कोरोना काल में विदेशी सरकारों की अग्निपरीक्षा

कृष्णमोहन झा

जिस जानलेवा कोरोना वायरस के बारे में यह कहा जाता है कि 2019 के अंत में चीन की एक प्रयोगशाला से निकल कर उसने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था वह इतना लंबा अंतराल बीत जाने के बाद भी दुनिया के अनेकानेक देशों के लिए गंभीर चिंता का कारण बना हुआ है।इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसी महाशक्तियां भी शामिल हैं।यद्यपि कोरोना प्रभावित अधिकांश ‌देशों में कोरोना की रोकथाम हेतु टीकाकरण का अभियान भी प्रारंभ हो चुका है परंतु यह वायरस अपना रूप बदल बदल कर मानव जाति के लिए एक ऐसा खतरा बनता जा रहा है जिससे पूरी तरह छुटकारा मिलने का कोई निश्चित समय बता पाना अभी तक किसी देश के वैज्ञानिकों के लिए संभव नहीं हो पाया है। अब स्थिति यह है कि भारत में अगर इस वायरस की दूसरी लहर हाहाकार मचा रही है तो दुनिया के कुछ संपन्न और शक्ति शाली देशों को जानलेवा कोरोना वायरस की तीसरी लहर और चौथी लहर ने दहशत में डाल रखा है। सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर पहली लहर से अधिक भयावह प्रतीत हो रही है।

कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर की चपेट में आ चुका अमेरिका अब चौथी लहर की आशंका से डरा हुआ है तो फ्रांस और ब्रिटेन की सरकारें अब सारे सुरक्षात्मक उपाय अपनाने के साथ ही एक बार फिर अंतिम विकल्प के रूप में लाक डाउन का सहारा लेने को मजबूर होती जा रही हैं लेकिन वहां की जनता अब किसी भी भी रूप में लाक डाउन ‌लागू किए जाने का इतना सख्त विरोध कर रही है कि लाक डाउन के नियमों का पालन करवाने में भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है जबकि कोरोना की तीसरी लहर की चपेट में आने वाले यूरोपीय देशों की सरकारों का मानना है कि दूसरी लहर के दौरान लाक डाउन में छूट देने का दुष्परिणाम ही तीसरी लहर के रूप में सामने आया है इसलिए अब सख्त लाक डाउन ही कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति से निपटने का एकमात्र विकल्प है।

यह भी आश्चर्यजनक है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की जो टीम कोरोना वायरस की उत्पत्ति के कारणों का पता लगाने के लिए चीन गई थी वह वहां की प्रयोग शाला में विस्तृत जांच के बावजूद अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। इस टीम ने यह अनुमान व्यक्त किया है कि दुनिया के अधिकांश देशों को अपने प्रकोप का शिकार बनाने वाला जानलेवा कोरोना वायरस पहले चमगादड़ से अन्य जंतुओं ‌में फैला होगा और फिर उन जंतुओं के माध्यम से समूची मानव जाति में इसके संक्रमण की शुरुआत हुई। गौरतलब है कि अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों की सरकारें यह आरोप लगा चुकी हैं कि कोरोनावायरस की उत्पत्ति चीन की एक प्रयोगशाला में हुई थी परंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान प्रमुख उसका बचाव कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के जांच दल ने अपनी जो रिपोर्ट संगठन को सौंपी गई है उसके अनुसार उसे चीन की प्रयोग शाला में इस वायरस की उत्पत्ति होने की आशंका की पुष्टि के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं।

अब यह जांच दल इस पक्ष में है कि कोरोनावायरस की उत्पत्ति के कारणों का पता लगाने के लिए और दूसरे पहलुओं से जांच की आवश्यकता है। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के अनेक देशों में कोरोनावायरस की दूसरी, तीसरी और चौथी लहर के चलते भयावह स्थिति उत्पन्न होने के पीछे टीकाकरण की धीमी रफ्तार को मुख्य कारण बताया है। संगठन ने कहा कि टीकाकरण ही इस महामारी को नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय है परंतु अनेक देशों में टीकाकरण की धीमी रफ्तार चिंता जनक है। जबकि यूरोप के लगभग पचास देशों को यह महामारी अपनी चपेट में ले चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यूरोपीय देशों में कोरोना संक्रमण पिछले एक सप्ताह में दस प्रतिशत की दर से बढ़ा है।

यद्यपि दुनिया में कोरोना संक्रमण का शिकार हुए ‌हर देश की सरकार यह मानती है कि कोरोना की महामारी को नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय टीकाकरण ही है परंतु अभी भी क ई देशों में टीकाकरण की रफ्तार महामारी के प्रसार की रफ़्तार को देखते हुए बहुत धीमी है। टीकाकरण के मामले में अमेरिका की प्रगति इस समय अच्छी मानी जा रही है जहां एक तिहाई आबादी को कोरोना के टीके की पहली डोज और बीस प्रतिशत आबादी को कोरोना के टीके की दोनों डोज दी जा चुकी हैं। दूसरी ओर आस्ट्रेलिया जैसे देश भी हैं जो अपने लक्ष्य से बहुत पीछे हैं। आस्ट्रेलिया सरकार ने मार्च 2021तक अपने देश में टीके की 40 लाख डोज देने का लक्ष्य रखा था परंतु अभी तक वहां के नागरिकों को टीके की 6 लाख डोज मिल पाई हैं। अधिकांश देशों में टीकाकरण की सुस्त रफ्तार का एक बड़ा कारण टीके के बारे में फैली भ्रांतियां‌ हैं इसलिए लोग अपने टीकाकरण हेतु उदासीन बने हुए हैं। अब यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए जागरूकता अभियान चला कर लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रोत्साहित करें।

दरअसल बीच बीच में जब टीकाकरण के बाद किसी व्यक्ति के कोरोना संक्रमित हो जाने अथवा स्वास्थ्य में कोई अन्य गड़बड़ी पैदा होने की खबरें आती हैं तो लोग टीके की उपयोगिता पर सवाल उठाने लगते हैं परंतु वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की नगण्य खबरों के आधार पर टीके को निरर्थक नहीं ‌ठहराया जा सकता। गौरतलब है कि विगत दिनों ब्रिटेन में सात लोगों को कोरोनावायरस का टीका लगाए जाने के बाद ब्लड क्लाटिंग के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। इस तरह की खबरों से लोगों के मन में कोई भ्रांति पैदा न हो इसलिए ब्रिटेन की सरकार पूरी तरह सतर्क है यही कारण है कि ब्रिटेन की पौने सात करोड़ आबादी में से लगभग आधी आबादी को कोरोना टीके की पहली डोज और पचास लाख लोगों को टीके की दूसरी डोज दी जा चुकी है।

ब्रिटेन की सरकार ने कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए एक और उल्लेखनीय पहल की है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने देश के हर नागरिक को सप्ताह में दो बार कोरोना वायरस की निःशुल्क रैपिड टेस्ट मेंकी सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा की है। इसके लिए नागरिकों को कुछ निश्चित स्थानों पर बिना किसी मूल्य के कोरोना टेस्ट किट प्रदान की जाएगी। सरकार की इस योजना को कोविड स्टेटस सर्टिफिकेशन नाम दिया गया है। इसके पीछे सरकार की मंशा यह है कि संक्रमण का पता ही संबंधित व्यक्ति को आइसोलेशन में भेज दिया जाए ताकि स्वस्थ लोग आर्थिक गतिविधियों से जुड़े रह सकें। इसके अतिरिक्त सरकार ने कोरोना पासपोर्ट की योजना भी शुरू कर ने का फैसला भी किया है। ऐसे पासपोर्ट धारकों को विभिन्न तरह की मनोरंजन, खेल कूद से जुड़ी गतिविधियों में भाग लेने की पात्रता होगी।विश्व के जिन देशों में कोरोना की महामारी ने वहां की आर्थिक गतिविधियों और सामान्य जनजीवन ठप कर दिया है वहां की सरकारों को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है।

कोरोना की दूसरी, तीसरी और चौथी लहर के दुष्प्रभावों को न्यूनतम स्तर पर रोके रखने के लिए विश्व के क ई देशों की सरकारों को एक बार फिर लाक डाउन का सहारा लेना पड रहा है परंतु वहां के लोग अब लाक डाउन के विरोध में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं।कई देशों में सत्तारूढ़ दल के अंदर भी लाक डाउन की उपयोगिता को लेकर मतभेद उभरने लगे हैं। ब्रिक्स के एक सदस्य देश ब्राजील में चार हजार कोरोना पीडितों की मौत के बाद वहां की सरकार पर भी संकट के बादल मंडरा ने लगे हैं। देश में कोरोना के कारण तबाही का मंजर दिखाई दे रहा है उसके लिए प्रधानमंत्री बोलसोनारो की कार्यशैली को जिम्मेदार मानते हुए वहां के रक्षामंत्री और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों‌ ने अपना इस्तीफा दे दिया है।

गौरतलब है कि इसके पहले प्रधानमंत्री के विश्वासपात्र विदेश मंत्री भी अपनी साख बचाने के लिए कुर्सी छोड़ चुके हैं। ब्राजील में प्रधानमंत्री बोलनासारो को कोरोना संकट निपटने से अपनी असफलता को छुपाने के लिए कोई बहाना तरकीब नहीं सूझ रहा है। वे अब तक चार स्वास्थ्य मंत्री बदल चुके हैं ताकि स्वास्थ्य मंत्री के सिर पर अपनी असफलता का ठीकरा फोड़ कर खुद जिम्मेदारी से बच सकें परंतु जब इससे काम नहीं चला तो जन आक्रोश को शांत करने के लिए सेना की ताकत का इस्तेमाल करना चाहते थे परंतु रक्षामंत्री और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों‌ के इस्तीफे ने उन्हें न ई मुसीबत में डाल दिया है। गौरतलब है कि गत वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की पराजय के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि वहां की जनता कोरोना प्रकोप से निपटने में ट्रंप की रीति नीति से बेहद नाराज़ थी। अमेरिका के न ए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोरोना संकट को काबू में करने के लिए जो फैसले किए हैं उनसे अमेरिका के अधिकांश लोग संतुष्ट हैं।

जो बाइडेन ने हाल में ही सभी राज्यों के गवर्नरों से अपने ‌यहां मास्क अनिवार्य करने की अपील की है। अमेरिका में जो बाइडेन प्रशासन ने कोरोना की चौथी लहर की आशंका को देखते हुए सारे ऐहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। कोरोना की एक और लहर के कारण फ्रांस में भी हालात बद से बद्तर ‌होते जा रहे हैं इसलिए जनता के विरोध प्रदर्शनों के बावजूद राष्ट्रपति इमेनुएल ‌मैक्रो ने देश में चार हफ्ते के लाक डाउन की घोषणा कर दी है हालांकि सरकार ने लोगों को आश्वस्त किया है कि लोगों को इस लाक डाउन में दस किलोमीटर के दायरे में आने जाने की छूट दी जाएगी और इस लाक डाउन में लोगों पर पहले जैसी सख्त पाबंदियां नहीं लगाई जाएंगी । गौरतलब है कि कोरोना संकट की भयावहता को देखते हुए इस बार कुछ देशों में ईस्टर पर भी लोगों को पाबंदियों का सामना करना पड़ा।

कोरोना की महामारी पर काबू पाने के लिए जिन देशों की सरकारें सख्त कदम उठाकर स्थिति को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफल रहीं उनमें भारत, इजरायल, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन अग्रणी रहे हैं। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्बन के नेतृत्व में न्यूजीलैंड ने कोरोना के विरुद्ध जो सफल लड़ाई लगी उसके कारण वह देश विश्व में सबसे पहले कोरोना मुक्त हुआ और प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डन को दुनिया भर में वाहवाही मिली। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गतवर्ष देश में कोरोना संक्रमण की शुरुआत होते ही संपूर्ण लाक डाउन का जो साहसिक फैसला किया उसकी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सराहना की थी। फ्रांस, जर्मनी, जापान इटली आदि देशों में कोरोना संकट का जो भयावहता रूप सामने आया उसके लिए उन देशों की जनता अपने यहां की सरकारों को भी जिम्मेदार मानती है यही कारण है कि कोरोना काल में जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल ‌मैक्रो और जापान के प्रधानमंत्री सुगा की लोकप्रियता अपने देश की जनता के बीच काफी घट चुकी है। आज की तारीख में कोई यह ‌दावे के साथ नहीं कह सकता कि कोरोना का संकट दुनिया में कब तक बना रहेगा फिलहाल तो इस संकट ने की देशों की सरकारों को भी संकट में डाल रखा है।

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *