प्रश्नकाल क्या है, क्यों भड़का प्रश्नकाल ना होने पर विपक्ष?

शिवानी रज़वारिया

कोरोना महामारी के महासंकट के बीच संसद में मानसून सत्र की शुरुआत 14 सितंबर से होनी है जिसकी जोरों शोरों से तैयारियां चल रही है। इसी के साथ इस सत्र में प्रश्नकाल शामिल नहीं किया गया है जिस पर विपक्ष आग बबूला हो रहा है। प्रश्नकाल का महत्व विपक्ष के लिए क्या है यह तो आपको बताएंगे, लेकिन उससे पहले यह जानना जरूरी है कि प्रश्नकाल होता क्या है?

प्रश्नकाल क्या है?

संसद में 3 सत्र के माध्यम से कार्यवाही की जाती है…

बजट सत्र (फरवरी से मई )

मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर )

शीतकालीन सत्र अधिवेशन (नवंबर से दिसंबर)

संसद के दोनों सदनों में यानी लोकसभा और राज्यसभा की प्रत्येक बैठक के प्रारंभ में 1 घंटे का समय प्रश्न किए जाने के लिए रखा जाता है जिन प्रश्नों के उत्तर सत्ताधारी पार्टी को देने होते हैं। इस 1 घंटे में पूछे जाने वाले प्रश्नों को प्रश्नकाल अवधि में पूछा जाता है यानि इस 1 घंटे को “प्रश्नकाल” कहा जाता है। इसके बाद का समय शून्यकाल कहा जाता है जिसमें उन महत्वपूर्ण और गंभीर विषयों को उठाया जाता है, जो बेहद जरूरी होते हैं जिन पर तुरंत कार्यवाही की आवश्यकता महसूस की जाती है। शून्यकाल को जीरो आवर या आवर भी कहा जाता रहा है।

प्रश्नकाल प्रश्न पूछने का समय और प्रक्रिया।।

संसद के दोनों सदनों में बैठक से 1 घंटा पूर्व प्रश्नकाल सुबह 11 से 12 बजे तक होता है। प्रश्नकाल में प्रश्न पूछने के लिए सदस्य को कम से कम 10 दिन पहले लिखित रूप से प्रश्नों को सूचित करवाना होता है सूचित किए गए प्रश्न ही प्रश्नकाल में पूछे जाते हैं जिनका जवाब संबंधित विभाग का मंत्री या जिम्मेदार अधिकारी देता है।

प्रश्नकाल से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें…

नियमानुसार 11:00 से 12:00 तक प्रश्नकाल के इस 1 घंटे में 20 प्रश्न पूछे जाने चाहिए। पर ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि एक प्रश्न पर लगभग 5 से 10 मिनट का वक्त लग जाता है जिस कारण मौखिक रूप से पांच से सात प्रश्नों पर ही चर्चा हो पाती है। तारांकित व अतारांकित दो श्रेणियों में प्रश्नों को रखा जाता है।

विशेष अविलंबनीय मामलों में प्रश्न की सूचना 10 दिन पहले देना अनिवार्य नहीं है यानी नियमानुसार सामान्य प्रश्न पूछने के लिए लिखित रूप में 10 दिन पहले सूचित किया जाता है लेकिन ऐसे विशेष मामलों में कुछ दिन पहले भी सूचित किया जा सकता है पर इस अल्प सूचना प्रश्न के लिए पर्याप्त कारण भी बताना होता है अल्पसूचना प्रश्न का जवाब भी मौखिक में दिया जाता हैं।

सभापति/अध्यक्ष अल्प प्रश्नों के उत्तर देने के लिए संबंधित विभाग के मंत्री से पूछता है यदि वह अभिलंब मामलों में जवाब देने के लिए तैयार हैं तो तिथि निर्धारित की जाती है। अल्पसूचना प्रश्न का उत्तर जस्ट प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद दिया जाता है।

सदनों में प्रश्नों के उत्तर देने के लिए भारत सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को पांच समूहों में बांट दिया गया है। ए, बी, सी, डी, ई। इन समूहों के मंत्रालयों के लिए क्रमश: सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को प्रश्न पूछने का दिन नियत होता है। अध्यक्ष/सभापति के निर्देश पर प्रश्नों को कम से कम 5 दिन पहले मंत्रालयों को भेज दिया जाता है, ताकि वे उनके उत्तर तैयार कर सकें।

प्रश्नकाल में सरकार और विपक्ष का तालमेल…

सामान्य रूप से देखें प्रश्नकाल पूर्ण रूप से सत्ता में बैठी सरकार से जवाबदेही के लिए बनाया गया है सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों,उसकी नीतियों, योजनाओं और विभिन्न विभागों में आ रही समस्याएं और गंभीर मामलों पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया रहेगी या की गई है उस पर विपक्ष सहमति और असहमति में अपने सवाल करता है। प्रश्नकाल में सरकार द्वारा आरंभ की गई नई नीतियों पर क्रॉस फायरिंग की जाती है यानी विपक्ष उन खामियों को केंद्रित करता है और उन पर जवाब मांगता है। ऐसे में संसद का माहौल बहुत गर्म रहता है सवालों की बौछार और उनके जवाब का तीखा विवाद देखने को मिलता है। विपक्ष को इन संसदीय बैठकों का विशेष रुप से इंतजार रहता है ताकि वह अपने सवाल सत्ता पर दाग सकें और सत्ताधारी पार्टी की खामियों को उजागर कर सकें।

इस साल कोरोना संकट के बीच मानसून सत्र 14 सितंबर से शुरू होने वाला है जिसमें प्रश्नकाल को शामिल नहीं किया जा रहा है जिससे विपक्ष काफी नाराज दिखाई दे रहा है और विपक्ष की तरफ से प्रश्नकाल को संसदीय बैठक में शामिल न किए जाने पर तभी प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस मसले पर ट्वीट किया कि मैंने चार महीने पहले कहा था कि मजबूत नेता महामारी को लोकतंत्र को खत्म करने के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। संसद सत्र का नोटिफिकेशन ये बता रहा है कि इस बार प्रश्नकाल नहीं होगा। हमें सुरक्षित रखने के नाम पर ये कितना सही है?

कांग्रेस नेता ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सरकार से सवाल पूछना एक ऑक्सीजन की तरह है। लेकिन ये सरकार संसद को एक नोटिस बोर्ड की तरह बनाना चाहती है और अपने बहुमत को रबर स्टांप के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। जिस एक तरीके से अकाउंटबिलिटी तय हो रही थी, उसे भी किनारे किया जा रहा है।

कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने भी लिखा कि ऐसा कैसे हो सकता है? स्पीकर से अपील है कि वो इस फैसले को दोबारा देखें। प्रश्नकाल संसद की सबसे बड़ी ताकत है।

शशि थरूर के अलावा टीएमसी के राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने भी सरकार पर निशाना साधा।।कि हर सांसद का फर्ज है कि वो इसका विरोध करे, क्योंकि यही मंच है कि आप सरकार से सवाल पूछ सकें। अगर ऐसा हो रहा है तो क्या यही नया नॉर्मल है जो इतिहास में पहली बार हो रहा है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ये एक सामान्य सत्र है, कोई विशेष सत्र नहीं है जो इस तरह के फैसले हो रहे हैं। इसका मतलब ये हुआ कि आपके पास किसी सवाल का जवाब नहीं है। दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि हम आम लोगों के लिए सवाल पूछ रहे हैं, ये लोकतंत्र के लिए खतरा है।

कोरोना के बीच मानसून सत्र में ते बदलाव किए जा रहे हैं प्रश्नकाल को हटाया गया है और शून्य काल की अवधि को कम किया गया ऐसे में प्रश्नकाल मानसून सत्र में ना शामिल करने के पीछे सरकार का क्या कारण है या यूं कहें क्या लाभ है और विपक्ष का क्या नुकसान? यह एक बहस का विषय है जिस पर आगे भी प्रतिक्रिया आती रहेंगी।

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