….तो क्या रेल का ‘खेल’ खत्म!

राजेंद्र सजवान

आत्म निर्भरता की तरफ बढ़ते भारत सरकार के तेज कदमों का पूरा देश स्वागत कर रहा है। लेकिन भारतीय रेल इस कदर तेज रफ़्तार से दौड़ेगी शायद ही किसी ने सोचा होगा। सोचा तो यह भी नहीं था कि एक महामारी दुनिया को इस कदर हिला कर रख देगी और भारतीय मजदूरों को रेल की पटरियों तले कुचले जाने को विवश होना पड़ेगा।  रेल का खेल यहीं थमने वाला नहीं है भारत की बड़ी आबादी को रोज़गार देने वाली और खिलाड़ियों की ‘जीवन रेखा’ कही जाने वाली भारतीय रेल अब पटरी से उतर गई है और कई मजदूरों की जान लेने के बाद भी उसकी प्यास नहीं बुझी है। उसके निशाने पर अब देश के करोड़ों बेरोज़गार हैं जिनमें हज़ारों लाखों खिलाड़ी भी शामिल हैं।

सरकार ने रेलवे को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया है और पचास फीसदी पद ख़त्म कर दिए हैं, साथ ही दो साल में सृजन हुए सभी पदों और नयी भर्ती पर भी रोक लगा दी गई है। सीधा सा मतलब है कि खेल कोटा भी प्रभावित होगा। हालाँकि रेलवे का खेल विभाग अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है लेकिन डर और दहशत में हर कोई है और कोई भी खुल कर सामने नहीं आना चाहता।

इसमें दो राय नहीं कि भारत में रोज़गार प्रदान करने वाला रेलवे सबसे बड़ा सरकारी विभाग है, जिसने आज़ादी के बाद से खिलाड़ियों को अपने बेड़े में शामिल कर खेलोत्थान में बड़ी भूमिका निभाई है। भारतीय हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, मुक्केबाज़ी, कुश्ती, कबड्डी, बैडमिंटन, जूडो, एथलेटिक, बास्केट बाल, हैंड बाल, बॉडी बिल्डिंग और तमाम खेलों में रेलवे हमेश अव्वल रहा क्योंकि उसने हर प्रतिभावान खिलाड़ी को सबसे पहले लपका और उसकी उपलब्धियों के हिसाब से नौकरी प्रदान की। 1951 और 1962 की एशियाड विजेता भारतीय फुटबाल टीम के अधिकांश खिलाड़ी, 1975 की विश्व विजेता हॉकी टीम, एशियाड और ओलंपिक में धूम मचाने वाले चैम्पियन मुक्केबाज़, पहलवान और एथलीट रेलवे में सेवारात रहे।

हालाँकि रेलवे को लेकर अन्य सरकारी और गैर सरकारी विभागों द्वारा समय समय पर आरोप लगाए गये कि राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रेलवे ज्यादातर  खिताब इस लिए जीत जाता है क्योंकि वह देश के क्रीम खिलाड़ियों को अपनी टीम में शामिल करता है। बेशक, ऐसा है भी, लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि अंतरराष्ट्रीय और नामी खिलाड़ियों के अलावा राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को भी नौकरियाँ दी गईं, जिनकी संख्या हजारों में हो सकती है। 2018 के  एशियाई खेलों में देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के सम्मान समारोह में रेल मंत्री ने बड़े बड़े दावे किए थे और कहा था कि उनका विभाग और अधिक खिलाड़ियों को रोज़गार देगा लेकिन उनकी रेल उल्टी दिशा में चल पड़ी है।

कुछ एक भारतीय टीमों पर नज़र डालें तो महिला हॉकी, महिला क्रिकेट, पुरुष हॉकी, कुश्ती, मुक्केबाज़ी और कई अन्य खेलों की राष्ट्रीय टीमों में रेलवे की भागीदारी अस्सी फीसदी से भी अधिक की रही है। लेकिन भविष्य में शायद ऐसा संभव ना हो पाए। कारण, रेलवे की हालत खराब है आम नौकरियों के साथ साथ खेल कोटे में भर्ती होने वाले खिलाड़ियों की संख्या भी घट सकती है। कुछ पूर्व खिलाड़ी तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अब रेलवे की बादशाहत खत्म  होने का अंदेशा है।  खिलाड़ी रेल कर्मी भी भविष्य को अनिश्चित मान रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं निजीकरण की रफ़्तार उनके खेल और नौकरी को कुचल ना डाले।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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