उपराष्ट्रपति ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जीवनशैली और सोच के हर पहलू के पुनर्मूल्यांकन का किया आह्वान

Vice President calls for re-evaluation of every aspect of our lifestyle and thinking in the wake of COVID-19 pandemicचिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली:

  • धर्म-धम्म परंपराओं में कोविड के बाद विश्व के सामने उभरती चुनौतियों के लिए समावेशी जवाब मौजूद हैं: उपराष्ट्रपति
  • धर्म-धम्म ने सदियों से अपनी विभिन्न अभिव्यक्तियों से एक नैतिक उपकरण के रूप में काम किया है
  • उपराष्ट्रपति ने नालंदा विश्वविद्यालय का अपना पुराना गौरव वापस पाने का आह्वान किया
  • वीपी ने दुनिया का सबसे बड़ा आत्मनिर्भर नेट जीरो कैंपस बनाने की मांग के लिए विश्वविद्यालय की सराहना की
  • उपराष्ट्रपति ने नालंदा विश्वविद्यालय में छठे धर्म धम्म अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया

 

दुनिया में शांति और सद्भावना की स्थापना के लिए उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर हमारी जीवन शैली और सोच के हर पहलू का पुनर्मूल्यांकन करने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि हमें लोगों के जीवन में तनाव घटाने और उन्हें सुखी और प्रसन्न बनाने का मार्ग खोजना होगा।

कोविड-19 के बाद विश्व व्यवस्था के निर्माण में धर्म धम्म परंपराओं की भूमिका पर नालंदा में छठे धर्म धम्म अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, उन्होंने कहा कि दूसरी धार्मिक मान्यताओं के साथ हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म की धर्म-धम्म परंपराओं में कोविड के बाद विश्व के सामने उभरती चुनौतियों के लिए समग्र और समावेशी जवाब मौजूद हैं। साथ ही उन्होंने यह भी उन्होंने विश्वास जताया कि हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को समझ कर और अपने जीवन में उतार कर कोई भी व्यक्ति अपने अंतर्मन और बाह्य जगत में शांति को प्राप्त कर सकता है।

श्री नायडू ने कहा कि सम्मेलन इस बात का परीक्षण करने का अवसर प्रदान करता है कि हमारे आसपास की दुनिया में सामने आ रही चुनौतियों को हल करने के लिए धर्म और धम्म की शिक्षाओं और प्रथाओं को किस हद तक लागू किया जा सकता है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, सहयोग, आपसी देखभाल और हिस्सेदारी, अहिंसा, मित्रता, करुणा, शांति, सच्चाई, ईमानदारी, निस्वार्थता और त्याग के सार्वभौमिक सिद्धांत धार्मिक नैतिक उपदेशों का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसे हमारे ऋषियों, मुनियों, भिक्षुओं, संन्यासियों, संतों, मठाधीशों द्वारा बार-बार समझाया गया है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि धर्म-धम्म की धारणा सत्य और अहिंसा, शांति और सद्भाव, मानवता और आध्यात्मिक संबंध और सार्वभौमिक बंधुत्व व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सहित अपनी कई अभिव्यक्तियों में एक नैतिक स्रोत के रूप में कार्य करती है जिसने सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों का इस दिशा में मार्गदर्शन किया है। उन्होंने आगे कहा कि भगवान बुद्ध ने हमें सरल तरीके से समझाया है “कि धर्म को पालन करो, नैतिक मूल्यों का सम्मान करो, अपना अहं त्यागो और सभी से अच्छी बातें सीखो।”

श्री नायडू ने आशा व्यक्त की कि यह सम्मेलन कोविड के बाद की दुनिया को मानवता के लिए एक बेहतर जगह बनाने के लिए नए सबक और सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करेगा- एक ऐसी दुनिया जहां प्रतिस्पर्धा करुणा को रास्ता देती है, धन स्वास्थ्य के लिए रास्ता बनाता है, उपभोक्तावाद आध्यात्मिकता और सर्वोच्चता का मार्ग प्रशस्त करता है और प्रभुत्व की भावना शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की राह तैयार करती है।

ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय की अकादमिक भावना को सुदृढ़ करने और नए अंदाज में प्रयास के लिए कुलपति प्रो. सुनैना सिंह की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय के उसी गौरव को फिर से हासिल करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।

उन्होंने कहा, नालंदा विश्वविद्यालय को एक बार फिर ज्ञान की शक्ति के माध्यम से भारत को बाहरी दुनिया से जोड़ने के लिए ‘सेतु और नींव’ के रूप में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘शिक्षा के इस महान केंद्र को रचनात्मक सहयोग की भावना से प्रत्येक छात्र के लिए एक परिवर्तनकारी शैक्षणिक अनुभव प्रदान करना चाहिए।’

जलवायु परिवर्तन के भयंकर परिणामों के बारे में चेताते हुए उपराष्ट्रपति जी ने प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीने पर जोर दिया। अपनी जड़ों की ओर लौटने पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने पूर्वजों की उस पारंपरिक जीवन शैली को पुन अपनाना चाहिए जिसमें वे अपने पर्यावरण और प्रकृति के साथ मैत्रीवत जीवन जीते थे। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने दुनिया के सबसे बड़े आत्मनिर्भर नेट-जीरो कैंपस बनाने की दिशा में प्रयास करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय की सराहना की।

श्री फागू चौहान, बिहार के राज्यपाल, मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार, श्रीमती पवित्रा वन्नियाराची, परिवहन मंत्री, श्रीलंका सरकार, प्रो. सुनैना सिंह, कुलपति, नालंदा विश्वविद्यालय, श्रीमती ललिता कुमार मंगलम, निदेशक, इंडिया फाउंडेशन और श्री ध्रुव कटोच, निदेशक, इंडिया फाउंडेशन के अलावा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

 

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