ओलंपिक नहीं होने दूंगा …?

राजेंद्र सजवान

जापान के जानेमाने एक्टर और राजनीति में बड़ी पहचान रखने वाले टारो यामामोटो यदि जापान की राजधानी टोक्यो के  गवर्नर बन जाते हैं तो ओलंपिक खेलों का आयोजन एक बार फिर से ख़तरे में पड़ सकता है। टोक्यो ओलंपिक का आयोजन जुलाई-अगस्त 2020 में किया जाना था लेकिन कोविड 19 के चलते खेलों को साल भर के लिए स्थगित कर दिया गया। नई तिथि के अनुसार अब खेलों का आयोजन 23जुलाई, 2021 से तय है । लेकिन  आगामी पाँच जुलाइ को  टोक्यो में होने वाले चुनाव के नतीजों पर ओलंपिक खेलों की मेजबानी टिकी है।

यदि यामामोटो जीत गए  और खेल सचमुच रद्द घोषित कर दिए जाते हैं तो तमाम देशों के हज़ारों खिलाड़ियों का सपना बिखर सकता है। ख़ासकर, रियो ओलंपिक के बाद जो खिलाड़ी टोक्यों में पदक जीतने और ओलंपियन कहलाने का सपना संजोए थे उनका सपना चूर चूर हो जाएगा। जहाँ तक भारतीय खिलाड़ियों की बात है तो कई पुरुष और महिला हॉकी खिलाड़ी चार साल बाद शायद ही मैदान पर नज़र आएँ। यही हाल कुछ मुक्केबाज़ों, निशानेबाजों, भरोतोलको, पहलवानों, टेनिस, बैडमिंटन और टेबल टेनिस खिलाड़ियों का भी हो सकता है। कई एथलीट, निशानेबाज़, तीरन्दाज़, जिमनास्ट और अन्य खिलाड़ी फिर कभी शायद ही ओलंपिक में नज़र आएँ। मज़बूर होकर उन्हें बढ़ती उम्र के सामने घुटने टेकने पड़ सकते हैं।

It will take 10 years to make a Grand Slam champion, says India's great tennis player Leander Paes

हालाँकि अभी कई टाप भारतीय खिलाड़ियों को ओलंपिक टिकट पाना है लेकिन लियन्डर पेस, मैरीकाम, सायना नेहवाल साक्षी मलिक और पीवी सिंधु जैसे ओलंपिक पदक विजेताओं के पास खेल में बने रहने का समय कम ही बच पाएगा। मैरीकाम, सुशील कुमार और लियान्डर पेस टोक्यो के बाद शायद ही ओलंपिक की दावेदारी पेश करें।

दरअसल, टोक्यो ओलंपिक होगा या नहीं इस मुद्दे पर दुनिया के अधिकांश देश एक राय नहीं हैं।  कोरोना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। भले ही यूरोप के देश  जल्दी वापसी कर जाएं लेकिन एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के लिए खेलना आसान नहीं होगा।

एक खतरा यह भी है कि मेजबान जापान में  दो गुट बन गये हैं, जिनमें से एक गुट खेलों का हर हाल में आयोजन चाहता है। उसका तर्क है कि  देश ने ओलंपिक के आयोजन के लिए अरबों खर्च किए हैं और सरकार, बड़ी छोटी कंपनियों, आयोजक प्रायोजक सभी उम्मीद कर रहे हैं की खेलों की सफल मेजबानी के बाद शायद अर्थव्यस्था पटरी पर आ जाए। सालों की कड़ी मेहनत के बाद देश में कई बड़े छोटे स्टेडियम बनाए गये और कुछ का नवीनीकरण किया गया है। लेकिन यामामोटो कुछ अलग सोच रखते हैं और ओलंपिक खेल रोक कर टोक्यो वासियों को बेहतर सुविधा और प्रोत्साहन देकर उनके जीवन स्तर में बढ़ोतरी चाहते हैं।

तारीफ़ की बात यह है कि यामामोटो का सीधा सीधा एजेंडा यह है कि वह ओलंपिक रद्द कराने के नारे के साथ चुनाव लड़ रहे हैं और टोक्यो के राज्यपाल बनते ही सबसे पहले खेलों के आयोजन पर रोक लगाएँगे या अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी से संवाद कर चार साल बाद की तिथियाँ ले सकते हैं। हालाँकि कहा यह जा रहा है कि यामामोटो की जीत के आसार प्रतिद्वंद्वी से कमतर हैं। लेकिन उसने टोक्यो वासियों को आश्वासन दिया है कि जीतने पर सभी को माला माल कर देंगे और कोरोना से हुए नुकसान की भरपाई उनकी प्राथमिकता होगी।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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