पैरा खिलाड़ी होंगे मालामाल लेकिन, पदक विजेताओं की पुरस्कार राशि में एकरूपता क्यों नहीं?
राजेंद्र सजवान
ओलंपिक पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है लेकिन अपने देश में बिरले ही यह उपलब्धि हासिल कर पाते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हाल यह है कि पिछले सवा सौ सालों में हमारे खिलाड़ी मात्र 28 ओलंपिक पदक जीत पाए हैं जिनमें 11 हॉकी के नाम दर्ज हैं। लेकिन इस दौड़ में अब पैरा(दिव्यांग) खिलाड़ी भी शामिल हो गए हैं। रियो ओलंपिक में सामान्य खिलाड़ियों के मुकाबलों में भारत को सिंधु और साक्षी ने दो पदक भारत की झोली में डाले तो पैरा खिलाड़ियों ने उनसे दोगुने पदक जीत कर कहा हम किसी से कम नहीं।
कुछ साल पहले तक पैरा खिलाड़ियों की तरफ सरकारों ने खास ध्यान नहीं दिया जिस कारण से उनका मनोबल गिरता चला गया। लेकिन जब पिछले ओलंपिक के विजेताओं को केंद्र और राज्य सरकारों ने करोड़ों बाँटे तो तिरस्कार और उपेक्षा में जी रहे पैरा खिलाड़ियों का जोश सातवें आसमान पर पहुँच गया। उनके अंदर का खिलाड़ी जाग गया तो केंद्र और राज्यसरकारों को भी लगा कि पैरा खिलाड़ी भी देश का नाम रोशन कर सकते हैं। साथ ही उन्हें उपेक्षित वोट बैंक भी नज़र आने लगा। यही कारण है कि विकलांग और दिव्यांगों को अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में पदक जीतने के फलस्वरूप करोड़ों की पुरस्कार राशि दी जाने लगी है।
2018 में दिल्ली सरकार ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को तीन करोड़, रजत पदक के लिए दो और कांस्य पदक के लिए एक करोड़ का नकद इनाम घोषित किया, जोकि पहले से दोगुना है। इसी प्रकार एशियाड और कामनवेल्थ खेलों के पदक विजेताओं की पुरस्कार राशि में भी कई गुना बढ़ोतरी की गई। पंजाब भी दिल्ली के नक्शे कदम पर है। भला हरियाणा क्यों पीछे रहता! देश को सबसे ज़्यादा पदक विजेता राज्य की सरकार ने ओलंपिक पदक विजेताओं को क्रमशः छह करोड़, चार करोड़ और दो करोड़ की नकद पुरस्कार राशि घोषित कर सारे रिकार्ड धो डाले। अब पैरा खिलाड़ियों को बराबरी का दर्ज़ा दिलाने के नारे के साथ उतरप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरियाणा सरकार की तरह राज्य के अंतरराष्ट्रीय पदक विजेताओं को सम्मानित करने का फ़ैसला किया है।
हालाँकि ज़्यादातर सरकारें चुनाओं से पहले या किसी खास अवसर पर दिव्यागों की खोज खबर लेती हैं लेकिन सभी ने विकलांग, नेत्रहीन, मूक, बधिर खिलाड़ियों के प्रति चिंता व्यक्त की है। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि अन्य राज्य सरकारें उनके साथ सौतेला व्यवहार क्यो कर रही हैं? जहाँ एक ओर कुछ राज्य करोड़ों देने का दम भर रहे हैं तो बाकी या तो मौन धारण किए हैं या अपने चैम्पियनों को कम तर आंक रहे हैं। हैरानी वाली बात यह है कि केंद्र सरकार अपने ओलंपिक पदक विजेताओं को क्रमशः 75लाख, 50 लाख और 30 लाख ही दिए जाते हैं।
चूँकि कुछ प्रदेशों में अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है, नतीजन अनेक अवसरों पर राज्य सरकारों की निंदा काट की स्थिति भी पैदा हुई है। मध्य प्रदेश, बिहार, उतराखंड, राजस्थान, गोवा, बंगाल, मेघालय, असम, सिक्किम, अरुणाचल, हिमाचल, तमिलनाडु और कई अन्य राज्यों की नकद पुरस्कार योजनाओं की जानकारी भी फाइलों में दब कर रह गई है। जिन राज्यों में करोड़ों बाँटने का चलन नहीं है, उनके खिलाड़ियों को केंद्र की मदद का सहारा है।
दरअसल देश के कुछ राज्यों में ही पदक विजेता खिलाड़ी पैदा होते हैं। चूँकि बाकी बहुत पिछड़े हैं इसलिए उनके सामने कभी पेचीदा स्थिति नहीं आई। फिरभी देश और तमाम राज्यों में समान नीति बनाए जाने की ज़रूरत है, ताकि विवादों से बचा जा सके|
सवाल यह पैदा होता है कि सामान्य या पैरा खिलाड़ियों को दी जाने वाली पुरस्कार राशि में समरूपता क्यों नहीं है? क्यों सभी खिलाड़ियों को एक ही तराजू से नहीं तोला जाता। एक तरफ तो सरकारें पैरा खिलाड़ियों के प्रति उदार हृदय का दिखावा करती हैं तो दूसरी तरफ आलम यह है कि एक देश में अलग अलग राज्यों ने खिलाड़ियों के लिए अलग मापदंड बना रखे हैं, जोकि कदापि न्यायसंगत नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं, आप इनके लेखों को www.sajwansports.com पर भी पढ़ सकते हैं.)