कड़ी मेहनत और मिट्टी खाकर बन सकते हैं चैम्पियन: मिस्टर यूनिवर्स प्रेम चन्द डेगरा
राजेंद्र सजवान
मोंतोष राय और मनोहर आइच के बाद जब 1988 में प्रेम चन्द डेगरा मिस्टर यूनिवर्स के खिताब के साथ भारत लौटे तो देश भर के बॉडी बिल्डर्स में नई उर्जा का संचार हुआ और लगा कि वर्षों की विफलता के बाद भारतीय बॉडी बिल्डिंग पटरी पर लौट आई है। लेकिन यह ख्वाब हक़ीकत का रूप नहीं ले पाया। कारण, देश भर में शरीर बनाने और बड़े मुकाबलों में भाग लेने का संदेश तो गया लेकिन साथ ही शॉर्ट कट से चैम्पियन बनने की होड़ भी शुरू हो गई।
नतीजा सामने है, डेगरा के बाद फिर कोई मान्यता प्राप्त और विशुद्ध मिस्टर यूनिवर्स पैदा करने में भारत को कामयाबी नहीं मिल पाई। आख़िर कहाँ चूक हुई और क्यों हज़ारों-लाखों जिम एवम् हेल्थ सेंटर होते हुए भी कोई भारतीय विश्व स्तरीय सम्मान अर्जित नहीं कर पा रहा! कारण कई है लेकिन बेहतर यह होगा कि हम अपने मिस्टर यूनिवर्स डेगरा जी से ही पूछ लेते हैं।
प्रेम चन्द इंडियन बॉडी बिल्डर्स फ़ेडेरेशन(आईबीबीएफ) के अध्यक्ष हैं और अपने खेल की विफलता के लिए सबसे बड़ा कारण फूड सपलिमेंट के नाम पर लिए जा रहे कूड़ा कबाड़ और ज़हर को मानते हैं। लॉक डाउन के चलते एक इंटरव्यू में उन्होने माना कि हिंदुस्तानियों में किसी चीज़ की कमी नहीं है। मेहनती है, पर यदि कोई कमी है तो ईमानदारी की। हर खिलाड़ी चाहता है कि वह कुछ भी खा पीकर रातों रात चैम्पियन बन जाए, जबकि उनके खेल में ईमानदार होना, साफ सुथरा होना, बेहतर और पौष्टिक खाना सबसे बड़ी कसौटी है।
डंके की चोट पर कहते हैं कि छह से आठ घंटे की मेहनत के बाद आम भारतीय मिट्टी खाकर भी शरीर बना सकता है और चैम्पियन बन सकता है। लॉक डाउन के चलते देश की नदियों और पहाड़ों की पवित्रता और स्वछता का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जो काम सरकारें करोड़ों खर्च कर नहीं कर पाईं, कुदरत ने कर दिखाया। कोरोना के रूप में ही सही कुदरत ने इंसान को सुधर जाने का संदेश दे दिया है।आज गंगा का पानी पीने लायक है क्योंकि फिलहाल उसमें इंसानी गंदगी नहीं मिली है।
यही हाल बॉडी बिल्डिंग का हुआ है। हमने अपने शरीर को बनाने के लिए प्रतिबंधित दवाओं का सेवन किया और खेल बिगाड़ कर रख दिया।वह मानते हैं कि भारत में अच्छे खिलाड़ियों की कमी नहीं है। कमी है तो उन्हें नेक राय देने वाले अच्छे गुरुओं की।लेकिन जब कोच और गुरु ही भटक जाए और अपने स्वार्थों की खातिर खेल बिगाड़ने पर उतर जाए तो भगवान भी भला नहीं कर सकते। वह मानते हैं कि विश्व स्तर पर बॉडी बिल्डिंग की दो अलग अलग फ़ेडेरेशन होना खेल के लिए घातक साबित हो रहा है।
भारत में भी एक समय दो से अधिक इकाइयाँ अस्तित्व में थीं लेकिन फिलहाल सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। उनके अनुसार खिलाड़ियों को रेलवे, पुलिस, सर्विसेस, इनकम टैक्स और अन्य विभागों में नौकरियाँ मिल रही हैं। सरकार भी सहयोग कर रही है। बस इंसानी कमियाँ और रातों रात चैम्पियन बनने की होड़ सबसे बड़ी बाधा बन कर खड़े हैं।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं।)