न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश, घर से जली हुई ₹500 की गड्डियों का मिला था ढेर: रिपोर्ट 

Recommendation for impeachment against Justice Yashwant Verma, a pile of burnt bundles of ₹500 notes were found in his house: Reportचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यरत न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय वरिष्ठ न्यायाधीशों की समिति ने यह सिफारिश की है।

यह कार्रवाई उस घटना के बाद शुरू हुई, जब मार्च में दिल्ली स्थित 30 तुगलक क्रेसेंट पर न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास में आग लगने की घटना के दौरान जली हुई ₹500 की नोटों की गड्डियां पाई गईं।

समिति ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए और न्यायमूर्ति वर्मा का भी बयान लिया। अपनी 64 पृष्ठों की रिपोर्ट में समिति ने स्पष्ट किया, “… यह समिति मानती है कि नकदी 30 तुगलक क्रेसेंट परिसर के भीतर स्थित स्टोररूम में पाई गई, जो न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा आधिकारिक रूप से अधिग्रहीत था।”

रिपोर्ट के अनुसार, आग 14 मार्च की रात लगी थी और दमकल कर्मियों ने जब आग बुझाई, तब उन्हें स्टोररूम में जली हुई बड़ी मात्रा में ₹500 के नोट मिले। एक चश्मदीद गवाह ने बताया, “जैसे ही मैं अंदर गया, मैंने दाईं ओर और सामने फर्श पर पड़े ₹500 के नोटों के ढेर देखे। मैं इतनी बड़ी मात्रा में नकदी देखकर चौंक गया… ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा।”

समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि नोट छोटे मूल्यवर्ग के नहीं थे और इस तरह की नकदी की मौजूदगी बिना न्यायमूर्ति वर्मा या उनके परिवार की जानकारी के संभव नहीं लगती।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि न्यायमूर्ति वर्मा की बेटी दिया वर्मा और उनके निजी सचिव राजिंदर कार्की ने कथित तौर पर दमकल कर्मचारियों से नकदी का जिक्र न करने के लिए कहा था।

समिति का निष्कर्ष है कि न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोप गंभीर हैं और महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं।
“यह समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव कुमार द्वारा उठाए गए आरोपों में पर्याप्त तथ्यात्मक आधार है, और सिद्ध हुई दुराचारिता इतनी गंभीर है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने की कार्यवाही शुरू की जाए।”

हालांकि, न्यायमूर्ति वर्मा ने सभी आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि उन्हें या उनके परिवार को इस नकदी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने दावा किया कि स्टोररूम मुख्य घर से अलग था और परिसर में आने वाला कोई भी व्यक्ति वहां जा सकता था।

अब देखना होगा कि इस मामले में संसद और न्यायपालिका की अगली कार्रवाई क्या होगी। यह मामला न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है।

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