सरोज खान को श्रद्धांजलि: सिनेमाई नृत्य-संगीत में सरोज खान होने का मतलब
दीप्ति अंगरीश
संगीत, वही जो आपकी कानों को अच्छा लगे। नृत्य वही जो आपको थिरकने पर मजबूर कर दें। मोटे तौर पर यही तो सिनेमाई संगीत का करिश्माा है। भारतीय सिनेमा को जैसे जैसे बाजारवाद ने अपने हाथों में लिया, वहां कथानक से अधिक नृत्य और संगीत का बोलबाला होता गया। ऐसे ही दौर में सरोज खान आती हैं और अपने हुनर से भारतीय सिनेमा जगत में अलग मुकाम बना लेती हैं।
कोरियोग्राफर सरोज खान अब हमारे बीच नहीं रही। ‘हवा हवाई’ , ‘एक दो तीन’ , ‘धक-धक करने लगा’ और ‘डोला रे’ जैसे डांस नंबर्स सरोज खान की यादों को जिंदा रखेंगे। उनकी जिंदगी एक बैकग्राउंड डांसर से सफल कोरियोग्राफर बनने का प्रेरणा देता है। सरोज ख़ान ने अपनी करियर में कई शानदारा फिल्में की। बाल कलाकार के रूप में करियर की शुरुआत करने वाली सरोज ख़ान की आखिरी फिल्म कलंक रही। इस फिल्म में उन्होंने अपनी फेवरेट स्टूडेंट माधुरी दीक्षित को कोरियोग्राफ किया।
सरोज खान ने करीब 2000 से ज्यादा गानों को कोरियोग्राफ किया था। हालांकि ज्यादातर लोग उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। सरोज खान का असली नाम निर्मला नागपाल है और उनके पिता का नाम किशनचंद सद्धू सिंह और मां का नाम नोनी सद्धू सिंह है। सरोज खान का परिवार देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर भारत में बस गया था।
सरोज खान ने महज 3 साल की उम्र में बतौर बाल कलाकार के तौर पर हिंदी फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था और उनकी पहली फिल्म ‘नजराना’ थी। इस फिल्म में उन्होंने श्यामा नाम की बच्ची का किरदार निभाया था। 50 के दशक में सरोज खान ने बतौर बैकग्राउंड डांसर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कोरियोग्राफर बी.सोहनलाल के साथ ट्रेनिंग ली।
1974 में रिलीज हुई फिल्म गीता मेरा नाम से सरोज खान एक स्वतंत्र कोरियोग्राफर की तरह जुड़ीं हालांकि उनके काम को काफी समय बाद पहचान मिली। सरोज खान की मुख्य फिल्मों में मिस्टर इंडिया, नगीना, चांदनी, तेजाब, थानेदार और बेटा हैं। उन्हें अपनी एक्टिंग के बजाय पहचान अपने डांस से मिली थी और उन्होंने माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी समेत कई बड़े फिल्म कलाकारों को डांस सिखाया और अपने इशारों पर नचाया था। सरोज खान को अपने दौर की सबसे सफलतम कोरियोग्राफर माना जाता है और उन्होंने कई हिट फिल्मों में कोरियोग्राफी की है।
सरोज खान ने दो दशक तक बॉलीवुड में राज किया और कई हिट फिल्मों में उन्होंने कोरियोग्राफी की।
सरोज खान का फिल्म अभिनेत्री श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित से उनका करीबी रिश्ता था। अपनी अभिनय से जहां इन अभिनेत्रियों ने फिल्मों में जगह बनाई वहीं श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित को डांस के बलबूते फिल्म उद्योग में स्थापित होने में सरोज खान की बड़ी भूमिका रही। माधुरी दीक्षित की जिनती भी सफल रही रहीं उसमें ज्यादातर फिल्मों में सरोज खान ने ही कोरियोग्राफी की थी।
उम्र के हर पड़ाव में सरोज खान का उत्साह और आत्मविश्वास देखते बनता था। सरोज खान ने नृत्य के प्रति अपने आकर्षण की बात बताते हुए कहा था कि मुझे याद नहीं कि कब से मैं डांस की दीवानी हो गई। उन्होंने कहा था कि मां बताती है बचपन में शुरुआती दौर में मैं अपनी ही परछाई दीवारों पर देखकर नाचा करती थी। जिसके चलते मां को लगने लगा था कि शायद मैं पागल हूं, क्योंकि मैं दीवारों की तरफ देखते हुए अजीब से मुंह बना कर अपना भाव प्रकट करती थी।मेरी इन हरकतों को देखकर मां बेहद डर गई थी। उन्होंने मुझे डॉक्टर के पास दिखाने ले गई। तब डॉक्टर ने देखने के बाद कहा कि अगर यह डांस करना चाहती है तो उसे करने दीजिए। चुकी उस समय सिनेमा में ना तो डांस इतना लोकप्रिय था और ना ही डांस के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण दिया जाता था। ऐसे में मां ने हैरान होकर पूछा कि यह डांस क्या होता है? कहां होता है?तब उस डॉक्टर नहीं बताया कि उसके पास फिल्मों के बहुत सारे प्रोड्यूसर आते रहते हैं जिन्हें डांस के लिए बच्चों की जरूरत होती है।मेरा इलाज करने वाले डॉक्टर नहीं मुझे पहली फिल्म नजराना दिलाई जिसमें बलराज साहनी और श्यामा लीड रोल में थे।
एक टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में सरोज खान ने बताया था कि उन्होंने अपनी मर्जी से इस्लाम धर्म अपनाया था। उस वक्त मुझसे कई लोगों ने पूछा कि मुझ पर कोई दबाव तो नहीं है लेकिन ऐसा नहीं था। मुझे इस्लाम धर्म से प्रेरणा मिलती है। सरोज खान से शादी के वक्त सोहनलाल ने अपनी पहली शादी की बात नहीं बताई थी। 1963 में सरोज खान के बेटे राजू खान का जन्म हुआ तब उन्हें सोहनलाल की शादीशुदा जिंदगी के बारे में पता चला। 1965 में सरोज ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया लेकिन 8 महीने बाद ही मौत हो गई। बच्चों के जन्म के बाद सोहनलाल ने उन्हें अपना नाम देने से इनकार कर दिया। इसके बाद दोनों के बीच दूरियां आ गईं। सरोज की एक बेटी कुकु भी हैं। सरोज ने दोनों बच्चों की परवरिश अकेले ही की।