किया था। अगर ऐसा होता है तो योगी आदित्यनाथ भारत की राजनीती का पहला ऐसा चेहरा होंगे जिनकी सशक्त पहचान और पकड़ हिंदी भाषित राज्यों के साथ साथ दक्षिण भारत में भी होगी। भारत के भविष्य की राजनीति में शायद सनातन के रक्षक संत के रूप में योगी आदित्यनाथ ही होंगे जो भारत को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक सूत्र में पिरोने का महान कार्य करेंगे ।