1000 वर्ष पुरानी हस्तनिर्मित कागज उद्योग ‘मोनपा’ को खादी ग्रामोद्योग ने किया पुनर्जीवित

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के समर्पित प्रयासों के फलस्वरूप 1000 वर्ष पुरानी परंपरागत कला- अरुणाचल प्रदेश का मोनपा हस्तनिर्मित कागज उद्योग- जिसे विलुप्त होने के लिए छोड़ दिया गया था, एक बार फिर जिंदा हो गया है।

मोनपा हस्तनिर्मित कागज निर्माण कला की शुरूआत 1000 वर्ष पूर्व हुई थी औरधीरे-धीरे यह कला अरुणाचल प्रदेश के तवांग में स्थानीय रीति-रिवाजों और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गई। एक समय में इस हस्तनिर्मित कागज का उत्पादन तवांग के प्रत्येक घर में होता था और यह स्थानीय लोगों के लिए उनकी आजीविका का एक प्रमुख स्रोत बन गया था। हालांकि, पिछले 100 वर्षों से यह हस्तनिर्मित कागज उद्योग लगभग गायब हो चुका था; जिसने केवीआईसी को इस प्राचीन कला का पुनरुद्धार करने की योजना बनाने के लिए प्रेरित किया।

केवीआईसी द्वारा शुक्रवार को तवांग में मोनपा हस्तनिर्मित कागज निर्माण ईकाई की शुरूआत की गई, जिसका उद्देश्य न केवल इस कला को पुनर्जीवित करना है बल्कि स्थानीय युवाओं को इस कला के माध्यम से पेशेवर रूप से जोड़ना और उनको धन अर्जित करवाना भी है। इस इकाई का उद्घाटन केवीआईसी के अध्यक्ष, श्री विनय कुमार सक्सेना द्वारा स्थानीय लोगों और अधिकारियों की उपस्थिति में किया गया, जो कि स्थानीय लोगों के लिए एक ऐतिहासिक घटना है।

उत्कृष्ट बनावट वाला यह हस्तनिर्मित कागज, तवांग की स्थानीय जनजातियों के जीवंत संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जिसे स्थानीय भाषा में मोन शुगु कहा जाता है। इस कागज का एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है क्योंकि यह बौद्ध मठों में धर्मग्रंथों और स्तुति गान लिखने के लिए उपयोग किया जाने वाला कागज है। मोनपा हस्तनिर्मित कागज, शुगु शेंग नामक स्थानीय पेड़ की छाल से बनाया जाएगा, जिसकाअपना औषधीय मूल्य भी है। इसलिए इस कागज के लिए कच्चे माल की उपलब्धता की समस्या उत्पन्न नहीं होगी।

पूर्व में,मोनपा का उत्पादन इतने बड़े स्तर पर होता था कि इन कागजों को तिब्बत, भूटान, थाईलैंड और जापान जैसे देशों में बेचा जाता था क्योंकि उस समय इन देशों के पासकागज उत्पादन का कोई उद्योग मौजूद नहीं था।हालांकि, धीरे-धीरे स्थानीय उद्योग में गिरावट दर्ज होनेलगी और स्वदेशी हस्तनिर्मित कागज के स्थान पर निम्नस्तरीय चीनी कागज के अपना कब्जा जमा लिया।

इस हस्तनिर्मित कागज उद्योग का पुनरुद्धार करने का एक प्रयास 1994 में किया गया था, लेकिन वह असफल रहा क्योंकि तवांग की विभिन्न भौगोलिक चुनौतियों के कारण यह एक बहुत ही कठिन कार्य था। हालांकि, केवीआईसी के उच्च प्रबंधन के मजबूत इरादे के कारण, कई चुनौतियां सामने आने के बावजूद इस यूनिट की स्थापना सफलतापूर्वक की गई। केवीआईसी अध्यक्ष के निर्देश पर, तवांग में कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट (केएनएचपीआई),जयपुर के वैज्ञानिकों और अधिकारियों की एक टीम को इस यूनिट की स्थापना करने और स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए तैनात किया गया था। छह महीने से ज्यादा के कठोर परिश्रम का फल प्राप्त हुआ और तवांग में इसयूनिट की शुरूआत हुई।

शुरुआत में, इस कागज यूनिट में 9 कारीगरों का लगाया गया है, जो प्रतिदिन मोनपा हस्तनिर्मित कागज के 500 से 600 शीट्स का उत्पादन कर सकते हैं। इन कारीगरों को प्रतिदिन 400 रुपये की मजदूरी प्राप्त होगी। शुरुआत में, स्थानीय गांवों की 12 महिलाओं और 2 पुरुषों को मोनपा हस्तनिर्मित कागज बनाने का प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। केएनएचपीआई, केवीआईसी की एक इकाई है।

केवीआईसी अधिकारियों के लिए सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण काम तवांग की दुर्गम पहाड़ी इलाकों और खराब मौसम वाली स्थिति में मशीनों को वहां तक लेकर जाना था। अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा इस परियोजना को पूरा समर्थन प्रदान किया गया और यूनिट स्थापित करने के लिए मामूली किराए पर एक इमारत प्रदान की गई।

केवीआईसी के अध्यक्ष ने कहा कि मोनपा हस्तनिर्मित कागज उद्योग को पुनर्जीवित करना और इसके वाणिज्यिक उत्पादन में वृद्धि करना, केवीआईसी का प्रमुख लक्ष्य था। सक्सेना ने कहा कि, “इसकी विशिष्टता के कारण,इस हस्तनिर्मित कागज का उच्च वाणिज्यिक मूल्य है, जिसका उपयोग अरुणाचल प्रदेश में स्थानीय रोजगार उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। मोनपा हस्तनिर्मित कागज के उत्पादन को बढ़ावा देकर इसे फिर से दूसरे देशों में निर्यात किया जा सकता है और पिछले कुछ दशकों से चीन द्वारा कब्जा की गई जगह को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। यह महान वैश्विक क्षमता वाला एक स्थानीय उत्पाद है, जो कि प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए “स्थानीय से वैश्विक” मंत्र के साथ जुड़ा हुआ है।

सक्सेना ने इस परियोजना के लिए केवीआईसी-केएनएचपीआई अधिकारियों द्वारा की गई कड़ी मेहनत और अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारादिए गए समर्थन की सराहना की और कहा कि,”इस दुर्गम इलाके में गुवाहाटी से तवांग तक 15 घंटे की थकान भरी सड़क यात्रा, इस कागजइकाई के फिर से जिंदा होने का साक्षी बनाने के साथ ही गायब हो गई। वास्तव में, इस स्थानीय कला को पुनर्जीवित करने वाली इकाई का उद्घाटन करना सौभाग्य की बात है।”

हस्तनिर्मित कागज के अलावा, तवांग को दो अन्य स्थानीय कलाओं के लिए भी जाना जाता है- हस्तनिर्मित मिट्टी के बर्तन और हस्तनिर्मित फर्नीचर – जो समय के साथ विलुप्त होते जा रहे हैं। केवीआईसी अध्यक्ष ने घोषणा किया कि छह महीने के अंदर इन दोनों स्थानीय कलाओं के पुनरुद्धार के लिए योजनाओं की शुरूआत की जाएंगी। सक्सेना ने कहा कि, “कुम्हार सशक्तिकरण योजना के अंतर्गत प्राथमिकता के आधार पर हस्तनिर्मित मिट्टी के बर्तनों का पुनरुद्धार बहुत जल्द ही शुरू किया जाएगा।”

मोनपा हस्तनिर्मित कागज यूनिट, स्थानीय युवाओं के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी कार्य करेगी। केवीआईसी केवल इसको विपणन सहायता प्रदान करेगा बल्कि स्थानीय रूप से निर्मित हस्तनिर्मित कागज के लिए बाजार की भी तलाश करेगा। केवीआईसी की योजना देश के विभिन्न इलाकों में इस प्रकार की अन्य इकाइयों की स्थापना करने की है। सक्सेना ने कहा कि केवीआईसी द्वारा तवांग में अभिनव प्लास्टिक मिश्रित हस्तनिर्मित कागज का उत्पादन भी शुरू किया जाएगा, जो कि इस क्षेत्र में प्लास्टिक कचरे में कमी लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

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