मातृत्व के सुख में बाधा बन सकती है पेल्विक टीबी

Pelvic TB can become an obstacle in the happiness of motherhood संध्या झा

साइलेंट किलर की तरह पैर पसार रही टीबी जिसमे से एक तरह की एक्स्ट्रा पलम्युनरी टीबी है पेल्विक टीबी, जिसके चलते कई महिलाएं मां बनने से वंचित रह जाती हैं. इस संबंध में, पूर्व आईएम-ईडीबी अध्यक्ष,दिल्ली गायनेकोलोगिस्ट फोरम की सदस्य डॉ.ममता ठाकुर वरिष्ट स्त्री रोग विशेषज्ञ से हुई बात चित के अनुसार

क्या है पेल्विक टीबी?

आमतौर पर टीबी की पहचान का पहला और आम प्रचलित तरीक़ा है, मरीज़ को पंद्रह दिन से अधिक समय तक खांसी आना. पर टीबी सिर्फ़ खांसने से पहचानी जा सके यह भी संभव नहीं है, क्योंकि 20 से 25 फ़ीसदी लोगों को एक्स्ट्रा पलम्युनरी टीबी होती है, इन्हीं में से एक होती है पेल्विक टीबी. टीबी का यह प्रकार आसानी से पकड़ में नहीं आता है और इसकी वजह से कई बार महिलाओं को मां बनने के सुख से भी वंचित होना पड़ता है. इसलिए इसके बारे में जानकर और समय पर सतर्क होकर सही उपचार से ही इसका ईलाज किया जा सकता है.

शादी के पांच साल बाद जब कई डॉक्टरों को दिखाने के बाद बच्चे न हो पाने की कोई खास वजह पता नहीं चल पायी और जांच में भी कोई खास कारण सामने न आने पर एक गायनिकोलॉजिस्ट ने नेहा* (परिवर्तित नाम) को कुछ समय के लिए ट्रायल के तौर पर टीबी की दवा देना शुरू किया. नतीजे सकारात्मक निकले और रूही ने कुछ समय बाद ही कंसीव कर लिया. इससे स्पष्ट हुआ कि नेहा को पेल्विक टीबी है. इसी तरह भावना* ने शादी के तीन साल बाद जब फ़ैमिली प्लानिंग का फ़ैसला किया तो कुछ जांचों से पता चला कि उसके फैलोपिन ट्यूब में टीबी की वजह से कुछ ख़राबी आने के कारण वह मां नहीं बन पा रही है. हमारे देश में हर साल 25-30 फ़ीसदी महिलाएं इंफ़र्टिलिटी की शिकार हो रही हैं. इनमें से लगभग 50 से 60 हजार केस पेल्विक टीबी यानी जननांगों की टीबी महिलाओं में नि: संतान होने की वजह हो सकती है. कई बार स्थिति ऐसी हो जाती है कि महिलाएं जीवनभर मां नहीं बन पाती हैं.

 

माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्लोरसिस से प्रतिवर्ष लगभग 26 लाख लोग संक्रमित होते हैं. यह बीमारी प्रमुख रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन अगर इसका समय रहते उपचार ना कराया जाए तो यह रक्त के द्वारा शरीर के दूसरे भागों में भी फैल सकती है और उन्हें संक्रमित करती है ऐसे संक्रमण को द्वितीय संक्रमण कहा जाता है. यह संक्रमण किडनी, पेल्विक, डिम्ब वाही नलियों या फ़ैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है. टीबी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, क्योंकि जब बैक्टीरियम प्रजनन मार्ग में पहुंच जाते हैं तब जेनाइटल टीबी या पेल्विक टीबी हो जाती है, जो महिलाओं और पुरुषों दोनों में नि:संतानता का कारण बन सकता है. महिलाओं में टीबी के कारण जब गर्भाशय का संक्रमण हो जाता है तब गर्भकला या गर्भाशय की सबसे अंदरूनी परत पतली हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप गर्भ या भ्रूण के ठीक तरीक़े से विकसित होने में बाधा आती है. जबकि पुरुषों में इसके कारण एपिडिडायमो आर्किटिस हो जाता है जिससे शुक्राणु वीर्य में नहीं पहुंच पाते और पुरुष एजुस्पर्मिक हो जाते हैं. टीबी से पीड़ित हर दस महिलाओं में से दो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. जननांगों की टीबी के 40 फ़ीसदी मामले महिलाओं में देखे जाते हैं.

इंफ़र्टिलिटी की वजह बन सकती है टीबी

टीबी के कारण महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे कुछ लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्क़िल है. इसमें पीरियड्स का अनियमित होना, वेजाइनल डिस्चार्ज, पेट में नीचे की तरफ़ गंभीर दर्द, हैवी ब्लीडिंग, वज़न का कम होना, बुख़ार जैसा लगना, दिल की धड़कन का तेज़ होना, वज़न में कमी, भूख में कमी, बांझपन, हाइड्रोसैलपिंक्स और एक्टोपिक गर्भावस्था, सेक्सुअल संबंध बनाने में दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन कई मामलों में ये लक्षण संक्रमण काफ़ी बढ़ जाने के पश्चात् दिखाई देते हैं. पुरुषों में योनि में स्खलन ना कर पाना, शुक्राणुओं की गतिशीलता कम हो जाना और पिट्युटरी ग्रंथि द्वारा पर्याप्त मात्रा में हार्मोंन का निर्माण ना करना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. यह भी हो सकता है कि ट्यूबरक्योलोसिस के लक्षण न दिखे और महिला इनफ़र्टिलिटी से परेशान होकर डॉक्टर के पास जाए और जांच के बाद पता चले कि फ़ैलोपियन ट्यूब डैमेज हो चुकी है और यूटरस में बहुत सारे जाले बन चुके हैं. जिस वजह से पीरियड भी नहीं हो रहे हैं. ऐसे केस में इलाज संभव नहीं हो पाता.

अगर लड़की शादीशुदा है और पीरियड में किसी भी तरह की दिक्कत हो रही है या सेक्शुअल संबंधों के समय बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है, वेजाइनल डिस्चार्ज भी ज्यादा है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. किसी भी तरह के टीबी की शिकार महिलाओं में यूटरस में टीबी होने की आशंका 30% बढ़ जाती है.5-10% महिलाओं में हाइड्रो साल्पिंगिटिस की समस्या होती है, जिसमें फ़ैलोपियन ट्यूब में पानी भर जाता है. यह भी इन्फ़र्टिलिटी की वजह बनता है. टीबी बैक्टीरिया मुख्य रूप से फ़ैलोपियन ट्यूब को बंद कर देता है, जिससे पीरियड्स रेगुलर नहीं आते. महिला में पेट के निचले हिस्से में बहुत दर्द होता है और महिला कंसीव नहीं कर पाती.

अगर आपके साथ ऐसा कुछ हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. ऐसे में सबसे पहले ब्लड टेस्ट किया जाता है, यूटरस की बायोप्सी की जाती है, इसके अलावा जेनेटिक टेस्ट भी होता है. इसके अलावा शरीर में कहीं भी टीबी का पता लगाने के लिए ट्यूबरकुलीन स्किन टेस्ट किया जाता है. जिससे टीबी के इंफेक्शन का पता चलता है. शुरू में 6 महीने तक इलाज का कोर्स चलता है. 6 महीने का कोर्स पूरा करना ज़रूरी है. कोर्स पूरा न करने पर टीबी का रेजिस्टेंस डेवलप हो जाता है और फिर 12 से 18 महीने तक इलाज चलता है. ज़्यादातर यह कोर्स दो साल का होता है. एचएसजी टेस्ट के द्वारा भी यूटरस और एंडोमेट्रियम में असमान्यता की जांच की जाती है.

क्या हो उपचार का सही तरीक़ा?

पेल्विक टीबी की संभावना 15 से 35 साल की उम्र में अधिक होती है बताते हुए इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली में ऑन्कोलॉजी एवं रोबोटिक गायनिकोलॉजी की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. ठाकुर कहती हैं,‘‘प्रजनन अंगों में ट्युबरकुलोसिस (टीबी) महिलाओं में बांझपन के मुख्य कारणों में से एक है. गर्भाशय में होने वाला टीबी सबसे पहले फ़ैलोपियन ट्यूब को प्रभावित करता है. ट्यूब में इन्फेक्शन होने के कारण या तो ट्यूब ब्लॉक हो जाती है या फिर टीबी गर्भाशय एवं अंडाशय (यूट्रस और ओवरीज़) में फैल सकता है. कभी-कभी यह बीमारी सर्विक्स, वैजाइना और वल्वा (बाहरी हिस्सों) तक भी फैल जाती है. यह किसी भी उम्र की महिलाओं को हो सकता है, लेकिन प्रजनन उम्र यानी 15 से 35 वर्ष की महिलाओं में इसकी संभावना अधिक होती है.’’

साहिबाबाद मेडिकेयर में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा बताती हैं कि टीबी की पहचान के पश्चात् ऐंटी टीबी दवाइयों से तुरंत उपचार प्रारंभ कर देना चाहिए. एंटीबॉयोटिक्स का जो छह से आठ महीनों का कोर्स है वह ठीक तरह से पूरा करना चाहिए. अंत में संतानोत्पत्ति के लिए इन-विट्रो फ़र्टिलाइजेशन या इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन आईसीएसआई की सहायता भी ली जाती है. लेकिन ऐसी महिलाओं को मां बनने के बाद एक नई चिंता सताने लगती है कि क्या स्तनपान कराने से उनका बच्चा तो संक्रमण की चपेट में नहीं आ जाएगा. ऐसी माताओं को चाहिए कि जब वे अपने बच्चों को स्तनपान कराएं तो चेहरे पर मास्क लगा लें.

टीबी की संक्रमण में आने से बचने के लिए भीड़-भाड़ वाले स्थानों से दूर रहें जहां आप नियमित रूप से संक्रमित लोगों के संपर्क में आ सकते हैं. अपनी सेहत का ख्याल रखें और नियमित रूप से अपनी शारीरिक जांचे कराते रहें. अगर संभव हो तो इस स्थिति से बचने के लिए टीका लगवा लें.

डॉक्टर की सलाह पर दवाइयों का कोर्स करने के साथ फल और सब्जियों का ज़्यादा सेवन भी ज़रूरी है. अगर कोई विटामिन सी का सेवन ज़्यादा करता है तो इससे टीबी का बैक्टेरिया जल्दी नष्ट होते हैं. इसके अलावा विटामिन डी का सप्लीमेंट भी दिया जाता है जिससे बॉडी की इम्युनिटी बढ़ती है. इस दौरान स्मोकिंग, अल्कोहल, कॉफ़ी आदि से परहेज करना चाहिए. इसके अलावा रिफ़ाइन प्रोडक्ट्स, जैसे-शुगर, वाइट ब्रेड का सेवन कम से कम करें. क्योंकि ये सारी चीज़ें इंफ़ेक्शन के बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं. संतरा, आम, गाजर, अमरूद, आंवला, टमाटर, केला, अंगूर, खरबूजा जैसे फलों से टीबी के जीवाणुओं से लड़ने में मदद मिलती है. इसके अलावा शकरकंद, ब्रोकलि जैसी सब्जियों में भी ऐंटी ऑक्सीडेंट होता है जो टीबी में फायदा करता है. लहसुन खाना टीबी के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है. लहसुन में मौजुद एलिसिन टीबी के कीटाणुओं को नष्ट करने में मददगार है.

किन महिलाओं को हो सकती है टीबी?

गर्भावस्था के दौरान कई महिलाओं को टीबी होने के मामले सामने आए हैं. आमतौर पर कमज़ोर महिलाओं में जननांगों की टीबी अधिक होती है. गर्भावस्था में निम्न कारण टीबी की सौगात दे सकते हैं

  • अगर घर में किसी को टीबी या फेफड़ों से संबंधित बीमारी हो तो उनके लगातार संपर्क में रहने से गर्भवती महिला को टीबी हो सकता है.
  • एचआईवी के कारण टीबी के संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है.
  • प्रेग्नेंसी में कम वज़न, किसी दवा या शराब का सेवन करने वाली महिलाओं को भी इसका ख़तरा अधिक रहता है.
  • कमज़ोर इम्युनिटी और लिवर, किडनी या फेफड़ों की किसी बीमारी से ग्रस्त महिलाओं को इसका ख़तरा अधिक होता है.

हौली ऐंजल हॉस्पिटल  में चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमंत तिवारी बताते हैं कि एक्स्ट्रा पलम्युनरी टीबी के लगभग 1 तिहाई मामलों में पेल्विक टीबी के केस होते हैं. महिलाओं में यह समस्या होने पर टीबी स्पेशलिस्ट और गायनिकोलॉजिस्ट मिलकर उपचार करते हैं. अक्सर आर्थिक रूप से कमजोर तबके की महिलाओं में इसके केस ज्यादा देखने को मिलते हैं. एनीमिया, वजन कम होना, शारीरिक रूप से कमजोर महिलाएं इसकी शिकार ज़्यादा होती हैं.

 

 

 

बचाव के लिए अपनाएं इन तरीकों को

  • -भीड़-भाड़ वाली जगहों से दूर रहें.
  • -प्राइवेट पार्ट की साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखें.
  • -नियमित रूप से शारीरिक जांच करवाएं.
  • -टीबी का इंजेक्शन लगवाएं.
  • -हरी सब्जियां और फल खाएं.
  • -नियमित रूप से एक्सरसाइज करें.
  • -प्रदूषण से बचकर रहें.
  • जंक और फ़ास्ट फ़ूड से परहेज करें.

इन सावधानियों के साथ-साथ सबसे ज़रूरी यह है कि महिलाओं को घर में बेहतर माहौल मिले और उनके साथ कोई भेदभाव न हो. अक्सर लिंग के आधार पर असमानता के मामले टीबी के केस में भी देखने को मिलते हैं कि टीबी होने पर लड़की की शादी टूट गई, महिला को टीबी होने पर घर से बच्चों सहित निकाल दिया, लेकिन इस तरह के भेदभाव को भी समाज में सकारात्मक उदाहरण के साथ ही दूर किया जा सकता है. यह मानना है उन महिलाओं का जो इस समय टीबी से संक्रमित हैं और घर में मिल रहे बेहतर वातावरण और सही इलाज के साथ जल्द स्वस्थ होने की आशा रखे हुए हैं.

Pelvic TB can become an obstacle in the happiness of motherhood

( लेखिका भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में अकादमिक – शैक्षणिक सहयोगी हैं)

 

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