अनलॉकडाउन! क्या हम मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हैं?

शिवानी सिंह ठाकुर

क्या कोरोना महामारी लोगों को मानसिक तौर पर बीमार कर रही है? लॉकडाउन और अनलॉकडॉउन के चक्कर में उलझी हुई जिन्दिगियाँ क्या फिर से पुराने ढर्रे पर लौटेंगीं?

अनलॉकडाउन फेज -1 में काफी चीजें खुल रही हैं। दुकाने, मॉल, धार्मिक स्थल,  इंटर और इंट्रा-स्टेट ट्रांसपोर्ट और कुछ पाबंदियों  के साथ ऑफिस। कोरोना से लड़ाई में सोशल डिस्टेंसिंग एक बड़ा या कहें एकमात्र कारगर उपाय है, लेकिन ये उपाय एक अविश्वास लेकर आया है जिसके कारण अब लोग खुलकर किसी के साथ नहीं मिल रहे हैं। सामजिक अलगाव की भावना लोगों में घर कर गयी है और यही सामाजिक अलगाव लोगों मानसिक तौर पर बीमार बना रही है।

महीनों से घरों में बंद रहने और सामाजिक रूप से एक-दूसरे से कट जाने के बाद  क्या हम अनलॉकडाउन के लिए तैयार है?  कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन में हमारी मानसिक स्वास्थ्य पर इतना बड़ा आघात किया है कि हमारी क्षमता ही नहीं रही कि हम  अनलॉकडाउन का तनाव झेल सकें।

दुनिया का एक तिहाई हिस्सा अभी भी लॉकडाउन में है। कोरोनाकाल में हम अपने ही घरों में कैद हो कर  रह गए हैं। हाँ ये लॉकडाउन बहुत ही जरूरी है क्योंकि यही एकमात्र उपाय है, कोरोनावायरस के  संक्रमण के फैलाव को रोकने का। कोरोना का इसके अलावा ना कोई दवा है, ना कोई वैक्सीन।

लॉकडाउन, इस महामारी से निपटने का एकमात्र उपाय है पर क्या इसका कोई बुरा असर नहीं है? इसने हमें सामाजिक दुनिया से अलग एकांतवास में भेज दिया है। इसका क्या परिणाम होगा?

हम बचपन से किताबों में पढ़ते आए हैं और अपने बड़े बूढ़ों से सुनते आए हैं कि “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है”। सामान्य तौर पर हमें सामाजिक मेल मिलाप को बढ़ावा देने के लिए कहा जाता है पर इस समय हमें इसके विपरीत करने को कहा जा रहा है। हम अपने ही घरों में सेल्फ आइसोलेशन में दुनिया से अलग है। स्थिति और चीजों पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं है। लोग इस बीमारी के डर के साए में जी रहे हैं उनकी दिनचर्या उलट-पुलट हो चुकी है।

कईयों की नौकरियां जा चुकी है, कुछ का भविष्य अनिश्चित है। यह सब बातें बढ़ते हुए तनाव का एक बहुत बड़ा कारण है अभी कदम नहीं उठाया गया तो यह तनाव की दूसरी महामारी ला सकता है। इस तनावपूर्ण समय में कोरोनावायरस से संक्रमित हुए बिना भी हम बीमार हो रहे हैं। यह लॉकडॉउन हमें मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है। लोग तनावग्रस्त हो रहे हैं। घरों में बैठे बड़े बुजुर्ग बीमार हो रहे हैं।  पति और बच्चों के दिन भर घर पर रहने से घर के कामकाज कई गुना बढ़ गए हैं जिससे होममेकर्स महिलाएं शारीरिक और मानसिक तौर पर घिरती जा रही हैं। घर से अलग रहने वाले नौकरी पेशा लोग अब अकेलापन महसूस कर रहे हैं। असंतुलित पारिवारिक समीकरण में रहने वाले लोग अपनी स्थिति से मजबूर अवसाद का शिकार हो रहे हैं।

मोबाइल टीवी में लगे रहने से बच्चों का सही विकास नहीं हो पा रहा है। यह लॉकडाउन हमारे लिए कैसा भविष्य तैयार कर रहा है? इतने लंबे समय के लिए इतने बड़े स्तर पर हमने कभी लॉकडाउन नहीं देखा।

मेडिकल पत्रिका  लेंनसेंट  जर्नल का इस विषय  पर प्रकाशित शोध  शायद भविष्य की झलक दिखला रहा है। रिसर्च से साबित हुआ है कि क्वॉरेंटाइन  बहुत तरह की  ट्रॉमा सम्बन्धित मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा करता हैं। ये हमारे मानसिक रोगी  बनने के कारण को बढ़ाता हैं। इसके  कारण लोगों के अंदर उदासी, अनिद्रा, चिंता की भावना, तनाव, भ्रम, गुस्सा, चिड़चिड़ापन  आदि तरह की समस्याएं पैदा हो रही है। लोगों में बढ़ रहा भावनात्मक खिंचाव उन्हें स्थाई तौर पर अवसाद का शिकार बना रहा है।

हमें यह समझना जरूरी है कि ”सोशल डिस्टेंसिंग” का मतलब सामाजिक और मानसिक डिसएंगेजमेंट नहीं है। यह 2 फुट की शारीरिक दूरी हमारी भावनात्मक दूरी ना बन पाए। यह समय है सामाजिक एकजुटता दिखाने का, इन विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने का रास्ता हमें अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने से ही मिलेगा। हमें तनाव को कम कर अपने मन को मजबूत करना चाहिए।
इसके लिए  जरूरी है कि हम हर तथ्य को तर्क से परखें। किसी भी तरह की जानकारी सही और भरोसेमंद सोर्स से ही लें। गलत और मिसगाइडेड जानकारियां हमें भ्रमित करती हैं। एक दूसरे से जुड़े रहे फोन से या फिर डिजिटली परिवार में  जुड़े रहे हैं। अपनी चिंताओं पर बात करें, लोगों की बात सुनें। भावनाओं को नियंत्रण में रखे और सकारात्मक चीजों पर फोकस करें।

अपनी दिनचर्या बनाएं उसका पालन करने की कोशिश करें। अपना ख्याल रखिए, अच्छी नींद ले, सही और संतुलित आहार ले, खूब सारा पानी पीयें, शरीर को हाइड्रेट रखें, प्राकृतिक हवा और धूप लगाएं, योगाभ्यास करें। अगर आपके यहां का लॉकडाउन नियम इजाजत देता है तो वह पार्क जाए, मार्निंग वाक करें। लक्ष्य बनाए और उन्हें पूरा करने की कोशिश करें। यह  हमे एक उद्देश्य देगा और चीजों के नियंत्रण में होने की भावना पैदा करेगा। दूसरों की मदद करने की कोशिश करें यह उनके जीवन में अंतर तो लाएगा ही साथ ही हमें अच्छा महसूस होगा। एक्टिविटीज करे जैसे किताबें पढ़ना, कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सीखना, कोई लैंग्वेज सीखना, कुछ नया पढना, करना, कुछ सिखना।

अपने आपको जरूरत के कामकाज जैसे कि खाना बनाना ,साफ-सफाई  इत्यादि में व्यस्त रखें। अपने आपके लिए समय निकालें।  तनाव और चिड़चिड़ापन दूर रखने के लिए रिलैक्सेशन टेक्निक्स का इस्तेमाल करें योग के आसनो  का अभ्यास करे। तो आइए मिलकर  अपने समय का उपयोग ऐसी चीजों को करने में करें जो हमें संतुष्टि दे, खुशी दे। हां घर वालों के साथ मिलकर  ट्रेंडिंग जलेबी, गुलाब जामुन, रसगुल्ले तो बनायें ही और सालसा करें, जुंबा करें, गाना गायें, अंतराक्षी खेलें, अपनी उम्मीद को मजबूत करके रखें।
हमारा मानसिक स्वास्थ्य हमारे लोगों से जुड़ाव और मेल मिलाप पर काफी हद तक निर्भर होता है। यह दोनों अभी इस महामारी के समय में खतरे में हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 से  बचाव  के तरीकों में हम  मानसिक स्वास्थ्य  का भी खास ख्याल रखें। हम अपना ध्यान मृत्यु से हटाकर जीवन की ओर करें। हम सब मिलकर आशा की किरण जगाएं। आशावान भविष्य के लिए मिलकर  मेहनत करें अपना ख्याल रखें। इस महामारी के बीतने के बाद हमारे देश को स्वस्थ लोगों की जरूरत है जिससे हम अपने देश को प्रगति के रास्ते पर फिर  ले जा सके।

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