क्या 26 जनवरी को लाल किला पर जो हुआ, वह सियासी चाल थी
निशिकांत ठाकुर
26 जनवरी को जो उससे मन्न इतना खिन्न हुआ कि चार दिन तक कलम थामने का मन नहीं हुआ। आज हम 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उनको नमन करते हुए सत्य की विवेचना कर रहे हैं। उस आंदोलन की बात कर रहे हैं, जिसमें पहले किसानों को अन्नदाता कहा गया और 26 जनवरी, 2021 के बाद कई लोग उन्हें अराजक कहने लगे। हमें और पूरे देशवासियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी आंदोलन के रास्ते महात्मा गांधी ने देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त कराया था।
भारतीय उपमहाद्वीप 130 करोड़ की अवादी वाला देश, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाला देश भारत दिल्ली से चलता है। क्योंकि उसके सबसे शक्तिशाली व्यक्ति राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री तथा न्यायपालिका का सबसे बड़ा महकमा सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में ही है। फिर 26 जनवरी का ऐतिहासिक दिन जिस दिन सभी उस राष्ट्रीय महापर्व गणतंत्र दिवस समारोह का आनंद लेते हैं, अपने प्रगतिशील राष्ट्र पर गर्व करते हैं । उस दिन उसी दिल्ली में इतना बड़ा अभिशप्त कांड हो जाए की भारतीय गौरव के, मान सम्मान के प्रतीक लाल किले की प्राचीर पर एक अदना सा दो टके का गुंडा अथवा आतंकवादी चढ़कर अपना झंडा फहरा दे और पुलिस मूक दर्शक बनकर उस तथाकथित गुंडा या आतंकी को गिरफ्तार भी ना कर सके – इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारे देश लिए भारतीय गरिमा और मर्यादा के लिए क्या हो सकता है ?
कोई हमारे देश की गरिमा को शर्मसार करे , सच में यह हर राष्ट्रभक्त के लिए डूब मारने की स्थिति है । यह कृत्य शांतिपूर्ण ढंग से किसान आंदोलन को तहस नहस करने का एक प्रायोजित योजना है जिसकी बड़ी गहन जांच होनी चाहिए तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा अन्यथा हम उफनती नदी में लाठी मारकर उसे अलग अलग करना चाहेंगे , जो कभी हो नहीं सकेगा । सांप गुजर जाने के बाद इसकी विवेचना करने का प्रयास अपने अपने तरीके से अब सब करेंगे हम भी करेंगे और आप सब भी कर चुके होंगे ।
लेकिन, सच तो तभी सामने आएगा जब हमारी कोई निष्पक्ष जांच एजेंसी इसकी जांच करें और उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करे की इस कारण से ऐसे भगदड़ मची , इतना बड़ा बवाल हुआ और दिल्ली ही नहीं, देश की छवि विदेशों में भी धूमिल हुई। दो महीने से किसान धरने पर बैठे थे कोई बड़ी घटना क्या कोई छिटपुट घटना भी नहीं हुईं, लेकिन अचानक 25 जनवरी की रात में ही क्या हों गया कैसी योजना बन गई की सुबह होते ही अनियंत्रित भीड़ ने बेरीकेट तोड़कर शहर में घुस गए और दिल्ली के घुमावदर रास्ते को पार करते हुए सभी बेरीकेट को तोड़ते हुए , सभी पुलिस प्रशासन को छकाते हुए वह योजनाबद्ध, अनियंत्रित भीड़ अपने निश्चित ठिकाने लालकिला पर पहुंच गई । ऐसा कैसे हो सकता है ?
इसका अर्थ तो यही होता है कि जो ठान ले की दिल्ली को तबाह करना है , उस पर कब्जा करना है वह बहुत आसानी से ऐसा कर सकता है । अब तो उसके कई उदाहरण हो गए यह तो लाल किला पर चढ़कर झंडा फहराने की बात है इसके पहले तो आतंकवादियों ने संसद पर हमला करके लगभग भारतीय आत्मा को बंधक बना लिया । जिसकी सुरक्षा करने में हमारे वीर जवानों ने अपने जान पर खेलकर शहीद होकर सांसद भवन परिसर को खून से लाल करके दिया था । अब सवाल उठता है कि क्या हम बार बार हो रही इस प्रकार की घटनाओं की जिम्मेदारी दूसरों पर कब तक थोपते रहेंगे । क्या हमारा सुरक्षा घेरा आजादी के बाद से अब तक इतना भी मजबूत नहीं हुआ है कि हम अपनी अंतरराष्ट्रीय शहर दिल्ली को भी सुरक्षित रख सकें फिर पूरा राष्ट्र कैसे सुरक्षित हाथों में होने का हम दावा कर सकते हैं।
किसी वर्ष समय पर वर्षा न हो तो किसान गुहार लगाने लगते है , कभी अधिक बारिश हो जाए तो उनका दम निकलने लगता है , कभी फसल को पाला मार दे तो ईश्वर को कोसने लगते हैं । किसान तो ईश्वर से डरते है , केस मुकदमा से डरते है वह तो रात दिन फसल के कुशलतापूर्वक तैयार होने की कामना करते हैं । फिर जब कोई मार्ग नहीं दिखाई देता फिर आत्महत्या का ही रास्ता अपनाते हैं । कुल मिलाकर वह तो सबसे डरते हैं फिर इतनी बड़ी हिम्मत उनमें कहां से आ सकती है कि वह लाल किले की प्राचीर पर चढ़कर झंडा फहरा दे । लेकिन, हां यदि किसी किसान ने भी ऐसा किया है तो उसने किसान के नाम को बदनाम किया है और भारत को शर्मसार किया है तो उस पर भी वही कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए जो आतंकवादियो के लिए की जाती है । फिर उसी बात को दोहराना चाहता हूं कि जिसने भी हमारे राष्ट्रीय पर्व का अपमान किया उसे शर्मसार किया उसकी योजना सफल योजना थी जिसे अंजाम देने का मौका उसे उसी दिन मिला । अहिंसक आंदोलन तो हम भारतीयों के रक्त में हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी घोल गए हैं जिन्होंने भारत ही नहीं साउथ अफ्रीका में भी उसके माध्यम से जीत हासिल करके भारत की गरिमा को विश्व में महिमामंडित किया और जब भारत वापस आकर ताकतवर अंग्रेजों को घुटनों के बल लाकर भारत छोड़ने पर मजबूर किया । वैसे अब उनके हत्यारे की ही नहीं बल्कि राष्ट्रपिता की भी आज के कुछ तथाकथित देशभक्त उनकी आलोचना सार्वजनिक मंच से करते हैं और हमारी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि हम उसे भी लोकसभा विधानसभा में चुनकर भेज देते हैं। ऐसे लोग हमे देश के सर्वोच्च गरिमामय पंचायत में बैठकर उपदेश देते हैं ।
जो भी हो यदि हम इतिहास को भूलकर भी चलते हैं तो भी इस 26 जनवरी को दिल्ली में हुई घटना की आलोचना होनी चाहिए और इसकी उच्च स्तर पर जांच की जानी चाहिए जिसमे सब कुछ साफ साफ सबको दिखाई दे । जो अपराधी हो और जो अपराध के सूत्रधार हो उन सब पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही हो ताकि भविष्य में कोई दुबारा दिल्ली जैसी अंतर्राष्ट्रीय और ऐतिहासिक शहर में आतंक मचाने का प्रयास करने की छोड़िए सोचने की भी जुर्रत न करे । अब जो पुलिस की कार्यवाहीं की जा रही है वह डरावनी है । आंदोलन को गन्दा करने वाले या शर्मसार करने वाले तो मुट्ठी भर लोग ही होंगे उसके कारण शांतिपूर्ण ढंग से जो किसान अपना विरोध प्रकट करने के लिए धरने पर बैठें है उन पर यदि कोई अत्याचार करता है तो वह कानूनी रूप से और मानवीय दृष्टिकोण से भी सही नहीं है। हमारे सरकार के पास वे सारे इंतजाम है कि यदि कोई देश के लिए बुरा करे अथवा सोचे भी तो उसे भी जेल के सीकचों के पीछे डालने की अपार शक्ति हमारे सरकार के पास है फिर पानी में रहकर मगर से बैर कोई कैसे मोल ले सकता है । निश्चित रूप से हमें यह मानकर ही चलना होगा कि जिसने भी उत्पात मचाया है उसके पीछे किसी शक्तिशाली विदेशी ताकत है । अब उस पर कैसे काबू किया जाय यह यह सोचना तो सरकारी महकमे का , पुलिस प्रशासन का कार्य है । देखना यह होगा कि सरकार इस पर किस तरह की जांच करवाती हैं और दोषी के पकड़ में आ जाने के बाद असली रहस्य से पर्दा उठेगा की भारत को अशांत करने का ठेका किस दुश्मनी का बदला लेने के लिए किया है क्योंकि विश्व के कई देश हमारे भारत की प्रगतिशीलता से व्यग्र है चिंतित हैं और डरे हुए भी है जिसे हमने कई बार देखा भी है और जिससे अब पूरा भारतवर्ष उससे अजीज आ चुका है और उस देश से शांति पाना चाहता है ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)