‘लाला’ रामदेव ने क्यों लिया यू टर्न?

राजेंद्र सजवान
भले ही बाबा राम देव कल तक क्रिकेट को बुरा भला कहते थे, आईपीएल को जुए और सट्टेबाज़ी का अड्डा बताते थे और चीयर गर्ल्स की उपस्थिति को लेकर भी नाराज़गी व्यक्त करते रहे, लेकिन आईपीएल के टाइटल स्पांसर के लिए पतंजलि के दावे के बाद यह साफ हो गया है कि बाबा राम देव अब पूरी तरह लाला रामदेव बन गए हैं। लेकिन योग गुरु का यू टर्न भी  देशवासियों को भा रहा है और सभी चाहते हैं कि पतंजलि ही आईपीएल 2020 की टाइटल स्पांसर बने।

चीनी मोबाइल कंपनी वीवो ने भारतमें बढ़ते चीन विरोधी माहौल को देखते हुए आईपीएल से हटने का फ़ैसला किया, जिसे  आयोजकों के लिए करारा झटका माना जा रहा था। शुरू शुरू में तो आयोजक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और तमाम टीमों को कुछ भी समझ नहीं आया। एक तो महामारी के चलते आयोजन पर सवालिया निशान लग चुका था ऊपर से प्रमुख स्पांसर का  हटना ख़ासा कष्टदाई था। लेकिन पतंजलि आयुर्वेद यदि सचमुच आईपीएल की बोली में शामिल होना चाहती है तो यह अपने आप में एक साहसिक प्रयास कहा जाएगा। कारण, बाबा रामदेव और उनके उत्पाद स्वदेशी खेलो को ही प्रोमोट करते रहे हैं। बाबा ने अनेक बार सार्वजनिक तौर पर माना कि उनका मकसद स्वदेशी को बढ़ावा देना है क्योंकि वह देश को आत्मनिर्भर देखना चाहते हैं। जब कभी खेलों की  बात चली तो उन्होने योग के साथ साथ, कुश्ती, खो खो, कबड्डी, मलखंब आदि विशुद्ध भारतीय खेलों को अपनाने का नारा बुलंद किया।

पतंजलि के विज्ञापनों  में क्रिकेट खिलाड़ी भी शायद ही कभी नज़र आए हों। उल्टे उन्होने क्रिकेट को कुछ एक अवसरों पर गोरों का खेल बताया और आईपीएल को जाम कर कोसा| अब वही रामदेव अपनी कंपनी को लेकर बीसीसीआई की चौखट पर खड़े हैं और यदि पतंजलि को आईपीएल से जुड़ना है तो कुछ ऐसी शर्तों को भी मानना पड़ेगा जिनका अब तक विरोध करते आए हैं। उनका तर्क है कि पतंजलि को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाना चाहते हैं। लेकिन जानकारों की माने  तो पतंजलि में मल्टीनेशनल ब्रांड के रूप में स्टार पावर की कमी है। पतंजलि के अलावा एमेज़ॉन, ड्रीम इलेवन और बायजूज आईपीएल 2020 की टाइटल स्पांसरशिप की दौड़ में शामिल हैं। अर्थात मुकाबला कांटे का है ।

आम भारतीय का मानना है कि रामदेव की कंपनी यदि दौड़ में अव्वल आती है तो पूरा देश उनका स्वागत करेगा। क्रिकेट को गरियाने वाले भी रामदेव के अनुलोम विलोम को लेकर हैरान ज़रूर हैं लेकिन साथ ही यह भी कहते मिलेंगे कि यदि बाबा जी क्रिकेट से जुड़ कर देश को आत्मनिर्भर बनाने की सोच रखते हैं तो कोई बुराई नहीं है। उन्हें बाबा का लाला रूप भी पसंद आ रहा है। वैसे भी रामदेव भले ही योग गुरु हैं पर पिछले कुछ सालों में वह एक बड़े व्यापारी के रूप में उभरे हैं और तरक्की-प्रगति का कोई मौका नहीं चूकना चाहते। फिर चाहे कुछ परंपराओं को ही क्यों न तोड़ना पड़ जाए। वीवो के विकल्प के रूप में उनकी भारतीय कंपनी देश की आत्मनिर्भरता की परिचायक बनेगी और भारत का सम्मान बढ़ेगा।  वैसे भी क्रिकेट भारत में सबसे लोकप्रिय खेल है और आईपीएल में खेलना दुनिया के सभी खिलाड़ियों की पहली पसंद बन चुका है। तो फिर बाबा जी क्यों ना खेलें! योग में बड़ी पकड़ के बाद यदि वह  भारतीय बाज़ार को भी जकड़ना चाहते हैं तो क्या बुराई है! आख़िर सरकार भी तो यही चाहती है। चीन को तो करारा जवाब मिलेगा ही बाबा की भी वाह  वाह होगी।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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