राफेल सौदे की जांच और भाजपा की हकलाहट

निशिकांत ठाकुर

भारत ने वायुसेना के लिए 36 राफेल विमान खरीदने के लिए चार साल पहले 23 सितंबर, 2016 को फ्रांसीसी एरोस्पेस कंपनी दसॉल्ट एविएशन के साथ 59 हजार करोड़ रुपये का करार किया था। उस करार के तहत अब तक पांच राफेल विमान की डिलीवरी फ्रांस कर चुका है। इससे पहले साल 2007 में वायुसेना की ओर से मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया था। इसके बाद भारत सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों की खरीद का टेंडर जारी किया। टेंडर के हिसाब से जिन लड़ाकू विमानों को खरीदा जाना था, उनमें अमेरिका के बोइंग F/A-18 सुपर हॉरनेट, फ्रांस का दसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान एम-35 और स्वीडन के साब जेएएस-39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे। लेकिन, इनमें फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन के राफेल ने बाजी मारी।
4 सितंबर, 2008 को रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड नाम (आरएटीएल) से एक नई कंपनी बनाई। इसके बाद आरएटीएल और दसॉल्ट के बीच बातचीत हुई और ज्वाइंट वेंचर बनाने पर सहमति बन गई। इसका मकसद भविष्य में भारत और फ्रांस के बीच होने वाले सभी करार हासिल करना था। मई 2011 में एयर फोर्स ने राफेल और यूरो फाइटर जेट्स को शॉर्ट लिस्टेड किया। जनवरी 2012 में राफेल खरीदने के लिए टेंडर सार्वजनिक कर दिया गया। इस पर राफेल ने सबसे कम दर पर विमान उपलब्ध कराने की बोली लगाई। शर्तों के मुताबिक भारत को 126 लड़ाकू विमान खरीदने थे।

इनमें से 18 लड़ाकू विमान तैयार हालत में देने की बात थी, जबकि बाकी 108 विमान दसॉल्ट की मदद से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा तैयार किया जाना था। हालांकि, इस दौरान भारत और फ्रांस के बीच इन विमानों की कीमत और इनको बनाने की प्रक्रिया शुरू करने के समय पर अंतिम समझौता नहीं हुआ था। 13 मार्च, 2014 तक राफेल विमानों की कीमत, टेक्नोलॉजी, वेपन सिस्टम, कस्टमाइजेशन और इनके रखरखाव को लेकर बातचीत जारी रही। साथ ही एचएएल और दसॉल्ट एविएशन के बीच इसे बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर हो गए। यूपीए—2 शासनकाल में राफेल को खरीदने की डील को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। हालांकि, कांग्रेस पार्टी दावा करती है कि उसने 526.1 करोड़ रुपये प्रति राफेल विमान की दर से डील की थी। हालांकि, यह साफ नहीं हुआ था कि दसॉल्ट भारत की जरूरतों के मुताबिक इन विमानों को तय वक्त में उपलब्ध कराएगा या नहीं। इसकी वजह यह है कि यूपीए शासनकाल में यह डील पूरी नहीं हुई थी।
अब अपना देश भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गया है। छोटे-मोटे भ्रष्टाचार के समाचार तो हम लगभग रोज ही अखबारों में पढ़ते और टेलीविजन पर देखते रहते हैं, लेकिन जब रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार की बात देश में होती है तो मन व्यग्र हो जाता है। रक्षा सौदे में कई घोटाले हुए होंगे, लेकिन आजादी के बाद जो सबसे चर्चित हुए वह हैं, उनमें बोफोर्स और राफेल शीर्ष पर हैं। धीरे—धीरे भ्रष्टाचार के दोनों मामले भी अन्य मामलों की तरह शांत हो गए थे। बोफोर्स तो हालांकि अभी भी जीवित है, लेकिन उसके कई कारण थे।

पर, अब राफेल में हुए भ्रष्टाचार का जिन्न बोतल से फिर बाहर आ गया है। वैसे भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल के मामले में रक्षा मंत्रालय को क्लीन चिट दे दिया है, लेकिन अब राफेल लड़ाकू विमान सौदे में भ्रष्टाचार को लेकर फ्रांस में जांच बिठाए जाने पर भारत में यह मुद्दा फिर गरम हो गया है। ऐसे में कांग्रेस ने रक्षा सौदे में हेराफेरी की आशंका जताते हुए संसदीय समिति से जांच की मांग फिर दोहराई है। फ्रांस ने एनजीओ की शिकायत पर 59 हजार करोड़ रुपये के सौदे में भ्रष्टाचार की जांच के लिए जज नियुक्त किया है। वहीं, भाजपा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट और सीएजी से इस सौदे में क्लीन चिट मिल चुकी है, इसके बावजूद राहुल गांधी बार—बार राफेल को लेकर झूठ—पर—झूठ बोल रहे है, फ्रांस की जांच से सौदे पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
कांग्रेस का कहना है कि राफेल सौदे को लेकर फ्रांस द्वारा न्यायिक जांच के आदेश देने के बाद राहुल गांधी की बात सही साबित हुई है। हम राफेल खरीद की जेपीसी जांच की मांग करते हैं। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि उनकी सरकार फ्रांसीसी जांच के संदर्भ में जेपीसी जांच की अनुमति कब देगी। कांग्रेस का कहना है कि, ‘बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार’, ‘देशद्रोह’, ‘राजकोष को नुकसान’ से जुड़े ‘राफेल घोटाले’ का घिनौना सच आखिरकार बेनकाब हो गया है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी आज सही साबित हुए हैं।’

कांग्रेस का कहना है कि फ्रांस में पब्लिक प्रोसिक्यूशन सर्विस ने राफेल कागजात में भ्रष्टाचार, क्रोनी कैपिटलिज्म, अनुचित प्रभाव आदि की जांच शुरू की है। जांच के दायरे में पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, मौजूदा राष्ट्रपति इमेनुअल मैक्रो पूर्व रक्षा मंत्री और वर्तमान विदेश मंत्री हैं। कांग्रेस का कहना है कि इस बेहद संवेदनशील मामले की जांच के लिए जब जज की नियुक्ति की गई है, ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री को राफेल सौदे की इस अनियमितता के लिए जेपीसी से जांच करानी चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के खजाने को नुकसान पहुंचाने का मामला है और सुप्रीम कोर्ट इस तरह की जांच करने में सक्षम नहीं है। कांग्रेस की ओर लगाए गए आक्षेप को लेकर भाजपा और भाजपानीत केंद्र सरकार में घमासान मचा हुआ है। उसके कई मंत्रियों सहित प्रमुख नेताओं का कहना है कि राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद में कोई घोटाला हुआ ही नहीं और सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिल जाने के बाद कांग्रेस इसलिए तिलमिलाकर आरोप लगा रही है, क्योंकि इस खरीद में उसे दलाली नहीं मिली।
प्रश्न यह है कि फ्रांस में इस तथाकथित घोटाले की जांच कर रही जज की कमिटी ने यदि यह पाया कि सच में राफेल खरीद मामले में घोटाला हुआ है और इस खरीद में भारतीय उच्च राजनेताओं की पॉकेट गर्म की गई है, तो फिर दुनियाभर में भारत की कितनी किरकिरी होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

यदि हमारी सरकार इतनी आश्वस्त है कि उसके कार्यकाल में राफेल खरीद मामले में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है तो इस बात में क्या परेशानी है और डर किस बात का है कि उसकी जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) करके अपनी रिपोर्ट संसद में पेश कर दे। मामला बहुत ही उलझ गया है, इसलिए भारत की किरकिरी दुनिया के सामने न हो, सरकार विपक्ष के इस आरोप से मुक्त होने का प्रयास क्यों नहीं कर रही है? आखिर भाजपा या केंद्र सरकार के मन में कांग्रेस के प्रति इतनी कुंठा क्यों भरी है?

क्या वह कांग्रेस मुक्त भारत के अपने नारे के फेल होने से नर्वस हो रही है या फिर उसके मन में यह भाव है कि देश में उनलोगों जैसा राजनीतिज्ञ और बुद्धिमान दूसरा कोई है ही नहीं!  भाजपा के मन में शायद कांग्रेस के प्रति इतना डर बैठ गया है कि अब राहुल गांधी के एक बयान पर उसके बड़े से बड़े नेता और एक अदना कार्यकर्ता भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ने का धौंस दिखाने लगा है। निश्चित रूप से भाजपा का यह डर ही है कि राहुल गांधी के एक बयान पर उसके सारे नेता तिलमिला जाते हैं और ‘भक्तों’ को अपने नीचे से कुर्सी खिसकती नजर आने लगती है।
अब कुछ और ही वक्त तक इंतजार करने की बात है। जैसे ही फ्रांस में राफेल की जांच करने वाली कमेटी की रिपोर्ट आएगी, फिर यदि भारत सरकार पाक-साफ है और राफेल खरीद घोटाले में कोई धांधली नहीं की गई है तो निश्चित रूप से दूध—का—दूध और पानी—का—पानी हो जाएगा । लेकिन , जांच तो होने दीजिए, रिपोर्ट तो आने दीजिए, इसलिए थोड़ा धैर्य रखिए। यदि जांच से पहले आपा खो देंगे तो देश में नहीं विश्व में भी यह संदेश जाएगा कि दाल में कुछ काला जरूर है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)।

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