भाजपा की ताकत में इजाफा कर गया यह साल
कृष्णमोहन झा
नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर डटे हजारों किसानों का दिल्ली में जारी आंदोलन जल्द समाप्त होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं और अब यह स्थिति बन चुकी है कि इस आंदोलन की सुखद परिणिति नए साल में ही संभव हो सकीं। देश की राजधानी में ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा कि किसी केंद्र सरकार ने साल के शुरू में भी आंदोलन का सामना किया हो और साल के अंत में उसे किसी आंदोलन से जूझना पड़ा हो। साल की शुरुआत में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीनबाग में मुस्लिम महिलाओं ने जो धरना प्रारंभ किया था वह लाक डाउन के कारण समाप्त हुआ लेकिन अब दिल्ली में किसानों का जो आंदोलन लगभग सवा माह से जारी है उस पर कोरोना संकट का भी कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं हो रहा है। गौरतलब है कि जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली में यह आंदोलन शुरू किया था तब वहां कोरोना संक्रमण की तीसरी आने के अनुमान व्यक्त किए गए थे और कड़ाके की ठंड ने असर दिखाना शुरू कर दिया था परंतु इस सबके बावजूद आंदोलन कारी किसान अपनी मांगें पूरी होने तक अपना आंदोलन जारी रखने के फैसले पर अडिग रहे। सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों को बातचीत के लिए की बार बुलाया परंतु गतिरोध बना रहा और धीरे धीरे समय भी बीतता गया इतना समय जाया हो गया कि नये साल की दस्तक सुनाई देने लगी।अब यह सुनिश्चित हो चुका है कि किसान आंदोलन की परिणति नए में ही संभव हो सकेगी। अब यह उत्सुकता का विषय है कि जो सरकार बार बार यह दोहराती रही है कि देश के किसानों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के नेक इरादे से ही उसने नए कृषि कानूनों को अंजाम दिया है वह ने साल में किसानों को कौन सा उपहार देकर उन्हें अपना यह ऐतिहासिक आंदोलन वापस लेने के राजी करेगी।केंद्र में सत्तारूढ़ राजग के सबसे बड़े घटक भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार को भले ही आंदोलनकारी किसानों को मनाने में अभी तक कोई महत्त्वपूर्ण सफलता न मिली हो परंतु बीते हुए साल में उसने ऐसी अनेक उपलब्धियां अर्जित की हैं जो उसे गर्वानुभूति करने करने का हकदार बनाती हैं ।
दुनिया के अधिकांश देशों में हाहाकार की स्थिति पैदा करने वाले कोरोना संकट को नियंत्रित करने के लिए मोदी सरकारने समय रहते संपूर्ण देश में लाकडाउन करने का जो फैसला किया उसके लिए प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट कहा कि दूसरे देशों की सरकारों ने भी अगर समय रहते अपने यहां लाक डाउन लागू कर दिया होता तो कोराना वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करने में उन्हें भारत जैसी सफलता मिल सकती थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना काल में मोदी सरकार के फैसलों ने दूसरे देशों को भी राह दिखाई। लाक डाउन की सबसे अधिक मार गरीब तबके पर पड़ी।लाकडाउन से बेरोजगारी ने गरीब तबके को असहनीय तकलीफ सहने के लिए विवश कर दिया। दूसरे राज्यों में जाकर रोजी रोटी कमाने वाले प्रवासी मज़दूरों ने बेरोजगारी की स्थिति में अपने घर लौट जाने का फैसला किया तो सारी रेलगाडियां बंद होने के कारण सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए ये प्रवासी मजदूर रास्ते में दर्दनाक हादसों का शिकार होते ही रहे। इन हादसों के कारण लाकडाउन के दौरान किए गए सरकार के फैसलों पर सवाल भी उठते रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाकडाउन की वजह से लोगों को होने वाली परेशानियों के लिए उनसे माफी भी मांगी जो इस बात की परिचायक थी कि प्रधानमंत्री लोगों की तकलीफों से अनभिज्ञ नहीं हैं। कोरोना संकट की भयावहता को देखते हुए दरअसल लाक डाउन जैसा कठोर फैसले से बचना सरकार के लिए संभव भी नहीं था।एक ओर जहां लाक डाउन के दौरान चलाई गई विशेष रेलगाडियों से हुए दर्दनाक हादसों ने सारे देश को झकझोर डाला वहीं महाराष्ट्र के पालघर इलाके में हिंसक भीड़ द्वारा दो निहत्थे साधुओं की हत्या ने राज्य की उद्धव ठाकरे सरकार को शर्मसार कर दिया। आश्चर्य की बात तो यह थी कि सरकार ने इस शर्मनाक घटना को ग़लत फहमी का परिणाम बताकर उसकी गंभीरता को कम आंकने की कोशिश करने से भी परहेज़ नहीं किया।ऐसी ही मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं का शिकार कई शहरों में उन चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी बनाया गया जो विभिन्न अस्पतालों में अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना पीड़ित को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के लिए दिन रात एक कर रहे थे। संपूर्ण समर्पण की भावना से अपना कर्त्तव्य पालन करते हुएकोरोना काल में सैकड़ों कोरोना योद्धाओं ने मौत को भी गले लगा लिया जिनमें चिकित्सक,स्वास्थ्य कर्मी और पुलिस कर्मचारी अधिकारी शामिल हैं। निःसंदेह उनकी बलिदान गाथा मानवता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित किए जाने योग्य है।
यह संतोष की बात है कि कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली दुखद घटनाओं का यह सिलसिला अब थमता नजर आ रहा है परंतु यह स्थिति तब आई है जबकि हमारे देश में कोरोनावायरस लगभग एक करोड़ लोगों को संक्रमित कर चुका है जिनमें से लगभग एक लाख बीस हजार कोरोनापीडितों के प्राण नहीं बचाए जा सके।साल की पहली तिमाही में जिस जानलेवा वायरस ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया था उसकी वैक्सीन साल का अंत होने के पहले ही तैयार कर लेने में वैग्यानिकों को मिली सफलता यह संकेत दे रही है कि कोरोना अपराजेय नहीं है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अभी तक के कार्यकाल में इस वर्ष सर्वाधिक सात बार राष्ट्र को संबोधित किया। पहले जनता कर्फ्यू ,फिर संपूर्णलाक डाउन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मोदी अपने विभिन्न संबोधनों के माध्यम से देशवासियों से लाकडाउन का पालन करने की अपील करते रहे। अप्रैल में उन्होंने कोरोना संक्रमण के प्रारंभिक काल में इस महामारी से उपजी निराशा के अंधकार को दूर भगाने के लिए दीपोत्सव मनाने का आह्वान किया जिसने जनता को अभिभूत कर दिया।
मई में प्रधानमंत्री मोदी ने 20लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान से जुड़ने के लिए देशवासियों को प्रेरित किया।एक महत्वपूर्ण संदेश में देश के वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना वैक्सीन तैयार करने की दिशा में मिल रही सफलता की उन्होंने जानकारी दी। प्रधानमंत्री ने अपने हर संबोधन में आपदा को अवसर में बदलने के लिए लोगों को प्रेरित किया। प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया वोकल बार लोकल का नारा बहुत लोकप्रिय सिद्ध हुआ।कोरोना संकट से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए कदमों को विपक्ष ने पहले तो अपना समर्थन प्रदान किया परंतु ज्यों ज्यों समय बीतता गया त्यों त्यों विपक्ष ने कोरोना संकट से निपटने की सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए।इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथकी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की देशभर में सराहना हुई। प्रवासी मज़दूरों के लिए प्रवासी आयोग बनाने के उनके फैसले से प्रभावित होकर कई दूसरे राज्यों की सरकारों ने इसी तरह के कदम अपने राज्यों में उठाने का फैसला किया।प्रवासी मजदूरों को लेकर महाराष्ट्र की उद्धव सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बीच कटुता की स्थिति भी बनी।प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित उनके गृह राज्य वापस भेजने के लिए बालीवुड अभिनेता सोनू सूद की पहल ने प्रवासी मजदूरों के दिल जीत लिए।केंद्र में सत्तारूढ़ राजग की मुखिया और विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का रिकार्ड अपने नाम कर चुकी भारतीय जनता पार्टी ने इस वर्ष अनेक उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित कीं लेकिन उनके लिए वह विपक्ष के निशाने पर भी रही।
विपक्ष ने भाजपा पर गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने का आरोप लगाया। कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जिस तारीख को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशव्यापी लाकडाउन की घोषणा की उसके ठीक एक दिन पहले मध्यप्रदेश में सत्यता से कांग्रेस की विदाई की पटकथा लिख दी गई। पूर्व केंद्रीय मंत्री और ग्वालियर अंचल के प्रभावशाली नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके गुट के 26 विधायकों ने भाजपा में शामिल होकर मध्यप्रदेश में तत्कालीन कमलनाथ सरकार को हक्का बक्का कर दिया।इस दलपरिवर्तन ने एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान के आसीन होने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उधर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने राज्य सभा में पहुंचा दिया और दल परिवर्तन करने वालेअधिकांश विधायक मंत्री पद से नवाज दिए गए परन्तु इस दल परिवर्तन के फलस्वरूप जिन 26 सीटों के लिए उपचुनाव हुए उनमें से भाजपा 19 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। कांग्रेस 19 सीटें जीतकर कुछ हद तक अपनी प्रतिष्ठा बचाने में सफल रही। मुख्यमंत्री चौहान इस कार्यकाल में बिल्कुल नए अवतार में दिखाई दे रहे हैं जिसने लोगों को कौतूहल में डाल दिया है।
मध्यप्रदेश के समान ही राजस्थान में भी भाजपा ने इस साल सत्ता परिवर्तन की उम्मीदें लगा रखी थीं परंतु राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के पास पर्याप्त संख्या में विधायक न होने के कारण भाजपा की उम्मीदें पूरी नहीं हो पाई और कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिलहाल अपनी सरकार बचाने में सफल हो गए हैं ।परंतु सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद और उपमुख्यमंत्री पद से धोना पड़ा। राजस्थान में राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।इस साल बिहार विधानसभा, ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम, और जम्मू-कश्मीर के जिला विकास परिषद के चुनाव संपन्न हुए जिनके परिणामों को लेकर देशभर में उत्सुकता थी। बिहार में भाजपा और जदयू के गठबंधन को राजद नीत महागठबंधन से कड़ी टक्कर मिली परंतु भाजपा और जदयू का गठबंधन सत्ता में वापसी करने में सफल रहा। भाजपा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी एक बार फिर नीतिश कुमार को सौंप दी यद्यपि उनकी अपनी पार्टी जदयू की सीटें भाजपा से काफी कम आई । नीतिश कुमार को सरकार में इस बार दो उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए विवश होना पड़ा और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नीतिश कुमार ने गठबंधन में बड़े भाई की हैसियत भी खो दी है। भाजपा की रणनीति का नीतिश कुमार को पूरा भान है परंतु उन्हें इस कड़वी हकीकत का भी पूरा अहसास है कि राज्य में उसकी राजनीतिक ताकत अब पहले जैसी नहीं रह गई है । दरअसल मुख्यमंत्री की कुर्सी का मोह उन्हें सारे अपमान और उपेक्षा सहने के लिए विवश कर रहा है। भाजपा की इस साल की उल्लेखनीय उपलब्धियों में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में मिली सफलता विशेष महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है जहू उसने दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति कोई स्तब्ध कर दिया।
भाजपा की ताकत में हुए आश्चर्यजनक इजाफे के पीछे उसके स्थानीय और राष्ट्रीय नेताओं व कार्यकर्ताओं की जोड़ तोड़ मेहनत थी। भाग्यलक्ष्मी माता की नगरी में भाजपा का जो भाग्योदय हुआ उसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी विशेष भूमिका रही जिनके वहां भव्य रोड ने मतदाताओं को भाजपा का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया।भाजपा की उल्लेखनीय उपलब्धियों की चर्चा उसे जम्मू-कश्मीर जिला विकास परिषद के चुनावों में मिली सफलता को शामिल किए बिना पूरी नहीं हो सकती। राज्य की 20 जिला विकास परिषदों के चुनावों में जम्मूक्षेत्र में तो उसकी सफलता पहले से ही तय मानी जा रही थी परंतु कश्मीर घाटी में भी चार सीटों पर विजय हासिल कर उसने दूसरे दलों कोसकते में डाल दिया । जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद370को समाप्त करने का जो ऐतिहासिक फैसला मोदी सरकार ने गत वर्ष किया था उसके बाद राज्य में यह पहली प्रजातांत्रिक प्रक्रिया थी जिसमें लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लेकर यह साबित कर दिया कि जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने के मोदी सरकार का समर्थन करते हैं।
बिहार, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर में अपनी सफलता से उत्साहित भाजपा में अब यह भरोसा जागा उठा है कि वह पश्चिम बंगाल में अगले साल होने होने वाले चुनावों में भी चमत्कारिक सफलता पाने में कामयाब होगी । वहां भाजपा की रैलियों में उमड़ी भीड़ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बौखला उठी हैं। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के गढ़ में सेंध में भाजपा को जो आश्चर्यजनक सफलता मिल रही है वह इस बात की परिचायक है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में अब राज्य की जनता का भरोसा नहीं रहा है। भाजपा ने जिस तरह अपनी सारी ताकत वहां झोंक दी है उसका संदेश यही है कि पश्चिम बंगाल का किला फतह करना उसकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है।मोदी सरकार ने इस वर्ष जो महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न किए उनमें अयोध्या में बहुप्रतीक्षित श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन समारोह के गरिमामय भव्य आयोजन ने इतिहास रच दिया। इस आयोजन को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानना ग़लत नहीं होगा। भूमि पूजन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का सारगर्भित संबोधन सारे रामभक्तों के मन-मस्तिष्क पर विशिष्ट छाप छोड़ गया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)